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________________ १९० सरस्वती . [भाग ३८ १४–विश्वधाय-लेखक, श्रीयुत भगवानदास वर्मा, के प्रति हृत्ताल में उठती हुई शुद्ध, अर्धशुद्ध या अशुद्ध प्रकाशक, साहित्य-सदन, अबोहर (पंजाब)। मूल्य ।) है। तरंगों का शुद्ध चेष्टा-पूत निदर्शन है।" इसमें संकलित हिन्दी में गोपालन-विषयक पुस्तकों का बड़ा अभाव है। कविताओं में प्रायः गीति-काव्य की शैली का अनुसरण विश्वधाय गौमाता के प्रति उदासीनता से देश-वासियों किया गया है। वैराग्य, प्रबोधन तथा विश्व की असारता और विशेषतया देश की भावी अाशात्रों के स्वास्थ्य का प्रदर्शन के द्वारा भगवद्भक्ति की अोर मन को प्रेरित किया क्रमशः जो हास हो रहा है उसके प्रति देशवासियों का गया है। भावों तथा शैली में विशेष मौलिकता नहीं है। ध्यान इधर कुछ वर्षों से आकर्षित हुआ है। हाल में हाँ, कवि-हृदय के स्पन्दन और भावों के आवेग का परिचय बालकों को विशुद्ध और पौष्टिक दूध कैसे मिले, इस विषय ज़रूर मिलता है। कहीं कहीं कुछ पंक्तियाँ कविता की सच्ची पर व्याख्यान देकर हमारे वर्तमान वायसराय महोदय ने सीमा तक पहुँचती हैं, पर अधिकांश के भाव साधारण हैं भी इस आवश्यक प्रश्न की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित और वे गद्य-सा लगती हैं। खड़ी बोली तथा व्रज दोनों किया है । हमारी इस उदासीनता के मूल में गोपालन- भाषाओं का मिश्रण है। सरलता और प्रवाह कविताओं विज्ञान का अज्ञान तथा बालकों की शारीरिक वृद्धि तथा में काफ़ी हैं। पुष्टि में दूध के महत्त्व का न समझना ही प्रधान कारण रहे १७-राजर्षि-ज्योति-(काव्य)-लेखक ठाकुर राम हैं । लेखक ने अपने तीस-बत्तीस वर्ष के क्रियात्मक अनुभव देवसिंह गहरवार ‘देवेन्द्र' हैं । मूल्य ||-) है। पताके आधार पर गोपालन का तथा दूध, दही, लस्सी, गौ के राजर्षि ग्रन्थमाला, कार्यालय, मधवापुर, प्रयाग। घृत श्रादि के गुणों का वर्णन इस पुस्तक में किया है। काशी के उदयप्रताप-कालेज के जन्मदाता भिनगानरेश पुस्तक ग्रामीण भाइयों को लक्ष्य में रखकर लिखी गई है महाराज श्री उदयप्रतापसिंह जू देव का चरित इस और वस्तुतः यह उनके लिए उपयोगी सिद्ध होगी। पुस्तक में कविता में लिखा गया है। भिनगानरेश १५-नव-शक्ति-सुधा-- सम्पादक श्री देवव्रत, प्रका- ने लगभग २० लाख रुपयों का दान देकर क्षत्रिय-कुमारों शक, 'नवशक्ति' कार्यालय, पटना हैं । मूल्य ।) है। की शिक्षा के लिए उक्त कालेज की स्थापना _ 'नवशक्ति' पत्रिका के प्रथम वर्ष में प्रकाशित होने- ग्रन्थ के वही नायक हैं । परन्तु प्रसंगवश कवि ने उनके वाले चुने हुए उपयोगी लेखों, कविताओं तथा कहानियों पूर्व-पुरुषों का वर्णन करके उनकी वंश-परम्परा का परिचय का यह एक छोटा-सा संग्रह है । सम्पादक महोदय ने इस भी पाठकों को कराया है । कविता श्रोजपूर्ण तथा फड़कती संग्रह में जो कृतियाँ संगृहीत की हैं वे उनकी चयन-शक्ति हुई है । स्थान स्थान पर उपमाओं और उत्प्रेक्षाओं का और सूझ का परिचायक हैं । संगृहीत सभी अंश उपयोगी भी काफ़ी समावेश है। पुस्तक में हिमालय-वर्णन तथा और प्रायः उच्च कोटि के हैं । क्या ही उत्तम हो यदि अन्य काशी-वर्णन विशेषरूप से सुन्दर हुए हैं। वर्णन की दृष्टि पत्र-सम्पादक भी अपने पत्रों में प्रकाशित होनेवाले स्थायी- से इस खण्डकाव्य में कवि को अच्छी सफलता मिली। साहित्य का इसी प्रकार पुस्तक के आकार में प्रकाशन है। किन्तु भाषा में कहीं कहीं भर्ती के शब्द भी आ गये । करके उन उपयोगी और उपादेय लेखों की विस्मृति-सागर हैं। भूमिका और वकतव्य ? (वक्तव्य) के गद्य-भाग में में डूबने से रक्षा करें। पुस्तक में संगृहीत कृतियों के लेखक अशुद्ध पद प्रयोगों तथा क्रमहीन एवं शिथिल वाक्यों का तथा कवि, अधिकांश में, हिन्दी के लब्धप्रतिष्ठ व्यक्ति होना खटकता है। हैं । पुस्तक सर्वथा उपादेय है और संग्रहणीय है। -कैलासचन्द्रशास्त्री एम० ए० १६-अन्तर्नाद-रचयिता श्रीजगदीशनारायण १८-हिन्दी-वाक्य-विग्रह-लेखक पण्डित रामतिवारी, प्रकाशक, राधिका पुस्तकालय, हिमन्तपुर, सुरेमन- सुन्दर त्रिपाठी, विशारद, प्रकाशक पण्डित माताशरण शुक्ल, पुर, बलिया हैं । मूल्य ॥) है। सोराम (इलाहाबाद) हैं। पृष्ठ-संख्या ६४ और मूल्य ।। है। इस पुस्तक में लेखक की ४२ कविताओं का संग्रह यह पुस्तक हिन्दी के व्याकरण के सम्बन्ध में है। है। लेखक के शब्दों में "अन्तर्नाद, विशुद्ध (परमात्मा) यह हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन की प्रथमा तथा मध्यमा परी- : Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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