________________
१३८
सरस्वती
ठीक यही दशा आज भारतीय ग्रामीण की हो रही है। वर्तमान ख़र्चीले शासन के कारण न सहन किया जा सकनेवाला तथा बढ़ते हुए करों का भयंकर बोझ तथा ज़मींदार के अत्यधिक लगान और सरकार की मालगुज़ारी ने वास्तव में ग्रामीण की रोढ़ तोड़ दी है। ऊपर से महाजन का ऋण और नगरनिवासी व्यापारी, दलाल, वकील, शिक्षितवर्ग आदि के वैज्ञानिक शोषण ने 'तो भारतीय ग्रामीण के अन्तिम रक्तबिन्दु को भी चूस लिया है। अतएव ग्रामों के उद्धार के लिए यह आवश्यक है कि बिना विलम्ब किये उनका बहुमुखी शोषण रोका जाय । तभी पूर्णरूप से ग्रामोद्वार हो सकता है। और यह कार्य एकमात्र भारत सरकार ही कर सकती है।
हमारे इस कथन का यह अर्थ कदापि नहीं है कि ग्राम-सुधार का यह जो देशव्यापी आन्दोलन चल रहा है वह निरर्थक है | ग्राम सुधार आन्दोलन से एक यह लाभ तो अवश्य ही होगा कि ग्रामीण जनता में अपनी दशा के ज्ञान का उदय होगा और भविष्य में उसे स्वयं अपनी स्थिति को सुधारने की इच्छा होगी। अब हमें देखना यह है कि देश में जो कुछ भी ग्राम सुधार कार्य हो रहा है उसका श्रादर्श क्या होना चाहिए और ग्राम-सुधार का कार्य करनेवालों का लक्ष्य क्या होना चाहिए ।
यह अत्यन्त आश्चर्य की बात है कि देश में ग्रामसुधार के प्रश्न को लेकर इतनी हलचल मची हुई है, परन्तु अभी तक यह निश्चय नहीं हो सका कि ग्राम सुधार से क्या
भीष्ट है। कोई कार्यकर्ता आधुनिक भारतीय ग्राम को उपयोगिताहीन, निर्जीव संस्था समझता है, अतएव उसके अतएव उसके ध्वंसावशेषों पर एक नवीन ग्राम-संस्था का भवन खड़ा करना चाहता है । उसकी दृष्टि में आधुनिक आर्थिक संगठन के योग्य एक नवीन संस्था को जन्म देना ग्रावश्यक है। दूसरा कार्यकर्ता भारतीय ग्राम में केवल इस प्रकार के परिवर्तन करना चाहता है जिनसे वह आधुनिक आर्थिक संगठन के उपयुक्त बनाया जा सके।
एक बात ध्यान में रखने की है कि जो लोग भारतीय आम को बिलकुल नष्ट कर पश्चिमी देशों में पाये जाने वाले ग्रामों को इस देश में स्थापित करना चाहते हैं वे सम्भवतः यह भूल जाते हैं कि भारतीय ग्राम में ऐसी बहुतसी सुन्दर संस्थायें विद्यमान हैं. जिनकी रक्षा अत्यन्त
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
ཝཱ
[भाग ३८
आवश्यक है। आवश्यकता केवल इस बात की है कि इस औद्योगिक तथा राजनैतिक परिवर्तन के युग में अपने ग्रामों को आधुनिक आर्थिक तथा राजनैतिक संगठन में अपना स्थान सुरक्षित रख सकने के योग्य बना दें। इस लक्ष्य को लेकर ही देश में ग्राम सुधार का कार्य होना चाहिए ।
9
श्राज भारतीय ग्राम-संस्था निर्बल और निर्जीव-सी हो गई है । ग्राम-सुधारक का मुख्य कार्य यह है कि वह इस संस्था को सतेज और बलवान् बना दे । यदि वास्तव में हमें ग्रामोद्वार की इच्छा है तो हमें गाँवों में यह स्थिति उत्पन्न करनी होगी कि ग्रामीण जनता में अपनी स्थिति का सुधार करने की इच्छा बलवती हो उठे । ग्राम-सुधार का कार्य तभी सफल और स्थायी हो सकता है जब सुधार की भावना स्वयं ग्रामीण जनता में उत्पन्न हो जाय । गाँवों पर बाहर से सुधार लादने से सफलता कभी मिल ही नहीं सकती । खेद है कि इस महत्त्वपूर्ण तथ्य की ओर कार्यकर्ताओं का ध्यान बहुत कम गया है। शीघ्रता से सफलता मिलने की आशा में उत्साही कार्यकर्ता गांव की प्रत्येक बुराई को दूर करने के लिए दौड़ पड़ते हैं, परन्तु वे सुधार ग्रामीणों को छूते तक नहीं। फल यह होता है कि जब कार्यकर्ता का उत्साह मंद पड़ जाता है अथवा वह किसी दूसरे क्षेत्र में काम करने के लिए चला जाता है तब फिर उस गाँव की दशा पहले जैसी हो जाती है। गुरगांव के ग्राम-सुधार कार्य ने देश को विशेष रूप से आकर्षित किया था । किन्तु जैसे ही श्रीयुत ब्रायन का यहाँ से तबादला हुआ, वैसे ही वह कार्य भी ठंडा हो गया । श्राज गुरगाँव के गाँवों में जाइए, ग्राम-सुधार कार्य के पूर्व जाइए, ग्राम-सुधार कार्य के पूर्व जैसी दशा थी, लगभग वैसी ही दशा अब फिर हो गई है । ब्रायन साहब ने पिट - लैट्रिन (शौच - गृह) बनवाये थे, किन्तु श्राज कोई उनका उपयोग नहीं करता और वे भरते जा रहे हैं । किसान फिर पोखरों के समीप तथा जङ्गल में शौच के लिए जाने लग गया है। स्कूलों में अब लड़के बहुत कम जाते हैं और लड़कियाँ तो दिखलाई ही नहीं पड़तीं । ब्रायन साहब ने श्राटा पीसने के लिए जो सार्वजनिक बैलों से चलनेवाली चक्कियाँ खड़ी करवाई थीं उनके भग्नावशेष हमें ध्यान दिलाते हैं कि कभी यहाँ चक्की थी। किसान गढ़ों में खाद न बनाकर फिर घूरों पर खाद डालता है । उस सफ़ाई का श्राज चिह्न भी शेष नहीं है जो श्रीयुत प्रायन महोदय के समय में
www.umaragyanbhandar.com