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________________ १८६ 'सरस्वती पान खिलाना और उनके साथ बातें करना, यामिनी बाबू से बाह्य प्रेम करना, स्थान स्थान पर साधारण बात में व्यंग्य बोलना और उपनिपदों के श्लोक कहना, अपने चाचा, भाई को, यामिनी बाबू के साथ ब्याह करने के धोखे में डाले रहना, अन्त में एक दिन कमला की सहायता से विवाह कर लेना, ये सब विचित्र बातें हैं । नीला का चरित्र उतना अच्छा नहीं अंकित किया गया है । हाँ, कृष्णकुमार की माता का चरित्र चित्रण अच्छा हुआ है। माता का हृदय कितना कोमल और सुन्दर होता है, इसका चित्रण लेखक ने स्वाभाविक किया है। योगेश बाबू की चालाकी का चित्रण भी स्वाभाविक हो सकता है । कमला का स्वार्थत्याग भी सुन्दर है । कृष्णकुमार कमला का ट्यूटर है, किन्तु जब उसे सब बातें मालूम होती हैं तब वह छल करके यामिनी बाबू का विवाह दूसरी स्त्री से करा देती है । यामिनी बाबू जब भीतर जाते हैं तब उन्हें पता चलता है कि उनकी विवाहित स्त्री निरुपमा नहीं है । तात्पर्य यह है कि उपन्यास विचारों की दृष्टि से विचित्र और अनूठा है। भाषा और भाव की दृष्टि से भी रचना सुन्दर है । काव्य की कलित कल्पनायें भी यत्र-तत्र प्राप्त होती हैं । हमारा अनुरोध है कि उपन्यास- प्रेमी निराला जी के इस उपन्यास को अवश्य पढ़ें। विचार-विनिमय के साथ साथ उन्हें समाजवाद की चोटी के सुधारों का दिग्दर्शन होगा और भावुक विचारों का हृदय पर प्रभाव पड़ेगा । I 'गीतिका' निराला जी का एक सुन्दर काव्य है। अब तक निराला जी के जितने ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं उनमें यह ग्रन्थ सबसे सुन्दर और आकर्षक है । निराला जी एक उच्च कोटि के कवि और साथ ही संगीतज्ञ भी हैं। इस गीतिका में आपके १०१ गीतों का संग्रह है । गेय काव्य हिन्दी साहित्य मेंप्राचीन काव्य को छोड़कर - नहीं के बराबर हैं। जो हैं भी उनका प्रयोग गायन में नहीं होता है। हिन्दी के इस अंग की 'गीतिका' - द्वारा अच्छी पूर्ति हुई है। प्रारंभ में लेखक ने गीतों की उपयोगिता पर अच्छा प्रकाश डाला है तथा कुछ संगीत - सम्बन्धी विचार भी व्यक्त किये हैं । बाबू जयशंकर 'प्रसाद' जी के कथनानुसार 'गीतिका' भाव, भाषा और कल्पना की दृष्टि से उच्च कोटि की है। पंडित नन्ददुलारे वाजपेयी ने 'समीक्षा' में गीत-काव्य तथा निराला जी के गीतों की सुन्दर विवेचना की है। गीतिका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ भाग ३८ के गीतों में कल्पना की उड़ान उतनी ऊँची नहीं है, जितनी उनकी अन्य कविताओं में। इससे गीत बहुत आकर्षक और बोधगम्य बन गये हैं । भाषा भी 'गीतिका' की समझ के परे नहीं है । गीतों में मधुरता, कोमलता और प्रवाह का सुन्दर मिश्रण है । पुस्तक के अन्त में कठिन शब्दों और भावों का परिचय दिया गया है। इससे सिद्ध होता है कि जब 'गीतिका' में शब्दकोश देने की आवश्यकता है तब उनकी अपर कवितायें यदि किसी की समझ के परे हों तो क्या आश्चर्य । तथापि 'गीतिका' एक उच्च कोटि का गीतिकाव्य है । गायन की दृष्टि से भी इसका आदर अवश्य होगा। इसमें काव्य की अद्भुत छटा तो है ही । - ज्योति: प्रसाद 'निर्मल' .४ - मधुबाला - रचयिता श्रीयुत बच्चन, प्रकाशक सुषमा निकुञ्ज, इलाहाबाद हैं। पुस्तक पाकेट साइज़ सजिल्द है । मूल्य ११ है । पृष्ठ संख्या १२१ है । / इस पुस्तक में बच्चन जी की 'मधुबाला' नामक कविता तथा १४ गीतों का संग्रह है । 'मधुशाला' तथा 'ख़ैयाम की मधुशाला' को लिखकर बच्चन जी ने हिन्दी के क्षेत्र में ख़ासी ख्याति प्राप्त को है । इस पुस्तक में कुछ गीत जैसे- 'मधुबाला', 'मधुपायी', 'जीवन- तरुवर', 'प्यास' तथा 'बुलबुल' प्रथम श्रेणी के हैं,, बाकी चार-पाँच मध्यम श्रेणी के हैं, और शेष गीत यदि इस पुस्तक में न होते तो कितना अच्छा होता। बात यह है कि बच्चन जी की यह पहली कृति नहीं है, उनकी चौथी पुस्तक है । 'सुराही' नामक गीत में बच्चन जी लिखते हैंमदिरालय हैं मन्दिर मेरे, मदिरा पीनेवाले, चेरे, पंडे-से मधु - विक्रेता का, जो निश दिन रहते हैं घेरे; इसमें मदिरा पीनेवालों की उपमा पंडों से की गई है, जो फ़िट नहीं है । एक बात और हमें इन गीतों में अखरती है, वह इनका इतने बड़े-बड़े होना है । गीत तो छोटे ही सुन्दर होते हैं। हमको 'बड़ों' से भी कोई ऐतराज़ न होता यदि उनकी सुन्दरता केवल उनके बड़े होने से ही न मारी जाती । www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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