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________________ जाग्रत नारिया स्त्रियों के सम्बन्ध में भ्रमात्मक सिद्धान्त लेखिका, श्री कुमारी विश्वमोहिनी व्यास सितम्बर की 'सरस्वती' में हिन्दी के प्रसिद्ध लेखक श्री पहले भाग को सर्वथा छोड़ दिया है या यह कहिए कि । संतराम बी० ए० ने एक लेख लिखा है। शीर्षक उसके अस्तित्व की कल्पना करने तक का कष्ट नहीं . है उसका 'हिन्दू-स्त्रियों के अपहरण के मूल कारण'। उठाया, यद्यपि वही हमारे सामने सबसे बड़ी समस्या है। आज कल काई भी दिन ऐसा नहीं जाता जब समाचार- आपने अपना सारा ज़ोर केवल दूसरे भाग पर ही लगाया पत्रों में स्त्रियों के अपहरण की दो-चार घटनायें छपी न दीख है। दूसरे शब्दों में यह कि स्त्रियों को बहकाकर भगा ले पड़ती हों । इस परिस्थिति में श्री संतराम जी जैसे समाज- जानेवाली घटनाओं को ही आपने अपहरण माना है और सुधारकों का अबलाओं की इस दर्दनाक दशा पर ध्यान उसका उत्तरदायित्व रक्खा है स्त्रियों पर-स्त्रियों की वासनाजाना अाशा का ही चिह्न है। इसके लिए संतराम जी वृत्ति पर। आदरणीय संतराम जी ने यह एक भारी और महिला-समाज की ओर से धन्यवाद के पात्र हैं। परन्तु भद्दी भल की है। वे स्त्री-समाज का उपकार करने की अपेक्षा आपने अपने लेख में कुछ ऐसी बातें लिख दी हैं जिनसे उसका अपकार कर बैठे हैं। यदि इ. भारत की स्त्री-जाति का अपमान होता है। स्त्री-समाज भी किया जाय तो भी लेख एकांगी है, अधूरा है और अधूरे का एक अंग होने के नाते मैं उस सम्बन्ध में यहाँ कुछ विवेचन द्वारा किसी निष्कर्ष पर पहुँचना भ्रांति का प्रचार निवेदन करना आवश्यक समझती हूँ। पहली बात है करना है। अपहरण के सम्बन्ध में। आज-कल अपहरण की जो दूसरी बात मैं यह कहना चाहती हूँ कि श्री संतराम घटनायें हो रही हैं और जो बंगाल की शस्यश्यामला जी ने अपनी बातों को सर्वमान्य सिद्धान्त के रूप में उपभूमि में एवं पंजाब के उत्तरी भागों में हो चुकी हैं वे सब स्थित करने की हीन चेष्टा की है। उनका श्राशय यह है कि दो भागों में बाँटी जा सकती है। पहले भाग में वे घट- स्त्रियाँ वासना की दासी हैं, वे कुरूप-सुरूप नहीं देखती. नायें आती हैं जिनमें अभागी अबलायें गुण्डों और बद- इसलिए अपहरण की घटनायें होती हैं, अतएव पुरुषों को माशों-द्वारा बलपूर्वक उड़ाई गई हैं और जिनकी रक्षा उनकी बड़ी सावधानी के साथ रक्षा करनी चाहिए। मैं निरीह और निर्बल हिन्दू नहीं कर सके। दूसरे भाग में वे निहायत अदब के साथ श्री संतराम जी के इस स्वयं निर्मित घटनायें हैं जिनमें गुण्डों ने अबलाओं को बहकाकर और सिद्धान्त का विरोध करती हूँ। आपने इस सिद्धान्त के फुसलाकर अपना मतलब निकाला है। संतराम जी ने समर्थन में दो प्रकार के प्रमाण दिये हैं-भगवान् मनु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat . .www.umaragyanbhandar;com .
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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