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ONIONLIUTRAST
चरस्वनी
জাঙ্গি জুষ্টির জুড়ি
सम्पादक
देवीदत्त शुक्ल श्रीनाथसिंह
मार्च १९३७ ।
भाग ३८, खंड १ संख्या ३, पूर्ण संख्या ४४७१ फाल्गुन १६६३
कवि का स्वप्न
१ लेखक, श्रीयुत भगवतीचरण वर्मा कवि लिखने बैठा-मधुऋतु है, मद से मतवाला है मधुवन, कवि लिखने बैठा--एक युवक जिस पर न्योछावर सहस मदन; भौंरों की है गुजार मधुर, पिक के पंचम में है कम्पन, श्वासों में है उच्छ्वास भरा उन्माद भरी जिसकी चितवन, मलयानिल के उन झोकों में सौरभ के सुषमा की सिहरन, वह निज वैभव में मुग्ध विसुध निज अभिलाषा में लीन मगन, 'प्रधखुली कली की आँखों में सुख-स्वप्नों की कोमल पुलकन। अपने मानस के पट पर वह करता सुख का संसार सृजन ।
कवि लिखने बैठा-मधुवन में फूलों का सुन्दर एक सदन कवि लिखने बैठा-नवबाला, जिसकी आँखों में भोलापन, शत-शत रंगों की धाराएँ, रच रहीं जहाँ शाश्क्त यौवन, जिसके उभरे वक्षस्थल में अज्ञात प्रेम का नव-स्पन्दन, उल्लास उमंगें भरता है विश्वास भरा अक्षय जीवन, नूपुर-ध्वनि में संगीत स्वयं करता उन चरणों का बन्दन, है जहाँ कल्पना का सुन्दर अभिमन्त्रित कामल आलिंगन! निज बाहों की जयमाला का ले कर आई है दृढ़ बन्धन ।
कवि सहसा सिहरा, काँप उठा सुन भूखे बच्चों का रोदन, पत्नी की पथराई आँखों में केन्द्रित था जग का क्रन्दन, गन्दे से टूटे कमरे में होता अभाव का था नर्तन, कवि खड़ा हो गया पागल-सा उसके उर में थी कौन जलन ?
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