SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४२ सरस्वती . [भाग ३८ "कुछ हर्ज नहीं, कुछ हर्ज नहीं" राजा साहब कहने शताब्दी पहले के एक शिक्षित यूनानी का था। उसमें कहा उधर कली ने फ़र्शी को उठाकर रख दिया। साहब , था कि जीवन के साधारण व्यवहार में हिन्दुओं के चरित्र और मेम साहब ने भी वह सब देखा था, पर एक बार भी का मुख्य गुण ईमानदारी है। सम्भव है, यह बात 'आई एम सारी' (मुझे दुःख है) तक नहीं कहा, बल्कि कुछ अँगरेज़ों को श्राज विचित्र मालूम हो, लेकिन सच तो उनकी समालोचना यह थी 'मछट्र क्राउडेड' (बहुत भार यह है कि जिस प्रकार दो हज़ार वर्ष पहले यह बात सही हुअा है)। थी, करीब करीब आज भी उतनी ही सत्य कही जा इस अवसर पर राजा साहब ने अद्भुत अात्मसंयम सकती है। अँगरेज़ लोग आज भी अपने हिन्दुस्तानी का परिचय दिया। जो अादमी शेर को ज़मीन पर खड़ा मुलाज़िमों को देखते हैं कि उन लोगों को बड़ी बड़ी होकर मारे और अपने जीवन के और किसी अंग में संयम रक़में सिपुर्द कर दी जाती हैं और वे उनके पास को फटकने तक न देता हो, इस प्रकार चुप रहे, अाश्चर्य- बिलकुल सुरक्षित रक्खी रहती हैं हालाँकि हिन्दुस्तानी जनक था। किन्तु उससे अधिक आश्चर्य की बात उस मुलाज़िम चाहें तो रकम खा जायँ, किसी प्रकार पकड़ में डिब्बे में यह हुई कि इस घटना के ५ मिनट के अन्दर ही भी न आयें और सारी ज़िन्दगी अानन्द से वेदव्रत जी उक्त साहब के साथ प्रेम से हिलते-मिलते “उक्त उद्धरण का यह अर्थ था-अपने देश. दिखाई दिये। वासियों के साथ व्यवहार करने में हिन्दुओं का नव आगन्तुक साहब इत्तिफ़ाक से वेदव्रत जी के पुराने यह गुण विशेष रूप से प्रकट हो जाता है। ये लोग मित्र मिस्टर उलफ़तराय गौबा निकले। ये सज्जन पंजाबी बड़ी बड़ी रकमों का व्यापार इस प्रकार दूरदेशी थे । वेद-प्रचार के लिए अमरीका गये थे और वहाँ से छोडकरं करते हैं कि ये मुर्खता की सीमा तक पहुँच जाते अन्तर्राष्ट्रीय विवाह करके आये थे। वेदव्रत जी ने अपने हैं । किन्तु बहुत कम धोखा होता है। रोज़ सैकड़ों रुपये • मित्रदम्पति का सब लोगों से परिचय कराया। पश्चिमी देशों केवल ज़बानी ज़मानत पर कर्ज लिये-दिये जाते हैं। जो के वर्तमान राजनीति पर बातें होने लगी। हिटलर, मुसो- कुटुम्ब गरीब से अमीर हो जाते हैं, अपने पूर्वजों का सैकड़ों लिनी का ज़िक्र अाया, ट्राटस्की और लेनिन की चर्चा होने बरस का क़र्ज़ अदा कर देते हैं, हालाँकि उस क़र्ज़ का लगी। फ्रांस और ब्लम के सम्बन्ध में हम सबों ने अपनी कोई रुक्का-पुर्जा नहीं होता, सिर्फ महाजन के खाते में अपनी राय प्रकट की। इस वार्तालाप के समय राजा रकम नाम पड़ी होती है । हिन्दुत्रों का सम्पूर्ण सामाहरपालसिंह मौन बैठे रहे। थोड़ी देर के बाद इजाज़त जिक संगठन असाधारण ईमानदारी पर निर्मित हुअा है। लेकर वे अपने बर्थ पर जाकर लेट गये।। राजपूत और ब्राह्मण की वीरता और अात्माभिमान, - मिसेज़ गोवा को भी श्री उलफ़तराय गौबा ने 'डार्लिंग वैश्य और कुर्मियों का परिश्रम और मितव्ययिता अाँखें गो एंड हैव रेस्ट' (प्रिये, जाओ, पाराम करो) कहकर एक रखनेवाला साधारण अादमी भी देख सकता है। सारे बर्थ पर भेज दिया। और वेदव्रत तथा उलफ़तराय की हिन्दू-समाज से श्राप निर्दयता से स्वाभाविक घृणा पायेंगे, बातचीत होती रही। - हिन्दुओं के मन में आपको प्रसन्नता और प्रफुल्लता . "आपके कहने का क्या यह मतलब है कि हिन्दुस्तान मिलेगी और आप यह देखेंगे कि कल्पना-शक्ति, सौन्दर्य और का राष्ट्रीय चरित्र पर्याप्त ऊँचा है "। गौबा ने कहा। हास्य से ये लोग बहुत शीघ्र प्रभावित होते हैं।" "उससे कहीं ज्यादा। देखिए एक अँगरेज़ लिखता है।" उक्त लंबा उद्धरण सुनकर गौबा ने कहा वेदव्रत जी अँगरेज़ी में एक लम्बा वाक्य कह "श्रापका यह उद्धरण मेरे लिए वेदवाक्य नहीं, न गये । यह इन्हें कण्ठस्थ था। स्मरण-शक्ति के इस चम- कुरान की आयत है। मैं तो आँख खोलकर देखता हूँ। त्कार से मुझे आश्चर्य नहीं हुआ। हमारे आर्यसमाजी मेरी किताब तो दुनिया है और सड़क पर चलनेवाले भाइयों की स्मरण-शक्ति, खास कर उद्धरण सुनाने में, हिन्दुस्तानियों का चेहरा इस किताब के पन्ने हैं । इस किताब बहुत तेज़ होती है। वह लम्बा वाक्य ईसवी सन् के दो के पन्नों में बड़े मोटे मोटे टाइप में मुझे लिखी हुई दिखाई Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy