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________________ संख्या २] - अमरीका और योरप में अन्तर १६१ अभी श्रापको टेलीफोन पर बात करने (कॉल) का और हैं। वे आपसे उन सब वस्तुओं की न रसीद लेंगे और न एस्पिरीन की एक डिबिया का बिल देना बाकी है । इसके अापके घर के कड़े में टूटी हुई रकाबियों के टुकड़े देखते साथ ही २० प्रति सैकड़ा कृपया बखशीश भी दिये जाइए! रहेंगे। वे आपको एक सज्जन मानकर आप पर विश्वास फिर अमरीका की रेलगाड़ियाँ ! आपके लिए वहाँ करेंगे। सुख और विश्राम के ऐसे साधन जुटाये गये हैं, मानो आप . आप काई वस्तु ख़रीदते समय भूल से दूकानदार को बीमारी की दशा में सफर कर रहे हैं। रेल के कुली आपसे ज्यादा पैसे दे बैठते हैं । पता लगते ही वह झट श्रापको ऐसे सुन्दर ढंग से व्यवहार करेंगे, मानो श्रापको श्राराम फालतू पैसे लौटा देगा। ऐसा प्रतीत होता है कि अमरीका पहुँचाने पर ही उनका सारा भाग्य निर्भर करता है। इसका में प्रत्येक वस्तु की इतनी प्रचुरता है कि वहाँ किसी को अाशय यह नहीं कि वे लोग सब देवता हैं और निःस्वार्थ- किसी तरह का हलकापन करने की ज़रूरत ही नहीं। परन्तु भाव से सब कहीं प्रसन्नता और माधुर्य बिखेर रहे हैं। योरप में आप चाहे बरसों से चाय. काफ़ी. कपडा को संभवतः यह सब पैसे के लिए है। परन्तु इससे यात्रियों की चम्मच या घी खरीदते रहे हों, फिर भी आपको सदा संदेह कितनी भलाई होती है ? बना रहेगा कि दूकानदार ने कहीं तोल, माप या गिनती में अमरीका विशेष रूप से ईमानदार देश है । घर से कम न दे दिया हो । योरपीय लोगों में धन इकट्ठा करने अाध मील दूर आप चीज़े खरीदते हैं और टांगेवाले के की प्रवृत्ति बनी रहती है । यही उनकी आत्मिक अशान्ति सिपुर्द कर देते हैं । इनमें आपकी पुस्तकें होती हैं, किराना का कारण है । इस डर या अरक्षा का स्वास्थ्य पर. बड़ा होता है, चिट्रियाँ और चेक होते हैं । आप उनको ताले में बुरा प्रभाव पड़ता है। हलवाई की दुकान में नाना प्रकार बंद नहीं करते और न उनकी रखवाली के लिए काई की मिठाइयाँ सजी देखकर एक निर्धन भूखे गँवार के मन अपना आदमी बैठाते हैं। वे घंटों वहाँ खुली पड़ी रहती की जो अवस्था होती है वह किसी से छिपी नहीं । योरपीय हैं । पर क्या मजाल जो उनमें से एक भी वस्तु चुरा ली देशों के लोगों की वैसी ही दशा है । उनकी तबीअत श्रमजाय? टाँगेवाला अपने आप उन्हें आपके मकान पर रीकनों की तरह तृप्त नहीं । पहुँचा देगा। यह बात योरप में कहाँ ? अमरीका में लोग नाना प्रकार की सामाजिक समस्याओं योरप में पुष्प-वाटिकात्रों के इर्द-गिर्द तार के जंगले पर विचार करते हैं और नई नई कल्पनायें तैयार करते हैं। लगे रहते हैं । परन्तु अमरीका में बागों में कोई बाड़ नहीं परन्तु योरप में सारे सामाजिक कार्यक्रम का प्रश्न केवल रहती। अड़ोस-पड़ोस के बच्चे और राह चलते बटोही इतना ही है कि क्या हमें खान-पान और भोग-विलास की खुल्लम-खुल्ला वहाँ जा सकते हैं. इस पर भी कोई फूल नहीं सामग्री सदा मिलती रहेगी, हमसे कभी वह छिन तो नहीं तोड़ता। हमारे पहाड़ी प्रान्तों के सदृश अमरीका में भी जायगी? यारपवालों के लिए यह निश्चय बड़ा महत्त्व कहीं कहीं लोग अभी तक घर को खुला छोड़ जाते हैं, रखता है। इससे उनको शान्ति होती है और वे आराम से ताला नहीं लगाते। ताला लगाकर चाबी को चटाई के साँस लेने लगते हैं। जो मनुष्य कभी अमरीका नहीं गया नीचे रख जाने का रवाज तो वहाँ श्राम है। योरप में ऐसी वह समझता है कि वहाँ लोगों के चेहरों से उतावली और बात नहीं। अशान्ति टपकती होगी। परन्तु अवस्था इसके बिलकुल __ अमरीकन लोग प्रायः उदार होते हैं । आप उनसे विपरीत है। अमरीका के लोग योरप के लोगों की अपेक्षा मकान किराये पर लेते हैं। उसमें कालीन, जाजम, रका- अधिक शान्त देख पड़ते हैं। बियाँ, और दूसरी सैकड़ों छोटी छोटी वस्तुएँ मौजूद होती Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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