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________________ संख्या २] बेवक्त की शहनाई देती है 'निराशा। मैं भी आपके जवाब में एक अँगरेज़ "वह प्यार करने के योग्य है। मैं तो अँगरेज़ी चरित्र की राय हिन्दुस्तानियों के बारे में सुनाता हूँ। वह लिखता का बड़ा प्रशंसक हूँ।"-गौबा ने कहा । है-एक महान् जातीय दोष जो हिन्दुत्रों में पाया जाता "मैं तो यह बात आपकी पोशाक में, रहन-सहन में ही है, दृढ़ता का अभाव है। कोई भी बात हो, निश्चय कर लेने देख रहा हूँ । यही क्यों, अगर आप अँगरेज़ी चरित्र के भक्त । के बाद अगर उसमें ज़रा भी विघ्न आ जाय (जिन्हें हम न होते तो आपने अपने जीवन की सर्वोत्तम अमूल्य वस्तु अँगरेज़ लोग मामूली विन्न समझेगे) हिन्दू लोग अपने अपना हृदय कदापि एक अँगरेज़ महिला को न सौंप दिया निश्चय पर कायम रहने में बिलकुल असमर्थ हो जाते हैं। होता।" वेदव्रत ने हँसते हुए कहा। और सुनिए, तुम्हारी रीढ़ की हड्डी बड़ी मुलायम होती है, दो मिस्टर गौबा भी हँस पड़े। उन्होंने साँस लेकर कहाघंटे भी डट कर बैठना तुम्हारे लिए असम्भव होता है। तुम "यह बात ठीक हो सकती है। सच तो यह है कि समझते हो कि मनुष्य की स्वाभाविक पोज़ीशन उत्तान है, फ़ेयरप्ले अँगरेज़ी चरित्र का मुख्य गुण है।" लम्बरूप नहीं । तुम्हारी धारणा है कि दौड़ने से चलना मैंने कहा- "मिस्टर गौबा, अँगरेज़ी चरित्र की श्रेष्ठता बेहतर है, चलने से खड़ा रहना, खड़े रहने से बैठ जाना, को हम स्वीकार करते हैं। लेकिन एक बात बतलाइए, बैठने से लेट जाना और लेट जाने की अपेक्षा सो जाना उसका बयान और प्रचार करने से हमारे देश का क्या कहीं अधिक श्रेयस्कर है। फायदा है ? यह तो वेमौके की शहनाई है। हिन्दुस्तानी ___ "लेकिन मैं इस बात को स्वीकार करता हूँ कि अगर लोग अँगरेज़ या फ्रेंच या रूसियों की श्रेष्ठता को सुनकर इसी बात पर अर्थात् मनुष्य के स्वाभाविक पोज़ीशन के उत्साहित नहीं होंगे, बल्कि उनकी हिम्मत और पस्त हो विषय में हिन्दुस्तानी जनता की राय ली जाय और जायगी। बाकायदा चुनाव की तरह वोट पड़ें तो वोट तुम्हीं को “हिन्दुस्तानियों में उत्साह तो उस समय पैदा होगा मिलेंगे । सतत श्रम का सिद्धान्त भारतीय सभ्यता में अगर जब उनके हृदय में अपने पूर्वजों का गौरव होगा, उन्हें जब था तो बहुत दकियानूसी ज़माने में । वर्तमान भारत और अपने भविष्य के लिए आशा बंधेगी। दूसरों की तारीफ़ या मध्यकालीन भारत का लोकमत और लोकाभिलाषा इसके पश्चिमीय राष्ट्रों की श्रेष्ठता का वर्णन सुनकर वे कदापि खिलाफ़ थी और है। हमारी सभ्यता में श्रम को उन्नत नहीं होंगे। लेकिन मैं अँगरेज़ क़ौम के बारे में आपकी नीचा स्थान दिया गया है। परिश्रम श्रीहीनों का काम परख जानना चाहता हूँ। यह बताइए कि आखिर ये है । यह न समझिएगा कि मैं आप लोगों के प्रयत्नों लोग इतने बड़े साम्राज्यवादी कैसे हो गये ?' का तिरस्कार करता हूँ, किन्तु अपने देश की दशा उलफ़तराय जी बोले-"जिन गुणों ने रोमन लोगों को देखते हुए अपने देश के भविष्य में निराशावादी को महान् बनाया था वे इनमें भी हैं । कर्तव्य का पालन होगया हूँ।" करने की इनमें धार्मिक निष्ठा है। जीवन को महत्त्वपूर्ण ___"श्राप पर हीनता की भावना का प्रभाव है ।" वेदवत समझना, उद्देश-प्राप्ति के लिए दृढ़ संकल्प, ख़तरे में निर्भने कहा। यता, विपत्ति में वीरता इत्यादि गुण इनमें खूब पाये जाते ___ "क्या आपने अपने देशवासियों की मनोवृत्ति का हैं। इनके स्वभाव में शुद्धता और ईमानदारी है, न्यायअध्ययन किया है ?” उलफ़तराय ने ज़रा तेज़ी में आकर. परायणता है और चिरस्थायी उत्साह है। रोमन लोग अपने जवाब दिया। को दुनिया भर में श्रेष्ठ समझते थे। अँगरेज़ भी अपने को . वेदव्रत बोले-"मैं तो सिपाही हूँ। लेकिन जो लोग ऐसा ही समझते हैं। राष्ट्रीय आन्दोलन को चलाते हैं वे ज़रूर अध्ययन कर “फिर अँगरेज़ लोगों में व्यक्तिगत रूप से मौलिकता पाई. चुके हैं।" जाती है । अपने मौलिकतायुक्त परिश्रम से और ईमान्दारी "क्या आपने अँगरेज़ी चरित्र को समझा है ?" से उन्होंने बड़े बड़े साम्राज्य जीते हैं, ख़याली पुलाव, स्वप्न . “यह मेरा काम नहीं है ।" के संसार और कल्पना को वे नफ़रत की नज़र से देखते. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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