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बेवक्त की
शहनाई
रेलगाड़ी की यात्रा में प्राय. विविध विचारों के लोग आपस में मिल जाते हैं और उनका विवाद बहुत मनोरञ्जक होता है । इस लेख में लेखक महोदय ने एक ऐसी ही यात्रा
और विवाद का वर्णन किया है।
लेखक, श्रीयुत सीतलासहाय
P A RT किन्ड क्लास के डिब्बे में हिन्दुस्तानी- वेदव्रत जी ने राजा साहब का परिचय देते हुए
DATA अँगरेज़-झगड़ा हो ही जानेवाला कहा-"चन्दनपुर-नरेश महाराज हरपालसिंह, चौहानों के से था। परिस्थिति ऐसी थी कि कोई सिरमौर, सच्चे क्षत्री, शिकार-कला के विशेषज्ञ । शेर को
भी ऐसी अवस्था में खानसामे को दो मचान पर से मारना अपने क्षत्रियत्व के खिलाफ समझते
तमाचा मारे बिना नहीं रह सकता हैं। बाकायदा आँखें चार करके ज़मीन से गोली
। था। लेकिन राजा हरपालसिंह ने चलाते हैं।" आश्चर्यजनक अात्मसंयम का परिचय दिया ।
कुछ देर शिकार की बातें होती रहीं। फिर गोली के थोड़ी देर का सफ़र था। सिर्फ लखनऊ से हरदोई निशाने की चर्चा चली। राजा साहब उड़ती चिड़िया तक का । मई के महीने में बरेली जानेवाली शाम की गोली से मार सकते हैं । फिर रेस का ज़िक्र अाया। लेकिन गाड़ी भरी होती है, क्योंकि पहाड़ की ओर उच्च वर्ग का थोड़ी ही देर के बाद हम लोगों की बातचीत निरस होने निष्क्रमण प्रारम्भ हो जाता है। जिस गाड़ी में मैं बैठा लगी, क्योंकि हमारे दोनों के दर्मियान एल० सी० एम० था, इत्तिफ़ाक से मेरे मित्र पंडित वेदव्रत त्रिपाठी भी उसी की संख्या बहुत छोटी थी और वह अवस्था शीघ्र ही आनेगाड़ी में आ बैठे थे। ये चन्दनपुर के ताल्लुक़दार राजा वाली थी कि हम दोनों जम्हाई लेने लगते कि गाड़ी स्टेशन हरपालसिंह के साथ अल्मोड़ा जा रहे थे।
पर रुकी। किसी ने गाड़ी का दरवाज़ा धड़ाक से खोला। __पंडित वेदव्रत विचारों में आर्यसमाजी और व्यावहा- राजा साहब की पेचदान-फ़र्शी जो सामने सुलग रही थी, रिक जीवन में जेल-निवासी राष्ट्रीय कार्यकर्ता और मेरे मित्र तड़ मे जमीन पर गिर पड़ी, मुँहनाल राजा साहब के होठों थे। जेल से छूटे अभी इन्हें केवल तीन हफ्ते हुए थे। से निकलकर शास्त्री जी की गोद में जा पहुँची, चिलम राजा साहब का मेरा परिचय बिलकुल नया था। उनकी चकनाचूर हो गई, हुक्के का पानी गाड़ी के फर्श में फैल अवस्था लगभग ५० वर्ष के होगी, किन्तु हृष्ट-पुष्ट अादमी गया। ये । लम्बी लम्बी मूंछे, चौड़ी पेशानी, बड़ी बड़ी आँखें, दरवाज़ा खुलते ही बाकायदा पोशाक में एक खानसामा कामदार टोपी पहने, विशाल तोंद के साथ आकर वे बर्थ कमरे के अन्दर दाखिल हुया। उसके पीछे दो कुली थे। पर बैठ गये । राजा साहब के आगमन के बाद हमारी खानसामे ने यह सब देखा, पर माफ़ी का एक शब्द भी गाड़ी नाना प्रकार के असबाबों से भर गई थी, क्योंकि वे नहीं कहा। अपनी बिरादरी के रवाज के मुताबिक सम्पूर्ण परिग्रह' के साथ मुझे अाग-सी लग गई और तबीअत चाही कि सफ़र कर रहे थे । इस स्थान पर 'परिग्रह' शब्द में दारा या खानसामे के एक तमाचा जड़ दूं। लेकिन भूल राजा साहब उसका बहुवचन शामिल न समझना चाहिए, क्योंकि इस के ख़िदमतगार की थी। उसने हुक्के को बिलकुल दरवाज़े से वस्तु-विशेष को राजा साहब अपने अन्य रत्नों और मणियों भिड़ाकर रक्खा था; और मुझे बोलने का हक़ भी के समान चन्दनपुरस्थ अपने विशाल भवन 'सिंहगह्वर' में नहीं था। सुरक्षित रख पाये थे और बाकी ज़रूरी और ऐश की राजा साहब उचककर बैठ गये, माथे पर शिकन चीजें सब उनके साथ थीं। हाथ धोने की मिट्टी से लेकर आ गई, किन्तु एक मेम साहब और उनके पीछे योरपीय दातून, दाल, चावल, घी और पलँग तक साथ था, साथ पोशाक पहने एक साहब के आगमन ने राजा साहब की
ही ताश, ह्विस्की की बोतल, ग्रामोफोन और तबला भी था। मनोदशा में तबदीली पैदा कर दी। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-umara, Surat १४१ ....
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