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________________ सख्या २] सदा कुँवारे टीकमलाल १३५ ।। जैसा अनुभव इस · बार उसे हो रहा था, पहले कभी नहीं मन, वचन, कर्म से श्रापको छोड़ और किसी का ख़याल हुआ था । घर-घर और गली-गली टीकम की गृहस्थी का तक नहीं किया है, इसलिए निश्चय ही अगले जन्म में 'गुणगान' होता था-बात एक कान से दूसरे कान भी आप ही हमें मिलेंगे। टीकम जी ! हम आपकी बाट पहुँचती थी। कुछ लोगों को हिन्दू समाज के भविष्य की जोह रही हैं । कहिए, आप जल्दी से जल्दी कब तक' चिन्ता होने लगती थी। कहते थे-कैसा अन्धेर है ? इतनी अाइएगा। इस अनोखे सत्य को सुनाकर श्रानन्द में विभोर बड़ी, ग्यारह बरस की, छोकरी ऐसी नासमझ कि ससुराल वे सुन्दरियाँ अट्टहास के साथ अदृश्य हो गई। जाने से घबराये ! हाय भगवान. न-जाने क्या होने बैठा टीकम के पैर झूला झूलते हए रुक गये। उसने आँखें है! कुछ कहते-छोकरी को क्षेत्रपाल ब्याह गया है । कुछ बन्द की और खोलीं । क्या बात थी ? भूत-लीला तो टीकम की कमज़ोरी पर हँसते। नहीं थी? क्या वह सचमुच ही सो गया था या जागते हुए ___ मा को भी बहू के व्यवहार से कुछ कम गुस्सा न कोई सपना देख रहा था ? क्या वाकई ये सब औरते अगले अाता था। बुद्धौती में आराम पहुँचाना तो दूर रहा, इस जन्म में उसे फिर मिलेंगी ? नहीं, अकेली हीरा मिले तो कुलच्छनी बहू के कारण सन्तप्त होकर बुढ़िया सुलच्छनी बस हो। वह तो बेचारी सदा सेवा करती रही । हुक्म की हीरा की याद में घण्टों आँसू ढरकाया करती थी। ताबेदार थी। उसकी भली-बुरी सब इच्छाओं को पूरा रोज़-रोज़ की इस दाँता-किचकिच से कमू को 'फिट करती थी। उसने तो उसे इस लोक में अपना प्रभु ही। अाने लगे। और रही-सही बेचारी दुसाध बन गई। माना था और परमेश्वर की ही तरह उसकी पूजा की अाखिर हार कर टीकम ने मा की सलाह से कम को उसके थी। लेकिन ये दूसरी सब ? इनका क्या होगा ? जब इनमें मैके भेज दिया। से एक एक ने इतनी तकलीफ़ दी है तब ये सब मिलकर ___ सात महीने में कम के एक मरा हुअा लड़का क्या नहीं करेंगी ? इस शंका के मारे उसका मन डांवाडोल हुअा ! और वह भी इस दुनिया से ऊबकर वहाँ चली हो उठा। गई, जहाँ न सास का अातंक था, न पति का त्रास ! मरते- इतने में दूर पर कुम्हार के घर से लौटती हुई स्त्रियों के .. मरते भी उसका भयत्रस्त चेहरा और फटी हुई आँखें गाने की आवाज़ सुनाई पड़ी । अागे-आगे ढोल और ताशे, ऐसी थीं कि न डरनेवाले को भी डराती थीं! तुरही और सहनाई की जो अावाज़ आ रही थी वह मानो यो हिंडोले पर अकेले बैठे-बैठे टोकम के मन में अपने उसके सारे सपनों और सारी कुशंकाओं को लील रही थी। बीते हुए जीवन की ये घटनाये एक के बाद एक ताज़ा वह उठकर खड़ा हो गया और खिड़की के पास जाकर हो रही थीं। और इनकी याद में कभी उसका चेहरा हर्ष ध्यान से सुनने लगा। गीत की पदावली साफ़ सुनाई से खिल उठता. कभी शोक से मुरझा जाता. कभी दुःख पड़ती थी।--- और निराशा से खिन्न हो उठता । अाखिर-आख़िर में जब एक अावे, दूजी अावे, तीजी तड़ा मार कमला के अल्प जीवन की तसवीरें उसकी आँखों के ___ मारो वीजणो रे; सामने से गुज़रने लगी तब किसी दुःस्वप्न की तरह उसका चौथी कागळ मोकले, सवारे वहेलो श्राव, हृदय छटपटा उठा। और फिर सबके अन्त में उसे । मारो वींजणो रे! .ऐसा मालूम हुआ, मानो बिजली, कान्ता, हीरा और 'चौथी क्यों, अब तो पाँचवीं पा रही है'-टीकम कमला, सभी अधर में झूल रही हैं और मानो चारों मन-ही-मन मुसकुराया और बोल उठा। अपनी सब रही हैं---आप फ़िक्र क्यों करते हैं ? पुरानी स्त्रियों की याद, इस अानन्द-ध्वनि की लहरों में, शास्त्रों में लिखा है कि मौत के बाद जब पुनर्जन्म होता है जहाँ की तहाँ विलीन होगई और नई बहू की छवि का ९ तब पति-पत्नी फिर मिलते हैं; इसलिए विश्वास रखिए कि साक्षात्कार करने में उसका मन तत्क्षण तल्लीन हो गया। और श्राप फिर मिलेंगे। अात्मा अमर है; देह की स्त्रियों का दल समीप ा गया था। पहला गीत तरह क्षणभंगुर नहीं। और अपने पिछले जन्म में हमने समाप्त होते ही उन्होंने नया गीत शुरू किया था। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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