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________________ भारतीय ला. श्रीयुत रामनाथ दर उन इने-गिने शिक्षित भारतीयों में हैं जिन्हें नृत्य-कला ने विशेष रूप से आकृष्ट किया है, और जिन्हों ने इसके अभ्यासियों के प्रति जन-साधारण की तिरस्कारपूर्ण भावना की परवा न कर इसका अभ्यास आरम्भ किया है। यह लेख आपके ऐसे ही वातावरण में अध्ययन और अभ्यास का फल है । आपकी बातें विचारणीय हैं । मूल लेख आपने अँगरेजी में लिखा था उसका यह हिन्दी अनुवाद श्री महेन्द्रनाथ पांडेय ने किया है। लेखक, श्रीयुत रामनाथ दर - Ener ह वर्तमान समय का शुभ चिह्न ऐसा देखने में आता है कि एक युवती का नृत्य है कि हम लोगों में से शिक्षित अधिकांश दर्शकों को एक युवक के नृत्य की अपेक्षा अधिक व्यक्तियों की नृत्य-कला की ओर भाता है। इसका कारण केवल नर्तकी का स्त्री होना ही अभिरुचि प्रतिदिन बढ़ती जा रही नहीं है, क्योंकि हम देखते हैं कि जब दो महिलायें नृत्य है। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि करती हैं तब उसका नृत्य अधिक अच्छा समझा जाता। - इस प्राचीन कला की टैगोर और है, जो अधिक सुन्दरता के साथ अंगों का सञ्चालन करती उदयशंकर ने अपने अद्भुत अन्वेषण से सत्यानाश और और अधिक संस्कृत रूप में भाव-प्रदर्शन करती है बनिबदनाम होने से रक्षा की है। हमारे देश के कुछ धनी- स्वत उस महिला के जिसमें इन दो गुणों की कमी होती है, मानी व्यक्ति भी घुघुरू के हुनर की रक्षा अपनी चाहे वह नृत्य-कला के नियमों की विशेषज्ञ ही क्यों न हो। कदरदानी से करने के कारण धन्यवाद के पात्र हैं। भाव- ऐसा मालूम होता है कि नृत्य करनेवालों का एक सम्प्रप्रदर्शन-कला जो प्रभावशाली नृत्य का एक मुख्य अंग दाय ऐसा है-चाहे वह अपनी कला का नाम कुछ भी है, कथाकली के प्रदर्शक और बिन्दा-कालका के विद्यार्थियों रक्खें-जो नृत्यकला के व्याकरण पर ही-खासकर ताल के कारण ही अभी तक जीवित है। नृत्यकला से ही और उसकी पेचीदगियों और बारीकियों पर ही-सबसे जीविका चलानेवाली स्त्रियाँ जिनको समाज ने सदा नीची अधिक ध्यान देता है। और दूसरे छोर पर एक दूसरी राह से देखा है, साधारण नृत्य के द्वारा इस कला की मंडली है, जो केवल बदन के लेोच पर ही मुग्ध हो जाती है। ओर जनता की रुचि बनाये रखने में बड़ी सहायक हुई हैं। जहाँ तक स्त्री-सम्बन्धी आकर्षण का सम्बन्ध है, बहुत नृत्य-कला की अोर जनता की रुचि आकर्षित करने और कुछ नर्तक और दर्शक की मानसिक और हृद्गत दशा पर उसके गुण-प्रदर्शन के लिए आज-कल म्युज़िकल कान्फरसे अवलम्बित है। अपने विचार को अधिक स्पष्ट करने के की जा रही हैं । इन कान्फरसों में जो नाच दिखाये जाते हैं लिए मेरी उन लोगों से जो मेरे इस विचार से सहमत वे दर्शकों को बहुत पसन्द आते हैं, इसमें कोई आश्चर्य न हों, यह प्रार्थना है कि वे उदयशंकर के प्रेम-सम्बन्धी नहीं है, क्योंकि नैतिकता के ढोंग के कारण मनुष्य की नृत्य को देखने के बाद जो असर पड़ा हो उसकी तुलना अान्तरिक तृष्णा की इनसे तृप्ति होती है। इसके अतिरिक्त उस असर से करें जो उनके हृदय पर किसी असभ्य वहाँ हमें एक और बात देखने को मिलती है, जो मेरे युवक-या युवती के-चाहे वह अपने हुनर में कितनी ही विचार से बहुत ही महत्त्व-पूर्ण है, साथ ही अर्थपूर्ण भी। प्रवीण हो-ऐसे ही नृत्य से पड़ा हो, और तब स्वयं दोनों यह उनके लिए और भी महत्त्वपूर्ण है जो इस बात का के अन्तर को समझ लें। दावा कर रहे हैं या चाहते हैं कि भारतीय प्राचीन, नृत्य- इसमें कोई सन्देह नहीं कि प्राचीन नृत्य-कला जिस कला पुनर्वार अपने असली रूप में जीवित हो जाय जिसमें प्रकार आज-कल दिखाई जाती है, उस तरह एक साधावह हमारे हृद्गत उच्च भावों को जागृत और प्रकाशित रण व्यक्ति को उसमें अानन्द नहीं आ सकता, किन्तु कर सके। . निःसन्देह वह इस रूप में प्रदर्शित की जा सकती है और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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