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________________ अरे, ये दो दुर्लभ प्रिय नेत्र, नयन नयनों में लोभी भँवरा है, इन्हीं में छिपा हुआ संसार । नयनों में ही पुष्प-पराग । कराता हमको परिचित विश्व,.. ११ लेखिका, श्रीमती शान्ति नयनों में सांसारिकता है, नयन की महिमा का विस्तार ॥ लाखका नाम नयनों में ही है वैराग ।। इन्हीं में स्वप्न, इन्हीं में सत्य, नयनों में है गौरव-गरिमा, इन्हीं से होता जग-व्यवहार। नयनों में उसका अभिमान । यही हैं छलिया प्राणों की, नयनों में ही भरा हुआ है, . इन्हीं में माया का व्यापार ॥ निज मानापमान का ध्यान । इनमें ही पिछली झाँकी है। नयनों में है। प्रणय-कहानी, इनमें ही अब का उत्साह । नयनों में प्रिय की तसवीर । इनकी ही नौका पर चढ़कर, नयनों में मुग्धा की भूलें, तरना है संसार अथाह ॥ , नयनों में चिन्ता गम्भीर ।। नयनों में है शरद्-पूर्णिमा, नयनों में मद की मादकता, . नयनों में तम है घनघोर । शैशव का चिर भोलापन । नयनों में ही उमड घमड कर. नयनों में तरुणी विधुरा के लेता पारावार हिलोर ।। जीवन का चिर सूनापन ।। इनमें ही हैं मधुर स्मृतियाँ, नयनों में है मिलन-महोत्सव इनमें अन्तर के उद्गार। जीवन का उद्देश्य महान । अरुणोदय की लाली इनमें, कठिन तपस्या करने पर, अरुणा वरुणा की अनुहार ॥ मिलता नयनों को यह वरदान।। यहीं बसा है चतुर खिवैया, नयनों में है चिर उपासना, लेकर सँग में जीवन-नाव। . नयनों में ही बसा उपास्य । यहीं आह, रूठा माँझी है, . नयनों में सूनी उदासता, यहीं पड़ी है टूटी नाव ॥ नयनों में ही है मृदु हास्य ॥ नयनों में ही दौड़ धूप है, __नयनों में है छिपे हुएनयनों में लगता बाजार । अन्तस्तल के भावों की खान । काली पुतली सौदा करती, नयनों में आँसू के मोती बिकता मन अपना भखमार ॥ करती करुणा भर-भर दान || नयनों में है विजय-लालिमा, नयनों में है भय की छाया, नयनों में रण का उत्साह । विह्वल माता के उद्गारनयनों में ही मिट जाने की "पुत्र, न जा रण में, छोटा है, बलि होने की नव-नव चाह ॥ बच्चा, अरे, अभी सुकुमार !" नयनों में है विष की प्याली, नयनों में है पूर्ण चन्द्रमा, नयनों में अमृत की धार। नयनों में चकवा की चाह । जीवित मरता, मृत जीता है, नयनों में स्वाती की बूंदें, नयनों की इच्छा अनुसार ।। नयनों में चातक की आह !! नयनों में संयोग हुआ था, नयनों में ही हुआ वियोग। नयनों में था स्वास्थ्य, और अब नयनों में ही भीषण रोग ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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