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________________ - २०८ ... सरस्वती [भाग ३८ उनकी जितनी प्रशंसा की जाय थोड़ी है। अधिकांश प्रवासी भारतीयों की असुविधायें दूर होती नहीं दिखाई देती कविताये साधारण थीं और साधारण ढङ्ग से पढ़ी गई हैं। इस सम्बन्ध में जंज़ीबार के प्रवासी भारतीयों के नेता श्रोताओं को सबसे अधिक श्री जगमोहननाथ अवस्थी ने श्री तैयबअली ने जो वक्तव्य दिया है उसका मुख्यांश आकृष्ट किया। उन्होंने अाशु कवि होने की घोषणा की यह हैऔर दावा किया कि वे तत्काल किसी भी विषय या समस्या, रिपोर्ट की पहली सिफ़ारिश यह है कि लौंग बोनेवालों पर पद्य-रचना कर सकते हैं। किसी ने उन्हें 'लाउड स्पीकर' की लौंग के ख़रीदने का एकमात्र अधिकार लौंग-उत्पापर पद्य-रचना करने की बात कही। उन्होंने तत्काल उस दक संघ का होना चाहिए। पर कई सुन्दर पद्य-छन्द पढ़े और 'त्रिशूल-सनेही' और इस समय लौंग बोनेवालों को स्वतन्त्रता है कि वे किसी 'शाह की शादी की समस्याओं की पूर्ति करके तो उन्होंने के भी हाथ अपना माल बेच सकते हैं । परन्तु रिपोर्ट की श्रोताओं को आश्चर्यचकित ही कर दिया। कवि-सम्मेलनों सिफ़ारिश है कि 'सिवाय लौंग-उत्पादक-सङ्घ के और किसी में लोग गम्भीर विचार नहीं, ऐसे ही चमत्कार और को लौंग ख़रीदने का अधिकार न होना चाहिए। अगर अति-मधुर तथा सरलग्राह्य विनोद चाहते हैं। इस दृष्टि कहीं यह सिफ़ारिश कानून के रूप में बदल गई तो से अवस्थी जी बहुत सफल कवि कहे जा सकते हैं और हिन्दुस्तानी आढ़तिये सिर पर हाथ रखकर रोयेंगे और हम उन्हें बधाई देते हैं। उनका व्यापार एकदम चौपट हो जायगा। दूसरी सिफ़ारिश यह है कि अगर हिंदुस्तानी चाहें तो सम्मेलन का सभापति को वे द्वीप की लौंग खरीदने के लिए संघ के अाढ़तिये बन __सम्मेलन के सभापतित्व पर इधर कुछ समय से राजनै- सकते हैं । पर संघ ने ऐसा कोई विश्वास नहीं दिलाया तिक नेताओं का एकाधिकार-सा हो गया है । यद्यपि हम है कि वे हिन्दुस्तानियों को अपने आढ़तिये बना ही लेंगे, उसकी उपयोगिता के कायल हैं तथापि यह वाञ्छनीय अथवा एक बार आढ़तिये बन जाने पर फिर उन्हें नहीं है कि हिन्दी के वयोवृद्ध साहित्यिक इस सम्मान से हटायँगे नहीं। वञ्चित रहें। हमारे देखते देखते अवधवासी लाला सीता- तीसरी सिफ़ारिश यह है कि निर्यात-व्यापार का लाइ. राम और मुंशी प्रेमचन्द स्वर्गवासी हो गये और वे सम्मे- सेंस सङ्घ न दे, बल्कि जंजीबार की सरकार दिया करे तथा लन के सभापति न बनाये जा सके। हमारा यहाँ हिन्दी- लाइसेंस का शुल्क कम कर दिया जाय । प्रेमियों से अनुरोध है कि इस बार किसी योग्य साहित्यिक ही इसका भी कोई अर्थ नहीं है, क्योंकि यदि सरकार को इस आसन पर बैठायें। इस सम्बन्ध में अपनी ओर से निर्यात-लाइसेंस देने में निष्पक्षता भी अख्त्यार कर ले तथा हम श्रीयुत मैथिलीशरण गुप्त का नाम उपस्थित करते हैं। उसका शुल्क भी घटा दे तो भी भारतवासियों को कोई लाभ गुप्त जी इस पद के सर्वथा उपयुक्त भी हैं, क्योंकि हाल में नहीं। उन्हें लाइसेंस लेने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी, क्योंकि ही उनकी सारे देश में जयन्ती भी मनाई गई है तथा विदेशी ख़रीदार ज्यों ही यह सुनेंगे कि रक्षित उपनिवेश में महात्मा गांधी-द्वारा उनका सम्मान भी हो चुका है। लौंग भेजनेवाला अब केवल लौंग-उत्पादक-सङ्घ रह गया है. वे भारतीय व्यापारियों से या मध्यस्थ श्राढ़तियों जंजीबार की समस्या से माल नहीं खरीदेंगे और इनका व्यापार नष्ट हो जंज़ीबार के भारतीयों की समस्या अभी सुलझती जायगा। नज़र नहीं आती। भारत-सरकार ने बीच में पड़- चौथी सिफारिश सङ्घ की सलाह-कारिणी समिति में कर इस मामले की जाँच करने के लिए औपनिवेशिक एक भारतीय प्रतिनिधि रखने के विषय में है। सो वह विभाग से कहा था, जिसके लिए मिस्टर बेक नियुक्त भारतीय हितों का चाहे कितना ही पोषक हो उसकी आवाज़ किये गये। परन्तु उन्होंने जो रिपोर्ट दी है, उससे भी वहाँ अरण्यरोदनमात्र होगी। _ Printed and published by K. Mittra, at The Indian Press, Ltd., Allahabad. ' Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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