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________________ नई पुस्तकें संख्या २ ] प्रकाशक, श्रीयुत ठाकुर अयोध्यासिंह, विशाल भारत बुक डिपो, १९५।१ हरीसन रोड, कलकत्ता हैं । मूल्य २) है । १८५ १- ३ - निराला जी की तीन पुस्तकें (१) सखी - (कहानियों का संग्रह) प्रकाशक - सरस्वती- पुस्तक भंडार, श्रार्यनगर, लखनऊ । पृष्ठ-संख्या १३०, और मूल्य III) है | चित्रण की दृष्टि से 'सखी' और 'न्याय' अच्छी कहानियाँ हैं। 'भक्त और भगवान्' भावुकता और दार्शनिकता से पूर्ण है । 'सखी' में कहानीपन कम और काव्य अधिक है । तो भी इसको पढ़ने पर निराला जी की 'आत्मकथा की कहानी उन्हीं की जबानी' अधिक प्रभाव डालती है । हिन्दी-प्रेमियों के लिए निराला जी की यह नवीन कृति पढ़ने की चीज़ है । 'निरुपमा' निराला जी का मौलिक उपन्यास है । (२) निरुपमा - (उपन्यास) प्रकाशक -- लीडर प्रेस, आपने २ - ३ और भी उपन्यास लिखे हैं । यह उनकी प्रयाग । पृष्ठ संख्या २०० और मूल्य २) चौथी कृति है । इस पुस्तक की कथा इस प्रकार है (३) गीतिका - ( गीतों का संग्रह ) -- प्रकाशक ---- भारतीभंडार, काशी । पृष्ठ-संख्या २०० और मूल्य १ || ) है । पंडित सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' हिन्दी के श्रेष्ठ कवि और सुलेखक हैं । ब तक श्राप छायावादी कविता के ही विशेषज्ञ थे, किन्तु इधर कुछ वर्षों से आप कहानियाँ और उपन्यास लिखने की ओर भी प्रवृत्त हुए हैं। कविता के समान ही आपके गद्य में भी भावुकता, अलंकारिता, दार्शनिकता और दुरूहता भी पाई जाती है । कृष्णकुमार उन्नाव का रहनेवाला है । वह पढ़ने के लिए लन्दन जाता है । वहाँ से डाक्टरी की उपाधि लेकर घर लौटता है. किन्तु नौकरी न मिलने से जूता गाँठने का काम करने लगता है । कृष्णकुमार का घर एक बंगाली ज़मींदार की ज़मींदारी में है। ज़मींदार की लड़की का नाम निरुपमा है। ज़मींदार का कुटुम्ब लखनऊ में रहता है । एक दिन कृष्णकुमार को जूता गाँढते हुए निरुपमा ने देख लिया, और वह उसकी ओर आकृष्ट हो गई । किन्तु निरु - पमा के चचा उसका विवाह दूसरे से करना चाहते हैं । अन्त में निरुपमा की सहायक कमला नामक एक लड़की हुई, जिसने बड़ी चालाकी से निरुपमा (बंगाली लड़की) विवाह कृष्णकुमार (कान्यकुब्ज ब्राह्मण) से करा दिया । बस यही इस उपन्यास की कथा है। इस कथा के साथ और भी दो एक छोटी कथायें भी सम्मिलित हैं । 'सखी' में आपकी आठ मौलिक कहानियाँ संग्रहीत हैं । 'सखी', 'न्याय' और 'सफलता' कथा-साहित्य के अनुरूप हैं । 'देवी', 'चतुरी चमार', 'स्वामी सहजानन्दजी महाराज और मैं' लेखक की जीवन घटनाओं से सम्बन्ध रखती हैं । कहानी लिखने का लेखक का कोई उद्देश होता है, चाहे उसका रूप सार्वजनिक हित हो, चाहे सुधारा त्मक या शिक्षाप्रद । इन कहानियों में उत्तम कहानी का प्रधान गुण प्रकर्षण, मनोरंजन एवं एक विशेष विचार की पुष्टि और हृदय की तल्लीनता भी है। अतएव इनमें पाठकों के लिए कहानी का वैसा मज़ा नहीं है । कहानियों की कथायें आलोचनाओं – कहीं कहीं व्यक्तिगत भी - और विषय के विवेचन से युक्त हैं, जिससे कथा-भाग प्रायः काव्यात्मक-सा हो गया है । 'राजा साहब को ठेंगा दिखाया ' कहानी विचित्र मनोभावों से पूर्ण है। निराला जी एक उच्च कोटि के कलाकार हैं । कलाकार का कार्य कला की रक्षा करना है । व्यक्तिगत विवाद और तर्क को साथ लेने से कला का सौन्दर्य बिगड़ जाता है । जैसे 'चतुरी चमार ' 'कहानी में चतुरी से अर्जुनवा को पढ़ाने के एवज़ में प्रतिदिन • बाज़ार से मांस मँगवाना, पंडित बनारसीदास चतुर्वेदी की चतुरी से तुलना करना आदि व्यक्तिगत बातें हैं । चरित्र की स्त्रियों को अपने घर में आमंत्रित करना, पानी पिलाना, फा. ११ Shree Sudharmaswami Gyaribhandar-Umara, Surat इस उपन्यास का नायक कृष्णकुमार है और नायिका निरुपमा है । इसके लिखने का उद्देश जात पाँत तोड़कर विवाह का समर्थन जान पड़ता है। इसके पात्र लखनऊ और उन्नाव के हैं। इसके अन्य पात्र योगेश, यामिनी, सुरेश, नीला, कमला तथा कुछ ग्रामनिवासी ब्राह्मण किसान हैं। कुष्णकुमार का चित्रण साधारणतया ठीक है, क्योंकि आजकल बेकारी का युग है, पढ़े-लिखों को नौकरी मिलना कठिन हो गया है। किन्तु जूता गाँठने का ही आदर्श उसने जनता के सामने क्यों रक्खा, इसका महत्त्व समझ में नहीं आता है । निरुपमा का चरित्र चित्रण अस्वाभाविक है । निरुपमा का कृष्णकुमार से एकाएक प्रेम करने लगना, उसका अपने भाई और बहन के साथ अपनी ज़मींदारी उन्नाव में जाना, वहाँ उसका खेतों में पैदल घूमना, गाँव * www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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