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________________ अमरीका और योरप में अन्तर श्रीयुत सन्तराम, बी० ए० रत से जो युवक अमरीका जाते हैं पड़ती है । अमरीका में आप घर बैठे ही टेलीफोन से घर का share वे उस पर इतने मुग्ध हो जाते हैं सारा सौदा ख़रीद सकते हैं । आपकी मँगाई हुई वस्तु साफ़ OY कि दस-दस बरस तक घर लौटने और सुन्दर पैकट में बन्द आपके पास पहुँच जायगी। र भा का नाम तक नहीं लेते । जब वापस आपको पूर्ण निश्चय रहेगा कि चीज़ औवल दर्जे की होगी, आते भी हैं तब अमरीका को याद दूकानदार घटिया नहीं भेजेगा । अमरीका में इस प्रकार कर कर झूमते रहते हैं। पूछने पर मनुष्य को बहुत-सा अवकाश मिल जाता है। कि अाप स्वदेश को छोड़कर अमरीका की इतनी अधिक क्यों योरप में अच्छी गृहस्थ स्त्री को अवकाश न मिलने की याद किया करते हैं, वे उत्तर देते हैं-महाशय, अमरीका सदा शिकायत रहती है। उसे रोज़ कई घंटे घर की आवश्यक का क्या पूछते हो ? वह देश नहीं, स्वर्ग है । उसके सामने वस्तुओं के ख़रीदने में खर्च करने पड़ते हैं । उसे अच्छी भारत नरक जान पड़ता है। हो सकता है, हमारे युवकों तरकारी तभी मिल सकती है जब वह खुद कुँजड़े की दूकान को भारत के परतंत्र होने के कारण स्वतंत्र अमरीका स्वर्ग पर जाकर ख़रीदे, नहीं तो सड़ीगली के अतिरिक्त उसे पूरी जान पड़ता हो । परन्तु मैंने तो स्वराज्यभोगी योरपवालों भी नहीं मिलेगी। उसे कुँजड़े से भी बढ़ कर चालाक होना को भी अमरीका का गुणगान करते देखा है । इससे मालूम पड़ता है, और इस बात का उसे अभिमान भी रहता है। होता है कि अमरीका में ऐसी अनेक विशेषतायें हैं जो नानबाई की दूकान दूर, दूसरे बाज़ार में, है । योरप योरप में भी नहीं। श्रीमती क्रिस्टा विन्सलो नाम की एक में आपको ताज़ी रोटी तभी मिलेगी जब आप उसकी दुकान आस्ट्रियन देवी अमरीका गई थीं। वे लिखती हैं--"अम- पर जाकर अपने हाथ से चुनकर रोटियाँ लेंगे । तरकारी रीका में क्या बात है जिससे हमारी तबीअत प्रसन्न हो जाती और मांस आपको एक ही दूकान से नहीं मिलेगा। फल है ? क्या कारण है कि जितना सुख मैं यहाँ अनुभव करती और तरकारी के लिए भी दो भिन्न भिन्न दुकानों पर जाना हूँ, उतना किसी दूसरी जगह नहीं ? मेरे अपने देश में पड़ेगा। दूध, अंडे और मक्खन एक जगह नहीं मिल मेरा घर है, सम्पत्ति है, और पक्की आमदनी है । इस सकते । सोम, बुध और शनिवार के सिवा, प्रत्येक वस्तु देश में मेरा कोई सम्बन्धी भी नहीं। मैं यहाँ ठहरी भी बासी मिलती है। बाज़ार के दिनों में मनुष्य को सवेरे मुश्किल से आठ मास हूँ। फिर कारण क्या है ?" उठना पड़ता है, क्योंकि जो किसान मण्डी में चीजें बेचने यही अवस्था प्रत्येक दूसरे अमरीका-प्रवासी विदेशी आते हैं वे दोपहर को बेचना बन्द करके भोजन करने चले की है । जब उससे यही प्रश्न पूछा जाता है तब उसे अनेक जाते हैं ।। छोटे छोटे कारण याद आते हैं । अमरीका में ऐसी सहस्रों दूसरे देशों में क्रय-विक्रय का काम बड़ा थका देनेछोटी छोटी सुविधायें हैं जो जीवन को सुखी बना देती हैं। वाला होता है। दूकानदार और ग्राहक एक दूसरे को पसन्द छोटी छोटी चिन्तात्रों के इस प्रकार दूर हो जाने से, रोज़ नहीं करते । वे एक-दूसरे को चोर समझते हैं। योरप में के झंझटों के इस प्रकार कम हो जाने से गृहस्थ को बड़ा इसे प्रकृति का नियम समझते हैं । जर्मनी में दुकानदार श्राराम मालूम होने लगता है, क्योंकि अपने देश में वह समझता है कि मेरा माल ग्राहक के रुपये से अधिक मूल्यइन्हीं चिन्ताओं और झंझटों के भार के नीचे दबा रहता वान् है। इसलिए उसके एक प्रकार का अभिमान-सा था। अमरीकावाले इसका अनुभव नहीं कर सकते। टपकने लगता है । वहाँ की दुकानों में सदा ग्राहक ही पहले अमरीका में एक विवाहिता स्त्री गृहस्थी को चलाने "धन्यवाद' कहता है। परन्तु अमरीका में बाज़ार करना---- के साथ साथ कोई नौकरी-धन्धा भी बड़े मज़े से कर सकती क्रय-विक्रय करना-एक सामाजिक अनुभव, एक प्रसन्नता है । कारण यह है कि सारा देश इस प्रकार सुसंगठित है कि . की बात है । वहाँ बेचनेवाले की दयालुता गवरीदनेवाले गृह-कार्यों के लिए मनुष्य को बहुत कम दौड़-धूप करनी के द्वारा प्रतिध्वनित हो उठती है। .. . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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