________________
१५०
सरस्वती
[ सामान पंचतरनी में रखकर हम घड़ी और केमरा लेकर गुफा के लिए रवाना हुए । ]
और उसी दिन पंचतरनी के पड़ाव को लौट आते हैं। हमने भी ऐसा ही किया । केमरा और पहाड़ी लकड़ी जिसे 'बलम' कहते हैं और जिसकी निचली और लोहे की एक सीख लगी होती है, लेकर गुफा की ओर चल दिये । बाक़ी सामान हमने एक झोपड़ी में बिना किसी का सिपुर्द किये वा ताला लगाये रख दिया। गुफा में ४ बजे के लगभग पहुँच गये। पंचतरनी से चल कर एक पहाड़ी को काट कर एक घाटी में जिसमें गुफा है, उतरना पड़ता है, इस लिए थोड़ी-सी चढ़ाई चढ़नी पड़ी। मार्ग में कई बार बर्फ पर भी चलना पड़ा। कई यात्री गुफा से लौटते हुए मिले घाटी से 'कोई ३०० फुट की ऊँचाई पर है । गुफा जब हम इसको चढ़कर गुफा के नज़दीक पहुँचे तब भीतर से एक साधु के गीत की आवाज़ आई । मेरे मित्र ने जो हिन्दुस्तानी नहीं जानते थे, मुझे आगे कर दिया और स्वयं मेरे पीछे पीछे चलने लगे। गुफा में पहुँचकर हमने साधु जी को प्रणाम किया और आशीर्वाद पाया । गुफा उतनी गहरी नहीं, जितनी ऊँची और चौड़ी है । उसकी सुन्दरता और बनावट को देखकर हम दंग रह गये । प्रकृति की कारीगरी उसकी प्रत्येक बात से व्यक्त होती थी । उस अँधेरी गुफा के बाहर अधिक सदीं थी । उसके एक
I
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
[ भाग ३८
कोने में बर्फ का एक टुकड़ा एक सुन्दर शिवलिंग की शकल में स्थित था । कई यात्री जो वहाँ पर मौजूद थे, पुष्पादि से उसकी पूजा कर रहे थे। थोड़ी देर के बाद सबके सब गुफा से चल दिये। हमारे देखते ही ' देखते कबूतर का एक जोड़ा भी गुफा से बाहर को
उड़ गया ।
साधु जी गुफा • के बीच में अकेले बैठे हुए थे । पिछले १२ वर्ष से वे इस गुफा में अकेले रह रहे हैं । परन्तु सर्दियों में वे श्रीनगर चले जाते हैं । मेरे साथ एक योरपीय को देखकर उन्होंने मुझसे उनकी जाति श्रादि की बाबत पूछा और ज्यों ही मैंने उनको बतलाया कि वे जर्मन हैं, उन्होंने उनके साथ सुन्दर जर्मन भाषा में बातचीत करनी श्रारम्भ कर दी। मेरे मित्र और मैं दोनों यह देखकर हक्का-बक्का से रह गये कि एक साधु और संसार से इतनी दूर एक काली गुफा में और फिर अँगरेज़ी का ही नहीं, बल्कि जर्मन जैसी भाषा का ज्ञान रखता है ! हम कोई एक घंटा तक जर्मन भाषा में ही बातचीत करते रहे । साधु जी कोई ४५ वर्ष के होंगे। वे शीघ्र ही हमारे मित्र बन गये और हमारी हँसी - दिल्लगी में शामिल हो गये । उन्होंने हमें अपने स्टोव पर ( बिना दूध की चाय बनाकर पिलाई और खाने को कुछ बादाम, अखरोट और सूखे फल भी दिये । साधु महाराज नये ढङ्ग से रहते हैं और उनके विचार भी उदार हैं। उन्होंने हमें अपने जीवन की कुछ बातें भी बतलाई । कोई १५ वर्ष तक वे 'जर्मन ईस्ट अफ़्रीका' में 'कस्टम ग्राफिसर' रहे थे, इसलिए जर्मन भाषा खूब अच्छी तरह जानते हैं। इसके अलावा इंग्लिश और भारत की सब भाषायें अच्छी तरह जानते हैं। बड़ी कठि नाई से उन्होंने हमें अपना फोटो लेने की इजाज़त दी । वे जानते हैं कि भारत के साधुत्रों का नाम कितना बदनाम हो चुका है और उनके कितने फोटो योरप के अखबारों में क्यों छपते हैं। उन्होंने हमारे साथ राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, व्यापारिक तथा हर एक विषय पर बातचीत की। कोई दो घंटा के लगभग साधु जी के पास ठहरने के बाद हम पंचतरनी के पड़ाव को लौटे और सूर्य के अस्त होने से पहले वहाँ पहुँच गये 1 उक्त साधु जी विद्वान् और महात्मा हैं। उनकी मुलाक़ात का हम पर बड़ा प्रभाव पड़ा । मेरे जर्मन मित्र भी उस दिन से हमारे साधुत्रों को इज्ज़त
www.umaragyanbhandar.com