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ग्रामों की की समस्या
लेखक, श्रीयुत शंकरसहाय सक्सेना, एम० ए०
यह प्रसन्नता की बात है कि सरकार और कांग्रेस दोनों का ध्यान प्रामोद्धार की ओर गया है । परन्तु इन दोनों की कार्य-पद्धति ऐसी है कि उससे ग्रामों की समस्या सुलझ नहीं सकती। इस लेख के विद्वान् लेखक ने ग्रामोद्धार सम्बन्धी समस्त संस्थाओं की त्रुटियों का वर्णन करते हुए यह बताने का प्रयत्न किया है कि गाँवों की समस्या क्या है और कैसे सुलझ सकती है।
ज-कल भारतवर्ष में ग्रामोद्धार की जितनी चर्चा सुनाई दे रही है, सम्भवतः ब्रिटिश शासन के पिछले सौ वर्षों में अन्य किसी भी विषय की इतनी चर्चा नहीं हुई। आश्चर्य की बात तो यह है कि देश की एकमात्र दो परस्पर विरोधी शक्तियाँ राष्ट्रीय महासभा और भारत-सरकार दोनों ही ग्रामीणों की सेवा करने में एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करने पर तुले हुए हैं। सरकार का ग्राम-प्रेम एकाएक इतना क्यों बढ़ गया, इसका रहस्य हम भारतवासियों से छिपा नहीं है । बम्बई - कांग्रेस में जैसे ही महात्मा गांधी ने ग्राम-उद्योग संघ की स्थापना की घोषणा की, वैसे ही भारत सरकार का ग्रासन हिल उठा और उसने एक करोड़ रुपया ग्राम सुधार कार्य के लिए प्रान्तीय सरकारों को दे दिया। देखते देखते ग्राम-सुधार कार्य का बवंडर देश में इस प्रबल वेग से उठा कि थोड़ी देर के लिए तो यह प्रतीत होने लगा, मानो ग्रामों का कायापलट होने में देर नहीं है। सरकार का रुख देखकर चाटुकार ज़मींदार, व्यापारी तथा शिक्षितवर्ग के लोग तथा पद-लोलुप धनीवर्ग सभी 'ग्राम-सुधार', 'ग्राम-सुधार' चिल्लाने लगे। वर्तमान वायसराय महोदय के शासनकाल में तो यह चिल्लाहट और भी तीव्र हो गई है ।
परन्तु इस ग्रान्दोलन से एक यह लाभ अवश्य हुना है कि समस्त देश का ध्यान देश के उपेक्षित ग्रामों की र गया है और कतिपय सार्वजनिक संस्थायें स्वतंत्र रूप से ग्रामोद्धार के कार्य में लग गई । व तो राष्ट्रीय महासभा ने भी इस ओर ध्यान दिया है। इस कारण इसका महत्त्व और भी बढ़ गया है। एक बात ध्यान में रखने की है। कांग्रेस तथा सरकार के द्वारा इस आन्दोलन के अपनाये
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जाने के पूर्व ही कतिपय संस्थायें छोटे छोटे क्षेत्रों में यह कार्य कर रही थीं, जिनमें श्री ब्रायन की गुरगाँववाली योजना, कविवर रवीन्द्र के श्रीनिकेतन की योजना, दक्षिण में मालाबार - प्रान्त के अन्तर्गत मार्तण्डम् तथा रथन - पुरम् के केन्द्रों में नेशनल कौंसिल आफ़० वाई० एम० सी० ए० का कार्य, बनारस में श्रीयुत मेहता की योजना, सुंदरबन में श्री हैमिल्टन का ग्रामीण उपनिवेश, गोदावरीज़िले में श्री सत्यनारायन जी का राममंदिर, दक्षिण में श्री देवधर ट्रस्ट तथा जयपुर-राज्यांतर्गत वनस्थली का कार्य उल्लेखनीय हैं। ऊपर लिखी हुई संस्थाओं के अतिरिक्त और बहुत-से सार्वजनिक कार्यकर्ता तथा संस्थायें अपनी अपनी शक्ति के अनुसार इस कार्य में लगी हुई हैं, जिनका यहाँ उल्लेख नहीं किया जा सकता ।
वास्तव में हमारे ग्रामों की समस्या बहुत उलझी हुई है, अतएव जब तक इसका पूर्णरूप से अध्ययन नहीं जाता तब तक ग्राम-सुधार - प्रान्दोलन को सफलता मिलना कठिन है । आज हमारे ग्रामीणों की दशा ठीक उस घोड़े की भाँति है जिसको चारे का अभाव रहता है, शक्ति से अधिक बोझ ढोना पड़ता है, कभी आराम करने को नहीं मिलता, जिससे क्रमशः वह हृष्ट-पुष्ट सुन्दर घोड़ा क्षीण - काय होकर अत्यन्त निर्बल और निर्जीव हो गया है । उस मरणासन्न घोड़े की अत्यन्त शोचनीय दशा देखकर उसका स्वामी सोचता है कि इसको किसी डाक्टर को दिखाना चाहिए और दवा देनी चाहिए, किन्तु यह बात उसके ध्यान में नहीं आती कि सबसे पहला काम उसे यह करना चाहिए कि वह उस निर्बल और भूखे घोड़े को आराम की साँस लेने दे तो वह बिना किसी डाक्टर अथवा विशेषज्ञ की सहायता के ही चंगा हो सकता 1
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