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________________ बर्मा पर अँगरेज़ों का आधिपत्य संख्या ३ ] परिणाम स्वरूप उत्तर-पश्चिमी सीमाओं में गोहाटी, मनीपुर, कचार तथा अराकान तक बढ़ी हुई बम सेना को अपना क़दम पीछे लौटाना पड़ा । जब अँगरेज़ी फ़ौजें रंगून से उत्तर की ओर बढ़ रही थीं तब दानुब्यू की लड़ाई में प्रसिद्ध सेनापति बन्डुला का श्राये । दानुव्यू तथा प्रोम के जिले भी ब्रिटिश शासन के अधीन हुए। ब्रिटिश सेनाओं के प्रोम से उत्तर मालुन तथा पगान की तरफ़ बढ़ आने पर तथा चर्मी सेनाओं की हार होने के कारण यंदाबू की सन्धि लिखी गई । अँगरेज़ी फ़ौजों ने पगान से श्रागे बढ़कर राजधानी श्रावा से ४० मील दूर यंदाबू नामक जगह में ग्राकर खेमे गाड़ दिये । इस सन्धि-द्वारा ग्रासाम, अराकान, तनासिरम तथा मर्तबान पर अँगरेज़ों का प्रभुत्व हुआ; ब्रिटिश सरकार को हर्जाने के तौर पर १ करोड़ रुपया युद्ध- खर्च देना स्वीकार किया गया कचार, जयन्तिया तथा मनीपुर के इलाकों में किसी तरह का हस्तक्षेप न करना तय हुयाः स्याम ब्रिटिश राज्य का मित्रराज्य माना गया । इस सन्धि के अनुसार २४ फरवरी १८२६ को ब्रिटिश फौजें रंगून लौट इ तथा तनासिरम प्रदेश का मोलमीन शहर जिसका पुराना नाम रामपुरम् था, ब्रिटिश बर्मा की राजधानी बनाया गया। अँगरेज़ों से बर्मा का यह पहला संघर्ष था । सन् १८६० में क्रौफ़ोर्ड-सन्धि के अनुसार राजधानी यात्रा में ब्रिटिश रेज़ीडेंट के रखने की स्वीकृति दी गई। परन्तु वर्मा के राजा का रेज़ीडेंटों से मेल नहीं बैठा । बर्मा के राजा सन्धियों के विपरीत ब्रिटिश व्यापारी जहाज़ों से अधिक चुंगी वसूल करने लगे और ब्रिटिश बेड़ों के कप्तानों पर झूठे इलज़ाम लगाकर उनसे मनमाना आर्थिक दण्ड लेने लगे। इससे नाराज़ होकर गवर्नर जनरल लार्ड डलहौज़ी ने ६ जंगी जहाज़ बर्मा को भेज दिये और वर्मा- सरकार से पत्रों द्वारा जवाब माँगा । परन्तु उस समय के राजा पगानमिन ने पत्रों का कोई उत्तर नहीं दिया, अतएव अप्रेल सन् १८५२ में युद्ध घोषित कर दिया गया । इस युद्ध में जनरल गाडविन ने मर्तबान, रंगून तथा सीन, अर्थात् वर्मा के तीनों बन्दरगाहों पर क़ब्ज़ा कर लिया । सन् १८५२ के अगस्त मास में लार्ड डलहौज़ी स्वयं रंगून ग्राये और निश्चय किया कि सरकारी फ़ौजों को बर्मा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat २११ [कुतोडा पगोडा ग्रुप (कुशल क्षेमाय मन्दिरमाला ) ] के भीतर बढ़ने का आदेश दिया जाय । ईस्ट इण्डिया कम्पनी के डायरेक्टरों ने भी पेगु- प्रदेश को हमेशा के लिए ब्रिटिश भारत में मिला लेने की सलाह को स्वीकार कर लिया। इन्हीं दिनों दिसम्बर १८५२ में बर्मा के राजा पगानमिन तथा उनके सौतेले भाई मिन्डोमिन के बीच गृह-युद्ध हो रहा था। मिन्डोमिन की फ़ौजों ने उत्तर में श्वेवो की तरफ़ से धावा बोलकर राजधानी अमरापुर पर अधिकार कर लिया। राजा पगानमिन को राजधानी में नज़रबन्द कर दिया और उनके लिए सब सुख के सामान उपस्थित कर दिये गये । इधर २० दिसम्बर सन् १८५२ में कप्तान आर्थर फ़ेयर ने गवर्नर जनरल की यह घोषणा कि पेगु अँगरेज़ सरकार के मातहत माना जाय, उद्घोषित की तथा www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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