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योरप के उपनिवेश
लेखक, श्रीयुत रामस्वरूप व्यास योरप में युद्धाग्नि भड़कानेवाले कारणों में एक उसके उपनिवेशों का प्रश्न भी है। यदि यह प्रश्न हल न हुआ तो युद्ध अवश्यम्भावी है। इस लेख में लेखक महोदय ने इस
प्रश्न पर अच्छा प्रकाश डाला है। R eaRem छली शताब्दी का इतिहास योरप के वेश प्राप्त करने की थी। पर इन्हें कुछ नहीं के बराबर ही
साम्राज्यवाद के प्रसार का इतिहास मिल सका। तब से ये दोनों राष्ट्र-संघ से अप्रसन्न-से ही रहे।
है। यों तो अमरीका का पता लगना परन्तु प्रारम्भ में इन्हें अाशा थी कि शायद बाद में इनकी
HC और भारत का जल-मार्ग ढूँढ़ने यह इच्छा पूरी कर इनके साथ न्याय हो और दूसरे साम्राज्यIS का प्रयत्न ही इसका श्रीगणेश कहा वादी देशों की तरह ये भी उपनिवेशों के अधिपति बन
जा सकता है, पर उस समय संसार सके । पर जब महायुद्ध के बाद कई वर्षों तक इन्हें कोई के सब देश योरपवासियों के लिए खुले थे। उपनिवेशों के उपनिवेश न मिल सका तब फिर इन्होंने अपनी-सी करने हथियाने की होड़ में सर्वप्रथम फ़्रांस और इंग्लैंड का संघर्ष की ठानी। हुआ और फलस्वरूप अाज संसार के नक्शे का सबसे आधुनिक व्यापार, पूँजीवाद तथा यंत्रवाद के लिए अधिक भाग लाल रंगा हुआ है । भारतवर्ष तथा अमरीका उपनिवेश अावश्यक हैं। पूँजीवाद के प्रसार तथा यंत्रों में दोनों जगह अँगरेज़ों की विजय हुई और तब से सबसे से बनी हुई वस्तुओं को खपाने के लिए बाज़ार की अधिक उपनिवेश इनके प्राधिपत्य में आ गये। आवश्यकता पड़ती है। बिना बाज़ार के यंत्रों से बनी हुई
फ्रांस और इंग्लैंड के पदचिह्नों पर योरप के दूसरे असंख्य वस्तुएँ किस प्रकार बिक सकेंगी और उन पूँजीराष्ट्रों ने चलना प्रारम्भ किया और अफ्रीका को योरप की पतियों को किस प्रकार लाभ होगा जिनकी पूँजी कारखानों श्वेत जातियों ने टुकड़े टुकड़े कर आपस में बाँट लिया। में लगी है ? साथ ही साथ इन कारखानों में सामान बनाने उसमें इंग्लैंड और फ्रांस के अतिरिक्त जर्मनी, हालेड, के लिए कच्चे माल की आवश्यकता भी होती है और यदि बेलजियम, पुर्तगाल इन सबके उपनिवेश थे और अब भी यह अपने साम्राज्य के किसी हिस्से से ही मिल सके तो जर्मनी को छोड़कर सबके हैं।
सस्ता मिल सकेगा और साथ ही इसके मिलने न मिलने गत महायुद्ध एक प्रकार से उसी साम्राज्य-प्राप्ति की के बारे में कोई सन्देह भी न रहेगा। प्रतियोगिता का फल कहा जा सकता है जो उस समय जापान, जर्मनी तथा इटली, ये तीनों ही पूँजीपति, योरप की भिन्न भिन्न जातियों के बीच में चल रही थी। साम्राज्यवादी, औद्योगिक राष्ट्र हैं । इन तीनों को भी अपनी महायुद्ध के बाद भी यह उपनिवेश-सम्बन्धी समस्या सुलझ औद्योगिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए, पक्के माल नहीं सकी, बरन उलटा अधिक भीषण हो गई। बारसेलीज़ की खपत के लिए, उपनिवेश चाहिए। पर अब तो न की सन्धि की ११९वीं धारा के अनुसार जर्मनी को अपने कोई दूसरा महाद्वीप ही बाँटने को बच रहा है और न संसार सब विदेशी उपनिवेश मित्रराष्ट्रों के हवाले कर देने पड़े। का कोई दूसरा भाग जो किसी योरपीय राष्ट्र के अधिकार
और ये उपनिवेश मित्र-राष्ट्रों ने राष्ट्र संघ की देख-रेख के या संरक्षण में न हो। हाँ, अबीसीनिया स्वतंत्र रह गया नाम पर आपस में बाँट लिये । जर्मनी से उसके उपनिवेश था, सो इटली ने उसे हथिया लिया। जापान मंचूरिया ही नहीं छिन गये, बरन उस पर यह दोष भी लगाया गया को जीतकर मंगोलिया को भी उसमें मिलाना चाहता कि जर्मन लोग उपनिवेशों का प्रबन्ध करने में अयोग्य है। और जर्मनी भी अपने उपनिवेश फिर से वापस प्रमाणित हुए हैं । इधर मित्र राष्ट्रों में जापान और इटलो मांग रहा है। ऐसे थे जिनकी इच्छा दूसरे योरपीय राष्ट्रों की तरह उपनि- कच्चा माल दे सकना तथा तैयार माल के लिए बाज़ार
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