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________________ संख्या २] अमरनाथ-गुफा की ओर १४७ हैं । खाने-पीने की तमाम सामग्री यहाँ मिल जाती है । तम्बू और मैदान के टुकड़े यहाँ किराये पर मिलते हैं। मफ़ाई अादि का अधिक ध्यान रखा जाता है । यहाँ से यात्रा के लिए कुली और टटट बहुत आसानी से सस्ते मिल जाते हैं। हम दोनों पहलगाम के सुन्दर जगमगाते नाले के तट पर खड़े थे। जब हमने साधुत्रों के जलूस को अमरनाथ की अोर जाते देखा तो देखते ही हम दोनों के दिल में भी उमङ्ग पैदा हुई। मेरे जर्मन मित्र तो मुझसे भी अधिक उत्सुक हो गये। हमने उसी समय यात्रा करने की तैयारी प्रारम्भ कर दी और कुछ खाने-पकाने की सामग्री भी मँगवा ली। हमने कोई कुली या टटट्र नहीं किया, क्योंकि हम नवयुवक थे और १५ सेर से अधिक तक बोझ अासानी से अपनी पीठ पर लादकर ले जा सकते थे। मेरे जर्मन मित्र मुझसे भी अधिक बोझ उठाने के आदी थे। जर्मनी में फेरी का बड़ा प्रचार है। जर्मनी के हर नवयुवक को चाहे वह किसान का [एक त्रिशूलधारी साधु ।] रोटियाँ, २ दर्जन अंडे, एक सेर चीनी, एक डिब्बा अोवल टीन, अाध सेर मक्खन और थोड़ी-सी चाय थी । इसके सिवा हमारे शरीर पर काफ़ी गर्म वस्त्र थे । परन्तु जब हम यात्रा में चल दिये तब हमें तम्बू का ले जाना कुछ फज़ल-सा ही मालूम हुअा, क्योंकि रियासती झोपड़ियाँ थोड़ी-थोड़ी दूर पर बनी हुई मिलीं । पहला पड़ाव 'चन्दनवारी का पड़ता है। यह पहलगाम से काई ४ मील के फासले पर होगा। हम ११ बजे के लगभग यहाँ पहुँच गये। पाठक यह जानकर हैरान होंगे लेखक अपने तम्बू के बाहर-शेषनाग झील के तट पर ।] लड़का हो या मन्त्री का, ६ महीने के लिए 'लेबर-कैम्प' में रहना पड़ता है । जो ऐसा नहीं करता उसे वहाँ की सरकार दण्ड देती है। यही कारण है कि जर्मन-जाति इतनी बलवान् और संगठित है। ___ अगले दिन सूर्य निकलने पर हम दोनों अपने सफ़री थैलों को अपनी-अपनी पीठ पर लादकर अमरनाथ की ओर चल दिये । हमारे सफरी थेलों में एक 'स्लीपिंग-बैंग', एक हलका-सा तम्बू जिसमें हम दोनों सिर्फ सेा सकते थे, एक बरसाती, एक केमरा, खाने के लिए ३ दर्जन डबल [पंचतरनी पर छड़ी का जलूस ।] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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