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संख्या २]
अमरनाथ-गुफा की ओर ।
मे देखने लगे हैं । परन्तु पाठक अच्छी तरह जानते हैं कि भारत में ऐसे साधु कितने हैं। ___ रात हमने पंचतरनी में ही काटी। उस दिन सिवा हम दो के वहाँ और कोई यात्री नहीं था। अब हमारे पास खाने-पीने का बहुत थोड़ा सामान रह गया था। दिया सलाई न होने के कारण हमें यात्रियों के चूल्हों की जाँच पड़ताल करनी पड़ी। भाग्य से एक चूल्हे में एक-दो सुलगते अंगारे मिल गये, जिससे हमने अपनी झोपड़ी में
आग जलाई और कुछ चाय आदि भी पकाई । जब तक जागते रहे, अाग सुलगाये रहे और गर्म रहे, परन्तु जब नींद अागई तब खूब सर्दी लगी और रात भर सिकुड़े हुए अपने सानेवाले थैलों में पड़े रहे ।
चौथे दिन प्रात:काल कल खाने-पीने के बाद हम शेपनाग की ओर चल दिये। अाकाश बादलों से साफ़ था
और सूर्य की प्यारी प्यारी किरण मन को बड़ी प्यारी लगती थीं। अब चूँकि उतराई ही उतराई थी, इसलिए चलना कुछ अासान था और काई २ घंटे में हम शेषनाग के पड़ाव में पहुँच गये। यहाँ पहुँचने पर हमें मालूम हुअा कि एक झोपड़ी में चार अँगरेज़ स्त्रियाँ ठहरी हुई
[अमरनाथ की गुफा।] हैं और वे अमरनाथ को जा रही हैं। परन्तु जब हम इस पड़ाव में पहुँचे तब उस समय वे झील की सैर करने और मुलाकात हुई और उन्होंने मुझसे अमरनाथ के सम्बन्ध में फोटो लेने के लिए नीचे गई थीं। इनके लिए बड़ा लम्बा- बहुत-सी बातें पूछी कि हम हिन्दुओं के लिए क्यों यह चौड़ा बन्दोबस्त था। कई बच्चर और कई नौकर और तीर्थस्थान है। हमने रात का खाना उनके यहाँ खाया अनेक प्रकार की खाने की वस्तुएँ थीं। इतना सब कुछ और उस गम खाने में हम मज़ा पाया । होने पर भी में उनकी बड़ी हिम्मत समझता था। परन्तु
पांचवें दिन हम सूर्य निकलने से पहले पहलगाम की मेरे जर्मन मित्र के लिए एक मामूली बात थी। बाद में ओर चल दिये। उतराई ही उतराई होने के कारण उन्होंने मुझे बतलाया कि योरप और ख़ास जर्मनी में स्त्रियों थकावट बहुत ही कम होती थी। हमारी खाने-पीने की
ना एक मामूली और आम बात है। हम धूप सामग्री समाप्त हो गई थी. इसलिए बोझ भी कुछ हलका में लेटे ह । थोड़ा आराम कर रहे थे कि कुछ देर के बाद वे हो गया था। सायंकाल में पहले हम सुन्दर पहलगाम बहादुर स्त्रियाँ अपनी झोपड़ी में आ गई । हमारी उनसे पहुँच गये।
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