________________
२१२
सरस्वती
[ भाग ३८
राजा मिन्डॉमिन की उदारता तथा शान्तिप्रियता का प्रजा पर अच्छा प्रभाव पड़ा। उसने न केवल स्वदेशवासियों के अपितु बर्मा में प्रवासी अँगरेज़ों और फ्रांसीसियों श्रादि के साथ भी मित्रता का सम्बन्ध स्थापित किया, यहाँ तक कि उसने ईसाई चर्च तथा स्कूलों के लिए भी धन तथा भूमि का दान किया और अपने पुत्रों को भी इन शिक्षणालयों में प्रविष्ट कराया। पर वह स्वयं एक कट्टर बौद्ध था और अपने राज्यकाल में उसने कतोडा नामक एक सुविशाल पगोडा निर्मित कराया, जिसमें संपूर्ण 'त्रिपिटक' श्वेत-प्रस्तर के शिलालेखों में लिख कर रक्खा गया। राजा मिन्डोमिन ने पंचम बौद्ध महासभा की भी संयोजना की।
सन् १८५५ में मेजर फेयर पुनः एक व्यापारिक संधिपत्र की पूर्ति के लिए अमरापुरा-दरवार में पहुँचे। परन्तु मिन्डोमिन ने संधि से बर्मा को कुछ विशेष लाभ न होता देखकर संधिपत्र पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया। साथ ही राजा ने सरहदी मामलों में सहयोग तथा मित्रता का बर्ताव रखने की अभिलाषा प्रकट की। सन् १८५७ में राजा ने ज्योतिषियों द्वारा कुछ शकुन देखे जाने पर अमरा पुरा के स्थान में माण्डले को अपनी राजधानी बनाया। इसके बाद सन् १८५८ में संयुक्त राज्य (अमरीका) से एक मिशन बहाँ के प्रेसीडेंट का पत्र लेकर दोनों देशों में मैत्री स्थापित करने के उद्देश सं माण्डले पहुंचा। इसी वर्ष
राजघराने से सम्बन्धित छ मानी पुरुषों द्वारा बसोन में [कुशलक्षेमाय मन्दिरमाला में प्रवेश करने का
अंगरेजों के विरुद्ध विप्लव इया, जो तुरन्त शान्त कर पश्चिमीय द्वार ।
दिया गया। इसी समय शान-देश के स्वोबा (सामन्त वर्मा के नवीन राजा को चेतावनी दी कि यदि वह इसे एक राजा) ने भी विप्लव किया जो असफल रहा। मास के भीतर स्वीकार न करेगा तो उसकी सम्पूर्ण शक्ति सन् १८६२ में अराकान, पेगु तथा तनासिरम के एक नट कर दी जायगी।
कमिश्नरी बनने पर चीफ़ कमिश्नर मेजर फेयर ने पुनः राजा पगानमिन के गद्दी से उतार दिये जाने के बाद व्यापारिक सन्धि के लिए प्रस्ताव पेश किया। उसमें सरहदी इन शेमिन मिन्डोमिन के हाथों में उक्त पत्र दिया गया। चुंगी के घटाने, ब्रिटिश लोगों को देश में व्यापार की उसने पत्र की भाषा और भाव पर दुःख प्रकट किया और स्वतन्त्रता देने तथा माण्डले में एक ब्रिटिश प्रतिनिधि सन्धि-पत्र की पूर्ति करने से इनकार कर दिया, पर साथ रखने की शतें थीं। परन्तु सन्धि की शतों का पूरा होना ही मित्रता का सम्बन्ध स्थापित करना स्वीकार किया। नामुमकिन था, क्योंकि मिट्टी का तेल, सागौन अादि
सन् १८५४ में मिन्डोमिन ने एक मिशन के द्वारा पेगु लकड़ी तथा कीमती पत्थरों का व्यापार राजा के लिए राजा पर अपना प्रभुत्व सिद्ध करने का प्रयत्न किया, परन्तु के कारकुनों-द्वारा ही होता था, इसलिए स्वतन्त्र व्यापारी यह सफलता न हुई । सुतरां मिन्डोमिन ने बर्मा का जो हिस्सा सब माल राजा से ही ख़रीदने के लिए बाध्य थे। शेष रह गया था उसी का सुप्रबन्ध करने पर सन्तोष किया। चार साल बाद मेजर फेयर पुनः माण्डले पधारे ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com