SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 156
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४४ हैं। उनका विश्वास ठोस चीज़ में है। हवा से बातें करना उन्हें पसन्द नहीं । भविष्य की आशा में वर्तमान को क़त्ल कर डालना उनके स्वभाव में नहीं पाया जाता । सरस्वती "अँगरेज़ श्रमली जीवन का महत्त्व देता है । कल्पना ar विश्वास और तुच्छता की दृष्टि से देखता है । इस बात पर विचार करने में उसे स्वाभाविक रूप से घृणा मालूम होती है कि भविष्य में क्या होगा । इसलिए वह पहले से कभी अपने को किसी मार्ग या नीति के लिए वचनबद्ध करना पसन्द नहीं करता । उसे इस बात का खूब ज्ञान होता है कि अगर मामले ने कोई रूप धारण किया तो जो उचित होगा, कर लेगा । भविष्य की परेशान करनेवाली घटनाओं का आज से ही मुकाबिले के लिए "तैयार होना उसे पसन्द नहीं । 1 "अँगरेज़ अपनी बात का भी धनी होता है। जब वह हाँ कर देता है, उसका मतलब 'हाँ' ही होता है । उसमें [भाग ३८ इतनी निर्भीकता होती है कि 'नहीं' कह सकता है । अँगरेज़ बच्चों को बचपन से ही सिखाया जाता है कि झूठ बोलना बड़ी जिल्लत की बात हैं और किसी को झूठा कहना घोरतम अपमान है ..... " · किन्तु मिस्टर गौबा का यह भाषण एकाएक रुक गया । गाड़ी एकदम ठहर गई । खानसामे ने श्राकर साहब का असबाब बाँधना शुरू कर दिया। मेम साहब बिस्तर से उढकर खड़ी हो गई । तीन मिनट के अन्दर साहब और • मेम साहब डिब्बे के बाहर चले गये । राजा हरपाल सिंह ने करवट बदली। उन्होंने पूछा"साहब बहादुर गये ?” "हाँ, महाराज ।” वेदवत जी ने कहा । "मेम से बियाह किहिन है ?" "हाँ, महाराज । " "बड़े बकबासी जान पड़त हैं। दिमाग़ चाट गये ।” Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat रजनी लेखक, नत्थाप्रसाद दीक्षित, मलिन्द ( १ ) है तम- कालिमा व्याल कराल की, श्यामल पंक्ति छटा छिटकाई । पथ-सा सुर वारण जो वही, विष्णुपदी नदी शीश सुहाई । है नखतावली मुण्ड की माल, विशाल विभा की विभूति रमाई । इन्दु-सा विन्दु ललाट लगा, शिव-सी सजनी रजनी बनि आई । ( २ ) पूजने को किस देवता के पुष्पाक्षत अञ्चल में भर लाई । माल मराल की मंजु बना, युति मानसरोवर की हर लाई । नीलम थाल में आरती के लिये, सुन्दर दीप जलाकर लाई । साज सजाये सदा रहतीं, जब से द्विजराज को हो वर लाई । ( ३ ) इस भाँति से यों चुपचाप भला, किस भाँति कहाँ किससे सुषमा-भरे श्यामल रूप से, है जगती का किससे यह चाँदनी चादर, कैरव-नेत्र कटाक्ष मणिचन्द्र की पाई कहाँ तुम्हें तारक मोतियों का ये खजाना मिला । बतलाना मिला | लुभाना मिला ? चलाना मिला ? www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy