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अमरनाथ-गुफा की ओर
लेखक, श्रीयुत सी० बी० कपूर एम० ए०, एल-एल० बी०
इम लेग्य के लेखक महोदय माहमी और नव अवक भारतीय हैं। अपने एक जर्मन मित्र के साथ इन्होंने मोटर-माइकिल पर सार भारत का भ्रमण किया है। इसी यात्रा के मिामले में ये हिमालय के दुर्गम माग में स्थित अमरनाथ गुफा की ओर भी गये थे। इस लेख में उमी का रोचक वर्णन है।
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गुका के भीतर --- लेखक और श्री अमरनाथ साधु ।] DAKIR मरनाथ हिन्दुओं का एक प्रसिद्ध और देखकर कुछ हैरान भी हुए कि इतने ठंडे निर्जन
तीर्थ स्थान है । यह स्थान कश्मीर और उजाड़ स्थान में इनका यहाँ कैसे रहना होता है। राज्य की विशाल 'लीदरघाटी में इस स्थान के उच्च शुङ्ग पर स्थित होने के कारण
समुद्रतल से लगभग ४,००० फुट यह सदा हिम से ढंका रहता है। जब शरद ऋतु का र की उँचाई पर स्थित है। यहाँ अन्तिम काल और वसन्त का अागमन होता है. शनैः शनैः
एक गुफा है, जिसमें हिम का एक शीत की भीषणता क्षीण होने लगती है, बर्फ पिघलती है शिवलिंग बन जाया करता है और वही 'अमरनाथ महादेव' और मार्ग साफ हो जाता है। यहाँ की यात्रा जून से है। ज्यों ज्यों शुक्ल पक्ष में चन्द्र देव पूर्णता के पथ पर लेकर सितम्बर के महीनों तक प्रासानी से हो सकती है। अग्रसर होते हैं. त्या-त्यों शिवलिंग भी अपने प्राकार में कश्मीर के महाराज की कृपा से यात्रा मार्ग भी सुन्दर और पृण होता जाता है। प्रकृति देवी की इस अनोखी कारी- काफो चौड़ा बन गया है। प्रति सात मील पर यात्रियों की गरी को देखकर ग्राश्चर्य चकित होना पड़ता है। यह गफा मविधा के लिए झोपडियां बनी हुई कोई ८० फुट ऊँची, ५० फुट चौड़ी और लगभग प्रति वर्ष की जाती है । साधुग्रों का प्रसिद्ध जलूस जिसको ६० फुट गहरी है। कहा जाता है कि शिव जी इस गुफा 'छड़ी' कहते हैं. अगस्त में निकलता है और देखने के में तप किया करते थे। परन्तु मनुष्य-जाति के वहाँ भी जा योग्य होता है। कश्मीर-राज्य की ओर से इन साधु यात्रियों पहुँचने पर वे वहाँ से चले गये और तिब्बत में कैलाश को बहुत सहायता दी जाती है। पर्वत की चोटी पर जाकर अपना ग्रासन लगाया है ! यह प्रत्येक साधु यात्री को सर्दी से मुरक्षित रखने के लिए भी कहा जाता है कि शिव और पार्वती कबूतर और कबूतरी (और भोजन बना सकने के लिए) गले में लटकानेके रूप में आज भी इस गुफा में निवास करते हैं । यह वाली एक-एक दहकती हुई अँगीठी, बर्फ पर काम दे कहाँ तक ठीक है, पाठक स्वयं ही सोच सकते हैं। परन्तु मकनेवाला एक जोड़ा जूता और यात्रा-काल भर के लिए हमने इस कबूतर के जोड़े को वहाँ रहते ज़रूर देखा है खाद्य सामग्री आदि राज्य की अोर से बिना मूल्य दी जाती
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