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सरस्वती
[शेषनाग झील।]
कि प्रातः काल के चले होकर भी हम केवल ४ मील का ही सफर इतनी देर में कर सके ! इसका कारण यहाँ की कठिन चढ़ाई है । थोड़ी चढ़ाई चढ़ने पर ५ मिनट या और कुछ देर तक दम ले-लेकर भागे चड़ना पड़ता है। चन्दनवारी पहुँचने तक हम खूब थक गये थे । यहाँ तक का मार्ग खूप घने जङ्गल से होता हुआ पहलगाम के शीतल नाले के साथ-साथ जाता है। मार्ग में शीतल जल के चश्मे भी स्थान-स्थान पर मिलते हैं, जिससे थकावट कुछ-कुछ दूर हो जाती है। कुछ यात्री यहाँ अपना खानापीना कर रहे थे । झोपड़ियों में मैला होने के कारण हमने अपना तम्बू लगा लिया और रात भर उसमें खूब गहरी नींद सोये चन्द्रमा के निर्मल प्रकाश में इस स्थान की शोभा बहुत ही दर्शनीय हो रही थी।
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दूसरे दिन हाथ-मुँह धोने और कुछ पेट पूजा करने के बाद हम दूसरे पड़ाव शेषनाग की ओर सूर्य निकलने से पहले ही चल दिये । इतना सवेरे चलने का कारण यह था कि तेज़ धूप हो जाने पर चढ़ाई का चढ़ना बुरा-सा लगता है। यहाँ से चढ़ाई ठीक डगमगाती हुई सीढ़ी की तरह है, जिस पर काँपते, शीत से सिसकते, सी-सी करते यात्रियों के समूह के समूह डग बढ़ाते हुए चले जा रहे थे । ज्यों ज्यों ऊपर पहुँचते गये, शीत की भीषणता बढ़ती गई । यहाँ हवा की कमी के कारण साँस लेने में कुछ कष्ट
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रहे थे । कुछ ऊपर जाने पर भी मिले और दूर से बर्फ से दिखाई देने लगे ।
सा होने लगता है और बहुत शीघ्र शीघ्र साँस चलने लगती है।
इस बार थकावट की हद न थी और ख़ास कर मेरे लिए, क्योंकि इस बार तम्बू उठाने की बारी मेरी थी, साथ ही मुगन्धित और छायादार चीड़ और चिनार के वृक्षों का
भी जो हमारी थकावट को हटाने में सहायता
करते थे, अभाव था। अब तो हम सूखे और उजाड़ पर्वतों पर चढ़ हमें बर्फ के कई टुकड़े लदे हुए सुन्दर पर्वत भी
कोई एक बजे के लगभग हम शेषनाग के पड़ाव पर पहुँच गये। यह पड़ाव 'शेषनाग' नाम की एक सुन्दर झील के तट पर बना हुआ है। सूर्य की रश्मियों ने यहाँ
पूर्व ही दृश्य उपस्थित कर रक्खा था । इस झील के तट का बहुत-सा हिस्सा बर्फ़ से ढँका हुआ था । चारों ओर बर्फ़ से लदे हुए, सुन्दर पर्वतों ने इसकी शोभा को और भी बढ़ा दिया था – जिधर देखते, बर्फ ही बर्फ़ दिखाई देती थी ।
यहाँ के मनोहर दृश्य ने हमारी सब थकावट दूर कर दी और इस झील के तट पर घूमने के लिए हम नीचे चले गये । उस समय ऐसा विदित होता था, मानो वर्षों के बाद विश्राम करने का अवसर मिला है ।
यह झील भी हिन्दुओं के लिए एक तीर्थ है। इसका जल स्फटिक या दुग्ध के समान उज्ज्वल है। जल बहुत ही स्वादिष्ठ, शीतल और स्वास्थ्यवर्धक है । अमरनाथ के जानेवाले यहाँ स्नान करते हैं और यथाशक्ति वरुणदेव की पूजा-अर्चना कर की पूजा-अर्चना कर रात्रि भर यथाशक्ति 'मरनाथ' 'अमरनाथ' जपते-जपते काट देते हैं । हमने भी स्नान करने की कोशिश की, परन्तु जल के अधिक ठंडा होने के कारण शीघ्र ही बाहर निकल थाये।
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