SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संख्या २] फैजपुर का 'महाकुम्भ' y८५ ___ इस बार अखिल भारतीय ग्राम-उद्योग-संघ की प्रदर्शनी भी सचमुच ग्रामीण ही थी। देहातों का-सा वातावरण था, पूर्ण सादगी, किन्तु कला और सौन्दर्य से पूर्ण। यह भी पूर्ण सफल रही। २५ दिसम्बर शुक्रवार के प्रातःकाल महात्मा जो ने इसका उद्घाटन किया था। प्रदर्शनी के मैदान में जोश का तूफ़ान उमड़ा पड़ा था। इसके अंदर के बाँस, चटाई, कच्ची लकड़ी आदि से निर्मित स्ट्राल, दफ्तर, मंडप आदि, ग्रामीण जीवन का दृश्य उपस्थित करते थे । खादीविभाग सात हिस्से में विभाजित था-(१) रुई और । दूसरे कच्चे पदार्थों का चौक, (२) औज़ारों का चौक, (३) प्रयोगशाला, (४। ख़ास चीज़ों का चौक, (५) वस्त्र स्वावलंबन-विभाग, (६) अंक-विभाग, और (७) खादी- महात्मा गांधी का प्रदर्शनी में भाषण ।] बाज़ार। गत कई वर्षों से कांग्रेस के साथ प्रदर्शनी हो रही है। काम में लगे रहते थे । यह बात सचमुच बड़ी उनसे तुलना करने से इस वर्ष की प्रदर्शिनी अपने ढंग महत्त्व की थी। की अनूठी हुई है। खादी-मन्दिर ग्रामीण जनता को कई प्रकार की उपयोगी शिक्षा प्रदान करता था, जैसे भोजन की भी अच्छी व्यवस्था थी। एक बड़े हाल खादी-उद्योग, मधुमक्खी-पालन, चर्मालय, रस्सी बुनाई में कई हज़ार लोग एक साथ बैठकर भोजन करते थे। आदि श्रादि । खादी-मन्दिर में केवल खादी ही नहीं अधिकतर बहनें ही खाना परोसती थीं, और सब लोग बल्कि रेशमी, ऊनी आदि कई किस्म के कपड़े मोल भी बड़ी शान्ति से भोजन करते थे। एक दिन तो हम लोगों मिल सकते थे। को करीब एक घंटा बैठकर भोजन का इन्तज़ार करना पड़ा। किन्तु सैकड़ों लोग बड़ी सावधानी से चुपचाप तिलकनगर की सफ़ाई का भी बहुत अच्छा इन्तज़ाम बैठे रहे। लोगों के संतोष और धैर्य को देखकर मैं तो था। सैकड़े पढ़े-लिखे, उच्च जाति के "श्रादर्श भंगी” दंग रह गया। तो भी भोजन-व्यवस्था बहुत अच्छी थी। ५०-५० हज़ार व्यक्तियों के लिए भोजन की व्यवस्था करना असाधारण कार्य था। पाठ पाने में दोनों समय कोई भी व्यक्ति तिलकनगर के भोजनालय में भोजन कर सकता था। एक साथ लगभग २५० पुरुष और १५० स्त्रियाँ खाना प्रारम्भ कर सकते थे । पन्द्रह-बीस औरत परोसती थीं । सफ़ाई, सुन्दरता और सजावट का पूरा ध्यान रखा जाता था । खाने में आटा व चावल हाथ का पिसा-कुटा होता था। भोजन अधिकांश महाराष्ट्र-ढंग पर तैयार होता था। खाने-खिलाने में भेद-भाव किसी बात का नहीं था। स्वागत-समिति की स्वयंसेविकाओं ने अपनी सेवाओं से लोगों को सबसे ज्यादा प्रभावित किया। शायद ही झंडा-अभिवादन। मा. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy