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________________ १४० - सरस्वती [भाग ३८ करें। जब तक किसान का निराशावाद नष्ट नहीं किया सरकार तथा सच्चे सुधारकों में सहयोग भी सम्भव नहीं जायगा तब तक स्थायी रूप से ग्रामोद्धार का कार्य सफल है। अतएव राष्ट्रीय दृष्टिकोण रखनेवाले ग्राम-सुधारकों को नहीं हो सकता। यदि कार्यकर्ता उन्हें श्राशावादी बना सकें स्वतंत्र रूप से ग्रामोद्धार कार्य करना चाहिए। जो लोग तो आधा कार्य हो गया समझना चाहिए। स्वतंत्र रूप से ग्राम-सेवा का कार्य करना चाहते हैं उनके अभाग्यवश भारतवर्ष में ग्रामोद्धार-आन्दोलन उस लिए यह आवश्यक है कि वे पहले तो इस विषय का समय छेड़ा गया है जब संसार भयंकर मंदी का सामना अध्ययन करें, तदुपरान्त किसी ग्राम को केन्द्र बनाकर कर रहा है । खेती की पैदावार का मूल्य बहुत गिर गया उसमें कुछ वर्षों के लिए जम जायँ । हमारे देश में बहुत-से है, इस कारण किसान की आर्थिक स्थिति और भी बिगड़ शिक्षित लोग अपना कार्य-काल समाप्त करने पर भी नगरों गई है। यही नहीं, देश के उद्योग-धंधे भी भीषण अार्थिक का मोह नहीं छोड़ते। यदि रिटायर होकर शिक्षित लोग -मंदी का सामना कर रहे हैं, भारत-सरकार तथा प्रान्तीय गाँवों में बसना और उनमें रहनेवालों की सेवा करना सरकारों की प्रार्थिक दशा शोचनीय हो रही है। ऐसी अपना कर्तव्य समझे तो इस ओर बहुत कुछ हो सकता है। दशा में सरकार इस कार्य के लिए अधिक धन व्यय कर यही नहीं, आवश्यकता तो इस बात की है कि चीन की सके, यह असम्भव है। तो भी भारत सरकार को ग्रामों के भाँति शिक्षित युवक गाँवों की ओर लौटें और अाश्रम उद्धार के लिए तीन काम करने होंगे-(१) प्रान्तीय स्थापित करके ग्राम-सुधार का कार्य करें। श्राज देश के सरकारें लगान को आधा कर दें, (२) ग्रामीण ऋण की शिक्षित नवयुवकों को यह कहने की आवश्यकता हैसमस्या को हल करने के लिए सरकार एक कानून बनाकर "गाँवों की ओर लौटो"। ग्राम-सुधार का कार्य गुरुतर है किसान के ऋण का एक चौथाई महाजन को देकर और यह तभी सम्भव हो सकता है जब राष्ट्र की सम्मिलित किसान को ऋण-मुक्त कर दे, (३) ग्रामोद्धार के लिए शक्ति अर्थात् सरकार और जनता दोनों ही इस कार्य में ऋण लिया जाय और एक योजना बनाकर सारी राजकीय लग जायँ। जब तक ऐसा न होगा तब तक इस कार्य में शक्ति उस ओर लगा दी जाय । ऐसा करने से ग्रामोद्धार पूर्ण सफलता नहीं मिल सकती। इसका यह अर्थ कदापि हो सकता है। नहीं है कि जो लोग इस कार्य में लगे हुए हैं वे अपना __ लेकिन केवल सरकार के ही प्रयत्न से गाँवों की दशा समय नष्ट कर रहे हैं। ग्रामीणों की स्थिति जितनी भी सुधर नहीं सकती। और वर्तमान राजनैतिक परिस्थिति में सुधर सके वही राष्ट्र के लिए अत्यन्त लाभदायक है। सम्बन्ध लेखिका, श्रीमती दिनेशनंदिनी प्रकृति और पुरुष में घनिष्ठ सम्बन्ध है! कीड़े से कुञ्जर और धूल-कण से अनन्त अाकाश एक ___ जङ्गली जानवर और पालतू पशु-पक्षी ही हमारे ही सूत्र में बँधे हैं, और सब सत्य को प्रकाशित करने के निकट आत्मीय नहीं हैं, परन्तु हरित वृक्ष और सब्ज़ घास। लिए एक ही भाषा का उपयोग करते हैं--गो कि लहर प्रभात में खिल मध्याह्न में कुम्हला जानेवाले पुष्प मर्मर ध्वनि करती है, वायु निःश्वास छोड़ती है, मनुष्य और अनन्त काल तक खड़ी रहने वाली चट्टानें, नीलिम बोलता है और -- लहर और वायु भी-जुलाहे ने हम सबको एक ही ताने रमणी का हृदय मौन रहता है !! बाने में बुना है, ग्रहों और मणियों का प्रभाव ही मनुष्य- प्रकृति और पुरुष में घनिष्ट सम्बन्ध है !! जीवन पर नहीं, मगर ज़रें ज़रें तक का जो ब्रह्माण्ड के जीवन-जे में एक रङ्गीन धागा है। . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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