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________________ सरस्वती [भाग ३८ श्रायेंगे । हम अँगरेज़ों से घृणा नहीं करते। अगर वे हमारे देश में रहना चाहें तो दूध में शक्कर की तरह रह सकते हैं। महात्मा जी ने यह भी स्पष्ट किया कि केवल खादी पहनना काफ़ी नहीं है। खादी के साथ सत्य, अहिंसा और धर्म भी आवश्यक है। उसी दिन महासभा के खुले अधिवेशन में भी महात्मा जी ने यही बात कही । जब तक हम चर्खा और ग्रामउद्योगों को महत्त्व नहीं देंगे, हिन्दू-मुस्लिम-एकता, अछूतोद्धार इत्यादि पर फिर पूरा ध्यान नहीं देंगे, तब तक, केवल व्यवस्थापिका सभात्रों से कुछ लाभ नहीं होनेवाला है। [खुले अधिवेशन का एक दृश्य ।] "अगर हम इन बातों की ओर ध्यान नहीं देगे तो इस बूढ़े कोई व्यक्ति ऐसा . होगा, जिसे इनके प्रति शिकायत का की यह भविष्यवाणी है कि हमें स्वराज्य कभी नहीं कोई मौका मिला हो । फैजपुर में एक और ख़ास बात मिलेगा।” देखने में आई। अधिकतर हिन्दी और मराठी भाषाओं महात्मा जी के इन शब्दों को हमें याद रखने की का ही प्रयोग होता था। ज़रूरत है और उनको अमल में लाना आवश्यक है। इस 'महाकुम्भ' का सबसे महत्त्व का दिन २७ दिसम्बर दुसरा भाषण २९ दिसम्बर को पूज्य मालवीय जी का था। सुबह आठ बजे झण्डा-अभिवादन हुआ । एक नव- हुअा था, जो अपने ढंग का एक महत्त्वपूर्ण भाषण था । . युवक राष्ट्रीय झण्डे की इज़्जत रखने के लिए कई सौ फुट सुविख्यात समाजवादी श्री एम० एन० राय भी इस ऊँचे बाँस पर किस साहस से चढ़ा और अपनी जान की बार इस अधिवेशन में सम्मिलित हुए थे। उन्होंने अब बिलकल परवा न की, यह तो अख़बारों में निकल ही चका निश्चय कर लिया है कि वे कांग्रेस के साथ मिलकर ही है। किन्तु इस बात का ज़िक मैं खास तौर से करना चाहता देश की उन्नति के लिए और स्वराज्य के लिए कार्य करेंगे। हूँ। मेरे विचार में तो यह घटना इस महासभा की एक x x अत्यन्त महत्त्वपूर्ण घटना थी। अब भी हमारे देश में ऐसे राष्ट्रपति का भाषण इस वर्ष छोटा था। लखनऊ नवयुवक हैं जो देश के लिए अपना जीवन खतरे में की कांग्रेस के बाद कोई विशेष बात भी नहीं हुई थी। इस डालने को तैयार रहते हैं। . भाषण में लखनऊ के भाषण का स्पष्टीकरण था। भाषण झण्डा-अभिवादन के बाद प्रदर्शनी में महात्मा गांधी पंडित जवाहरलाल जी नेहरू ने हिन्दी में किया था। का व्याख्यान हुअा। मालूम नहीं, कितने उपस्थित लोगों x ने उसका महत्त्व समझा। कांग्रेस से अलग होने के बाद महासभा के साथ-साथ राष्ट्रभाषा-सम्मेलन, अ. भा० महात्मा जी ने अपने भावों और विचारों को यहाँ पहली किसान-सभा, प्रगतिशील लेखक-सभा इत्यादि के भी बार व्यक्त किया । उन्होंने कहा कि कौंसिलों में जाने से अधिवेशन हुए। स्वराज्य नज़दीक कभी नहीं पा सकता। स्वराज्य तो सूत किसान-सम्मेलन में दो सौ मील पैदल चल कर एक के धागे पर ही निर्भर है। हम चर्खे को भूल गये हैं, इसी जत्था आया था। इसका खूब स्वागत किया गया। इस जत्थे लिए परतन्त्रता के फन्दे से नहीं छट सके। यदि आप के किसानों ने केवल किसानों को ही नहीं, नेताओं को भी सब खादी का व्यवहार करने लगे तो मैं विश्वास दिला प्रभावित किया। सकता हूँ कि लार्ड लिनलिथगो ही स्वयम् कांग्रेस के पास इस अधिवेशन में वास्तव में अभूतपूर्व जोश दिखाई पड़ा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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