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संख्या २]
नई पुस्तकें .
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जितना हम बच्चन जी.के 'प्रलाप' में उत्साह और उमंग कहीं पर कहलाया विक्षिप्त, . . तथा चुलबुलाहट पाते हैं, उतनी उनके गीतों के पहले कहीं पर कहलाया मैं नीच ! हिस्से में नहीं है।
सुरीरे । कंठों का अपमान ___इतना सब होने पर भी बच्चन जी के प्रथम श्रेणी के
जगत में कर सकता है कौन ? गीत बड़े रसीले और प्रभाव-पूर्ण हैं । 'मधुबाला' तथा
स्वयं, लो, प्रकृति उठी है बोल 'प्यास' उनमें सर्वप्रथम है। कुछ सुन्दर पदों को हम
विदा कर अपना चिर व्रत मौन ! यहाँ उद्धृत करते हैं।
अरे मिट्टी के पुतलो! आज, मैं मधु-विक्रेता की प्यारी,
सुनो अपने कानों को खोल, मधु के घट मुझ पर बलिहारी,
सुरा पी, मद पी, कर मधुपान, प्यालों की मैं सुषमा सारी,
रही बुलबुल डालों पर बोल । मेरा रुख देखा करती है
(बुलबुल): मधु-प्यासे नयनों की माला!
-केदारनाथ मिश्र 'केदार' मैं मधुशाला की मधुबाला! .. ५--रोगों की अचूक चिकित्सा-लेखक, श्रीयुत
(मधुबाला) · जानकीशरण वर्मा, प्रकाशक, लीडर प्रेस, इलाहाबाद; क्रोधी मोमिन हमसे झगड़ा,
.. मूल्य १॥ पंडित ने मन्त्रों से जकड़ा;
___इस पुस्तक में रोगों की उत्पत्ति और उनकी सरल पर हम थे कब रुकनेवाले,
चिकित्सा-विधि ऐसे सरल शब्दों में और चित्रों-द्वारा जो पथ पकड़ा वह पथ पकड़ा।
समझाई गई है कि उसे साधारण ज्ञानवाली स्त्रियाँ भी ... (मधुपायी)
अच्छी तरह समझ सकती हैं । लेखक ने भोजन के नियम, क्या कहती ? 'दुनिया को देखो', .
व्यायाम, हवा, धूप, आग और पानी का प्रयोग इत्यादि दुनिया रोती है, रोने दो,
विषयों पर पूरा पूरा प्रकाश डाला है और चिकित्सा के मैं भी रोया, रोना अच्छा,
सम्बन्ध में अपने अनुभवों को देकर पुस्तक को विशेष आँसू से आँखें धोने दो,
उपयोगी बनाया है । इस विषय के प्रेमियों को इसका संग्रह . रोनेवाला ही समझेगा
करना चाहिए। कुछ मर्म हमारी मस्ती का।
(प्यास)
'प्यास) .. ६-१०-वेद-विषयक पाँच पुस्तकें-गुरुदत्त-भवन, इन पद्यों में बच्चन जी ने अपने भाव बड़ी सरलता लाहौर-द्वारा प्रकाशित । तथा सुन्दरता के साथ व्यक्त किये हैं। साधारण बात है, (१) शतपथ में एक पथ-पृष्ठ-संख्या ८८ सरल भाषा है, फिर भी ढंग कितना सुन्दर है ! इसी का मूल्य ।) है । एक सुन्दर उदाहरण और लीजिए -
___ यह पुस्तक पण्डित जी के, गुरुकुल-विश्वविद्यालय, जब मानव का अपनी तृष्णा
काँगड़ी, में दिये गये चार व्याख्यानों का संग्रह है। से है इतना चिर दृढ़ नाता,
प्राचीन वैदिक सम्प्रदाय वेद को संहिता तथा ब्राह्मण इन दो तब मैं मदिरा का अभिलाषी
भागों में बाँटता है और दोनों को अनादि तथा अपौरुषेये क्यों जग में दोषी कहलाता।
स्वीकार करता है। किन्तु आर्य-समाज के प्रवर्तक स्वामी
(प्यास) दयानन्द सरस्वती ने. केवल संहिताभाग को ही वेद स्वीकार निम्न पदों में बच्चन जी के भाव प्रशंसनीय हैं। किया है और ब्राह्मणग्रन्थों को ऋषिकृत तथा पौरुषेय लिये मादकता का संदेश
वेद-व्याख्यानमात्र माना है। प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने फिरा मैं कब से जग के बीच,
भी इसी बात को सिद्ध करने का प्रयत्न किया है। लेखक .
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