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संख्या २]
नई पुस्तकें
१८९
समझ में आ सकता है । पुस्तक में अनेक स्थलों पर व्यङ्गय- तथा सत्य-समाज-विषयक शंका-समाधान इसमें दिये गये पूर्ण आक्षेप भी विपक्षियों पर किये गये हैं, जिससे लेखक हैं। सभी धर्म और सम्प्रदायों के व्यक्ति इसके विचारों से की उपदेशक-मनोवृत्ति का परिचय मिलता है। अच्छा लाभ उठा सकते हैं। लेखक का उद्देश ऊँचा है और होता यदि सन्ध्या के 'शंप्रधान' इस विवेचन में दोषदर्शन दृष्टि विशाल है । पुस्तक सबके लिए पठनीय है। की प्रवृत्ति को स्थान न दिया जाता। पुस्तक परिश्रम से १२-माफीदारान निबन्ध-माला-ठाकुर सूर्यकुमार लिखी गई है। प्रत्येक आर्य को इससे लाभ उठाना वर्मा । चाहिए। पुस्तक से लेखक के गम्भीर मनन, दृढ़ श्रद्धा माफ़ीदारों की उन्नति व भलाई के लिए इस पुस्तक और मौलिक विवेचन-प्रवृत्ति का परिचय मिलता है। में शिक्षा, ज्ञानोदय और उपासना इन तीन विषयों पर तीन
उपर्युक्त पाँचों पुस्तकें पण्डित बुद्धदेव विद्यालङ्कार जी छोटे-छोटे, किन्तु उपयोगी निबन्ध विभिन्न लेखकों-द्वारा की लिखी हुई हैं। इनमें जिस व्याख्यान-कौशल से काम लिखे गये हैं। इस पुस्तक में विद्यार्थियों की शारीरिक, लिया गया है उससे केवल यही सिद्ध होता है कि वेदरूपी मानसिक और आत्मिक उन्नति के लिए व्यावहारिक सलाह . कल्पवृक्ष के पास. जो जिस भावना से जाता है उसे वही दी गई है। माफ़ीदारों के अतिरिक्त इस पुस्तक से और. अर्थ दीख पड़ते हैं। जैसे पाश्चात्य पण्डितों ने वेदों से भी विद्यार्थी लाभ उठा सकते हैं। सभी निबन्ध विचारअपनी ऐतिहासिक गवेषणाओं को प्रमाणित किया है, उसी पूर्ण, सुन्दर और उपयोगी हैं। पुस्तक, माफ़ी-आफिसर प्रकार भारत में भी वेदों से पौराणिक (ऐतिहासिक) ठाकुर सूर्यकुमार वर्मा, ग्वालियर गवर्नमेंट के पते से मिल याशिक, नैरुक्तिक, आध्यात्मिक आदि अर्थो की प्रणालियों सकती है। का प्रचलन हुआ है। इन विभिन्न मतों के मनीषियों के १३-शंका-समाधान-मयंक-टीकाकार पण्डित विभिन्न अर्थों से जहाँ वेदों की सर्वतो-भद्र वेदवाणी के रामखिलावन गोस्वामी । मूल्य १) है। पता--कबीर-धर्ममहत्त्व का पता चलता है, वहाँ साथ ही साधारण जनता वर्धक कार्यालय, सीयाबाग, बड़ौदा। के लिए इस पहेली की रहस्यमय उलझन और भी बढ़ती गोस्वामी तुलसीदास जी के 'श्रीरामचरितमानस' के जाती है। निःसन्देह वेद-वाणी इन सभी अों की अोर भक्तों और अनुरागियों की परम्परा में 'मानस' के विभिन्न संकेत करती हुई भी ऐसे तत्त्वों का मुख्य-रूप से प्रतिपादन अंशों तथा प्रसंगों पर जो शंकायें उठती तथा उठाई जाती करती है जो वेद के अतिरिक्त अन्य किसी लौकिक प्रमाण हैं, उनके निराकरण के लिए 'मयंक' नामक एक से नहीं जाने जा सकते। पण्डित जी के अर्थ बुद्धि संगत विशाल ग्रन्थ की रचना हुई है। इस विशाल ग्रन्थ होते हुए भी अन्य प्रमाणों से लोक में ज्ञात और प्रसिद्ध का यह संक्षिप्त संस्करण है और 'मयंक' के दोहों पर हैं । अनेक स्थलों में तो पण्डित जी ने वर्तमान लोक- टीकाकार ने विस्तृत व्याख्या लिखी है, जिससे 'मयंक' के ' प्रसिद्ध पदार्थों का वेद में वर्णन दिखला भर दिया है : दोहों का अर्थ स्पष्ट रूप से समझ में आ जाता है । राम के इससे वेदों का अनधिगतगन्तृत्व सिद्ध न होने से प्रामाणिकता लिए कैकेयी ने चौदह ही वर्षों का वनवास क्यों माँगा, में बाधा पड़ती है।
'जनकसुता, जगजननि, जानकी' इस चौपाई में कवि ने ११-धर्म-मीमांसा--लेखक, पण्डित दरबारीलाल सीता के तीन नाम क्यों लिये, भगवान् पद का अर्थ न्यायतीर्थ । पता--हिन्दी-ग्रन्थ-रत्नाकर कार्यालय, हीरा- क्या है, जैसी शंकाओं के समाधान का प्रयत्न इसमें किया बाग़, गिरगाँव, बम्बई।
है। ये शंकायें कहीं-कहीं बड़ी विचित्र तथा मनोरंजक भी । 'सत्य-समाज' की स्थापना सर्व-धर्म-समन्वय की भावना हैं, फलतः उनके समाधान भी वैसे ही हैं। पुस्तक से प्रेरित होकर हुई है। देश, काल और पात्र के अनुसार रामायण-भक्तों के लिए विशेष उपयोगी है। पुस्तक की . धर्म की बाह्य-रूप-रेखा में भेद मानते हुए भी सब धर्मों भाषा तथा छपाई में कहीं-कहीं त्रुटियाँ रह गई हैं, जिनका की सूत्रात्मारूप 'एकता' पर इस समाज की नींव रक्खी संशोधन दूसरी श्रावृत्ति में हो जाना चाहिए । पुस्तक :
गई है। धर्म का स्वरूप, धर्म की मीमांसा, धर्म का उद्देश संग्रहणीय है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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