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________________ १३६ । । सरस्वती [भाग ३८ -' + टीकम के श्रोशातुर अन्तर में इस गीत ने एक साड़ी ख़रीदेगा, और कैसे उसे रिझावेगा। और वे औरते अनोखा तूफ़ान खड़ा कर दिया। उसने ज्यों ही अपनी गा रही थीं, चिल्ला रही थीं और बताशों के लिए उतावली कल्पना की आँखों से देखा कि नई दुलहिन अधीर होकर हो रही थीं! - उसकी बाट जोह रही है, त्यों ही उसका मन हर्ष से . अब इसमें तो कोई सन्देह ही नहीं कि उस रात पुलकित हो उठा और चेहरे पर एक अनिवार्य मुसकुराहट टीकम पाँचवीं बार घोड़े पर चढ़ा, मण्डप में गया और छा गई। पाँचवीं दुलहिन के साथ घर अाया। आइए, औरों की .. गानेवालियाँ घर के अन्दर आ गई और उन्होंने तरह हम भी उसे आशीर्वाद दें कि उसका सुहाग अखण्ड मटकों को इस तरह सहेज कर रख दिया कि खंडित न रहे और प्रभु उस बेचारे को फिर-फिर ब्याहने की पीड़ा हों। फिर तो आँगन में छुहारे और बताशे बाँटने की से मुक्त करें। हालाँ कि 'सुहाग' शब्द तो स्त्रियों के लिए धूम मच गई । टीकम छज्जेवाली अपनी खिड़की से नीचे ही बरता जाता है, लेकिन इस ज़माने में, रियायतन, हम उन स्त्रियों को अतृप्त लालसा से एकटक निहारने और पुरुषों के लिए भी उसका उपयोग कर सकते हैं ! यह सोचने में लग गया कि आनेवाली अपनी नई दुलहिन के लिए वह उनमें से किनके जैसे ज़ेवर और किनकी-सी * भारतीय साहित्य-परिषद् के सौजन्य से। कस्तूरी लेखक, श्रीयुत आरसीप्रसादसिंह कुसुमित-गिरि-कानन में द्रुम-दल हिलता; अरे, कहाँ से आज सुरभि यह सरि-पल्वल में अमल-कमल-दल खिलता ! इतनी उमड़ाई ? किन्तु, कहाँ त्रिभुवन में फिर भी मिलता। तृण-तृण में कण कण में कैसी वह मेरा मदमाता ! मादकता. छाई ! हाय न कोई इस रहस्य का मैं पागल बन भटक रहा वन-वन में; उद्गम बतलाता !! जल में, थल में, उपवन-पवन-गगन में ! मेरे सौरभ-मत्त हृदय में, मन में अरे, न जाना जिस पर मैं था अलस-वेदना आई ! इतना बौराया; अरे, कहाँ से आज सुरभि यह वह तो मेरे ही यौवन की इतनी उमड़ाई ? थी मोहन-माया! सुरभित जिससे फूल-पत्तियाँ सारी; हिम-मण्डित गिरि-शृङ्ग-शृङ्खला प्यारी! मुझे न कोई इस रहस्य का होता जिस पर निखिल विश्व बलिहारी; उद्गम बतलाता ! स्वयं न मैंने पाया ! हाय, कहाँ से इतना सौरभ वह तो थी मेरी ही यौवनउमड़-उमड़ आता?. माया की छाया !! (२) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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