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________________ संख्या २] नई पुस्तकें १९१ क्षाओं के विद्यार्थियों तथा हिन्दी को फ़ाइनल परीक्षा पाठकों को यह पुस्तक विशेष उपयोगी होगी। भाषा सरल तथा हाई-स्कूल की परीक्षा में सम्मिलित होनेवाले विद्या- और सुपाठ्य है । संकलन बहुत सुन्दर है। र्थियों के उपयोग के लिए लिखी गई है। हिन्दी का विग्रह --गंगासिंह वाक्य इस पुस्तक में बहुत ही उत्तम ढंग से और अधिकार- २२-सुभाषित और विनोद-लेखक, श्रीयुत पूर्वक समझाया गया है । पुस्तक उत्तम है। गुरुनारायण सुकुल, प्रकाशक, लक्ष्मी-पार्ट प्रेस, दारागंज, -ठाकुरदत्त मिश्र प्रयाग हैं। मूल्य है। १९-बालगुरुप्रकाश-लेखक, स्वर्गीय पंडित गुरां यह एक विनोद-पूर्ण पुस्तक है, अाठ भागों में लक्ष्मीनारायण जी शर्मा, प्रकाशक, अध्यापक, राजस्थानी- विभाजित है। पहले भाग में शुद्ध साहित्यिक भाव तथा हिन्दी-विद्यालय, कसार हट्ठा चौक, हैदराबाद दक्षिण कला प्रदर्शित करनेवाली सूक्तियाँ हैं, यथा---श्री गोस्वामी हैं । पृष्ठ-संख्या ४६ और मूल्य ।) है। जी ने एक बार सीता जी का वर्णन साधारण युवती यह पुस्तक छोटे बच्चों के लिए बहुत ही लाभदायक की भाँति कर दिया किहै । इसको पढ़कर वे सब प्रकार के लेखा-हिसाब से परिचित "साह नवल तन सुन्दर सारी”, पर बाद में हनुमान हो सकते हैं। लिखने का ढंग बहुत ही सुन्दर और मनोरं- जी की सहायता से उसे मातृवत् श्रद्धापूर्ण कर दिया। जक होने से बालकों की रुचि भी इसके पढ़ने के लिए "साह नवल तन सुन्दर सारी'। विशेष रूप से हो सकती है। व्यापारिक हिसाब, रुपये पैसे जगत जननि अतुलित छवि भारी" ॥ का सूद, नाप-तोल आदि विषयों के उत्तम गुर बताये गये दूसरे भाग में चमत्कारपूर्ण अालंकारिक युक्तियाँ हैं । पुस्तक की भाषा बहुत ही सरल और श्राम बोल-चाल हैं, यथा-- की है । भारतीय बच्चों के लिए ऐसी पुस्तके अभी कम 'लक्ष्मी पति के कर बसै, पाँच अछर गिनि लेहु । प्रकाशित हुई हैं । इसलिए इस अनूठी पुस्तक से भारतीय पहिलो अच्छर छोड़ि कै, बचे सो माँगे देहु ।' बाल-समाज को अवश्य लाभ उठाना चाहिए। मतलब यह कि विष्णु भगवान् के हाथ में जो रहता है २०-अभिमन्यु की वीरता (कविता)-रचयिता 'सुदर्शन' उसका प्रथम अक्षर छोड़कर 'दर्शन' दो। और प्रकाशक, पण्डित रामचन्द्र शर्मा, मंडावर, बिजनौर तीसरे भाग में भारतीय नरेशों का काव्य-प्रेम दिखाया गया हैं । पृष्ठ-संख्या ३८ और मूल्य ।) है । है। यथा-रहीम एक बार अपनी दानशीलता के फलस्वरूप - इस पुस्तक की कथा का आधार महाभारत का बहुत दीन हो गये थे और अपने भोजन के लिए भाड़ द्रोणपर्व है। पुस्तक का पहला संस्करण समाप्त हो जाने के झोंक रहे थे । उस समय रीवा के महाराज ने कहा-"जाके कारण लेखक ने यह दूसरा संस्करण विशेष संशोधन के साथ सिर अस भार, सो कस झोंकत भार अस । रहीम ने उत्तर प्रकाशित किया है । इसकी कविता रोचक और वीर-रसपूर्ण दिया-"रहिमन उतरे पार, भार झोंकि सब भार में ।” चौथे है। इसलिए पाठकों की रुचि इसके पढ़ने की अोर स्वभा- भाग में महाकवि कालिदास और तुलसीदास के सम्बन्ध की वतः आकृष्ट होती है। भाषा सरल और सुपाठ्य है। आख्यायिकायें हैं। इसी प्रकार पाँचवें, छठे, सातवें और बालकों के लिए यह पुस्तक उपयोगी है। श्राठवें भाग में कम से कवियों का काव्य-प्रेम, देहावसान, २१-सदुपदेश-संग्रह-संकलयिता, श्रीयुत रामना- काल की युक्तियाँ, कल्पित किन्तु रोचक कहानियाँ तथा रायण मिश्र, प्रकाशक, साहित्य-सागर-कार्यालय, सुइथा- बिखरे वन-पुष्प समान काव्योचित हास्य का संग्रह है। लेखक कला, जौनपुर हैं । पृष्ठ-संख्या ९० और मूल्य ।।) है। ने संस्कृत, हिन्दी एवं उर्दू तथा अँगरेज़ी तक की हास्य-- संकलयिता ने इस पुस्तक में देशी और विदेशी प्रधान बातों का इसमें समावेश किया है । यह पुस्तक संयत महापुरुषों के सदुपदेशों का संकलन किया है। संसार के और सुन्दर है। हिन्दी-प्रेमियों के लिए संग्रहणीय है। महापुरुषों के उत्तम विचारों की जानकारी के इच्छुक । -गंगाप्रसाद पाण्डेय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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