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पर अँगरेजों का आधिपत्य
संख्या ३]
उन्होंने संधि के अनुसार सरहदी चुंगी के कम किये जाने तथा व्यापार पर राजकीय एकाधिपत्य के बजाय व्यापार को उन्मुक्त तथा स्वतन्त्र किये जाने की मांग पेश की। परन्तु वे अपने प्रयत्न में सफल न हुए।
इसी साल सन् १८६६ में माण्डले के राजकुल मं विप्लव हो गया। राजपुत्रों ने अपने चचा (इन-शे-मिन = राजा के छोटे भाई) जो राज्य के उत्तराधिकारी थे, मरवा डाला। इसके जवाब में चचा के पुत्र ने अपने चचेरे भाइयों के खिलाफ विद्रोह का झण्डा खड़ा किया, परन्तु वह बन्दी कर लिया गया और अन्त में मरवा डाला गया । १८६७ में चीफ कमिश्नर फ़िशे साहब एक नई सन्धि करने के लिए माण्डले प्राये । सरहदी चुंगी की दर ५% प्रतिसैकड़ा स्थिर हुई, ब्रिटिश रेज़ीडेंट के माण्डले में रहना और उसका ख़र्च देना भी स्वीकार किया गया। सोना-चाँदी की रफ़्तनी में व्यापारिक स्वतन्त्रता का नियम लागू किया गया । राजकीय एकाधिपत्य केवल मिट्टी के तेल, सागौन तथा क़ीमती पत्थरों तक सीमित किया गया ! वर्मा सरकार चीफ़ कमिश्नर की अनुमति से युद्ध का सामान ब्रिटिश सरकार के राज्य की हद में ख़रीदा करे, इस पर बल दिया गया। चीन के साथ व्यापार जारी करने के लिए चीनी - बम मार्ग के तैयार किये जाने के साथ ही भिन्न भिन्न राजनैतिक क़ैदियों को मुक्त करना भी इस सन्धि के द्वारा तय हुआ ।
इसके उपरान्त सन् १८७१ में चीफ़ कमिश्नर सर एश्ले ईडन ने राजकीय एकाधिपत्य को पूर्ण रूप से उठा लेने की माँग पेश की । उनके कथनानुसार इसी अड़चन से सन् १८६२ तथा सन् १८६७ की व्यापारिक सन्धियाँ व्यर्थ सिद्ध होती रहीं । इधर राजा भी बेहद सामान इकट्ठा हो जाने से भारी वाटा सह रहा था । उसने व्यापारीय एकाधिपत्य को उठा लेना स्वीकार कर लिया । परन्तु कहा जाता है कि बाद में मौक़ वे-मौक़े इसका दुरुपयोग भी होता रहा । ६ साल बाद यह प्रश्न ब्रिटिश कर्मचारियों द्वारा फिर उठाया गया और पुनः सन्धिपत्र में परिवर्तन करने पर ज़ोर
डाला गया ।
सन् १८७२ में इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया, वहाँ के प्रधानमन्त्री तथा भारत के वायसराय के द्वारा बर्मा दरबार को ३ पत्र प्रेपित किये गये । इधर बर्मा-मिशन भी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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[मिन्डोमिन द्वारा निर्मित कुतोडा मन्दिरमाला के सैकड़ों मन्दिरों में से एक का दृश्य ।]
ब्रिटेन के दरबार में उपस्थित होने को खाना हो चुका था । यह मिशन इटली तथा फ्रांस के दरवारों में भी पहुँचा ।
सन् १८७८ में राजा मिन्डोमिन की मृत्यु के उपरान्त उसके लगभग ६ दर्जन पुत्रों में से मंत्रियों और मँझली रानी के बीच कुछ गुप्त मंत्रणा हो जाने पर राजपुत्र थीवामिन गद्दी पर बिठाये गये । शेष पुत्रों में से बहुत-से उपर्युक्त पड्यन्त्र के अनुसार कत्ल करवा दिये गये । मँझली रानी की दूसरी पुत्री से जिसका थीवामिन से प्रेम था, विवाह कर दिया गया । इन्हीं दिनों कर्नल विन्डम बैलून से माण्डले में उतरे। कहा जाता है कि उनकी आवभगत करने के स्थान में उनके साथ उपेक्षा- पूर्ण व्यवहार किया गया । www.umaragyanbhandar.com