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________________ संख्या २] सरकारी झोपड़ियाँ यात्रियों से भरी होने के कारण हमने अपना तम्बू एक कश्मीरी के खेमे के समीप लगाया । यदि हम चाहते तो अगले पड़ाव की ओर उसी दिन चल पड़ते, परन्तु वहाँ के सुन्दर दृश्य ने हमें आगे नहीं जाने दिया । अमरनाथ गुफा की ओर धूप में लेटे हुए उस दृश्य का आनन्द लूट रहे थे । कश्मीरी के चूल्हे पर हमने कुछ चाय ग्रादि तैयार की, जिसके पीने में अधिक स्वाद आया । सायंकाल को काले काले बादल आ गये और रात भर मूसलधार वर्षा होती रही, और कुछ ओले भी पड़े । शीत के मारे रात भर काँपते रहे। एक तो बर्फीले पहाड़, फिर खुला मैदान र सन्नाटे की हवा, तिस पर इतने ज़ोर की वर्षा, सब मिलकर नाड़ियों के रक्त प्रवाह को रोक देने के लिए पर्याप्त थे, ङ्ग-प्रत्यङ्ग ठिठुर रहे थे । हमारे हाथ-पैर ख़ूब काँप रहे थे । हमें कश्मीरियों को बिना जूतों या जुर्राबों के देखकर आश्चर्य हो रहा था। छोटे छोटे बच्चों से लेकर स्त्रियाँ - पुरुष सबके सब इतनी सर्दी में सिवा एक बड़े लम्बे कुर्ते के शरीर ढँकने के लिए और कुछ भी नहीं था । हम हर प्रकार के गर्म वस्त्र पहने हुए थे, फिर भी थरथर काँप रहे थे। हमारा तम्बू 'वाटरप्रूफ़ था, वर्ना जैसी वर्षा वहाँ रात्रि में हुई और जैसी सख़्त सर्दी पड़ी थी, हमारे मज़बूत शरीर भी शायद न बर्दाश्त कर सकते । तीसरे दिन प्रातःकाल जब हमने अपने छोटे-से खेमे से सिर बाहर निकाले तब चारों ओर पर्वतों पर रात को गिरी हुई नई बर्फ़ सूर्य की रश्मियों के नीचे ख़ूब जगमगा रही थी । हम कुछ खाने-पीने के बाद अपना बिस्तर - बोरिया अपनी पीठ पर रखकर तीसरे पड़ाव की ओर चल दिये । चढ़ाई का फिर सामना करना पड़ा, पेड़ों की छाया तो नहीं थी, परन्तु उसके बदले वहाँ की ठंडी वायु थकावट दूर करती जाती थी। पर ठंडी वायु भी थोड़ा और ऊपर चढ़ने पर इतनी तेज़ हो गई कि हमको अपने सिर और कानों को ढाँक कर चलना पड़ा । मेरे विचार में इस यात्रा की सबसे अधिक चढ़ाई इन दोनों पड़ावों अर्थात् शेषनाग और पंचतरनी के बीच में आती है । इसमें कोई शक नहीं कि इतना सामान उठाकर और फिर इतनी खड़ी चढ़ाई चढ़ने से हम बिलकुल पस्त हो गये T Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [पंचतरनी और अमरनाथ के बीच यात्री बर्फ पर चल रहे हैं ।] १४९ थे । परन्तु जब हम पंचतरनी के मैदान में पहुँचे तब वहाँ के सुन्दर और मनभावने दृश्य ने हमारी सब थकावट और टाँगों की पीड़ा दूर कर दी। पंचतरनी का पड़ाव एक खुले मैदान में एक छोटे से नाले के तट पर है । यहाँ पर कुल तीन ही झोपड़ियाँ बनी हुई हैं । यहाँ से थोड़े थोड़े फ़ासले पर चारों ओर बर्फ से लदे हुए पर्वत ही दिखाई देते हैं । 1 कोई ११ बजे का समय होगा जब हम पंचतरनी पहुँच । भूख और थकावट की कोई हद न थी । भाग्य से मेरे एक पञ्जाबी मित्र जो अपनी स्त्री और बाल-बच्चों के साथ वहाँ आये हुए थे, मिल गये । वे अमरनाथ जी के दर्शन कर आये थे और अब लौटने की तैयारी में थे। उनके साथ चार-पाँच टट्टू और दो-तीन कश्मीरी नौकर भी थे । उनके पास खाने-पीने की सामग्री भी बहुत थी । मेरे जर्मन मित्र और मैंने पराठों और हलवे से अपनी अपनी भूख दूर की। उनके चले जाने के पश्चात् साधुओं की 'छड़ी' भी अमरनाथ जी के दर्शन आदि करके पंचतरनी के पड़ाव में लौटकर आ पहुँची और प्राते ही सबके सब खाना पकाने लग गये । उसके बाद सबके सब उसी दिन पहलगाम की ओर चल दिये । 1 पूछने से मालूम हुआ कि पंचतरनी पड़ाव के आगे और कोई स्थान रात में ठहरने के लिए नहीं है । वहाँ से अमरनाथ गुफा कुल ३ वा ४ मील है । अतएव यात्री लोग पंचतरनी से जाकर अमरनाथ जी के दर्शन करते हैं www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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