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________________ १४६ सरस्वती [भाग ३८ हैं । पहलगाम से चढ़ाई प्रारम्भ होकर गुफा में ही जाकर समाप्त होती है। इस थोड़े-से फासले में लगभग ८ हज़ार फुट की चढ़ाई चढ़नी पड़ती है । इस कठिनता का अंदाज़ा पाठक स्वयं लगा सकते हैं। मैं और मेरे एक मित्र मिस्टर ढिच्ची जो जर्मनी के रहनेवाले हैं, अपनी मोटर-साइकिल पर जिससे हम दोनों सारे भारत का भ्रमण कर रहे थे, अगस्त के महीने में पहलगाम पहुँच गये थे। वहाँ हम एक प्रोफेसर मित्र के यहाँ ठहरे। ये वहाँ अपने कुटुम्ब के साथ तम्बू में रहते थे। तम्बू में रहना हमारे लिए कोई नई बात नहीं थी, परन्तु हमारा तम्बू इतना छोटा था कि हम उसमें सीधे होकर भी नहीं बैठ सकते थे। पर हमारे मित्र के तम्ब बहुत बड़े और ऊँचे थे, उनमें रहना पर्याप्त सुखद था। अतएव हमारे मित्र के तम्बू से हमारे तम्ब का क्या मुकाबिला ! लेखक अपने साज-सामान के साथ ।] है। यहाँ काशी, हरिद्वार, गङ्गोत्री, रामेश्वर और बड़ी दूर-दूर से आये हुए यात्रियों का समागम होता है । साधुओं में संन्यासी, नागा. वैरागी यादि प्रायः सभी अपने अपने दल के मुंड के साथ अपनी-अपनी पताका उड़ाते हुए अमरनाथ जी जाते हैं । चलने का मार्ग बहुत दुर्गम है। चीड़ आदि के विकट जङ्गलों के बीच से होकर जाना पड़ता है। मार्ग निरा चढ़ाई का ही है। पैदल यात्रा पहलगाम से प्रारम्भ होती है। यहाँ से गुफा लगभग ३० मील के फ़ासले पर है। इस मार्ग को यात्री तीन दिन में तय करते [शेषनाग से पर्वत का एक दृश्य ।] पहलगाम जम्मू कश्मीर के राज-मार्ग में एक सुन्दर तथा विचित्र स्थान है। यहाँ के घास के ऊँचे-ऊँचे मैदानों में चीड़ के लम्बे-लम्बे वृक्षों की छाया के नीचे हर गर्मियों में सैकड़ों की संख्या में हिन्दुस्तानियों के तम्बू लग जाते हैं। इन सुन्दर मैदानों के दोनों अोर शीतल और साफ़ पानी के दो नाले बहते हैं। पीत. हरित और अरुण वर्ण के रंग-बिरंगे फूल खिलकर इस स्थान की मनोहरता को कई गुना अधिक बढ़ा देते हैं। पहलगाम तक मोटर पाते जाते हैं । अब तो यहाँ एक बड़ा बाज़ारसा बन गया है और दो-तीन अच्छे होटल भी खुल गये [पहलगाम में इस लेख के लेखक और उनका जर्मन मित्र ।] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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