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सरस्वती
मुख से मरूँगी। टीकम का कण्ठ रुँध गया, वह एक शब्द भी न बोल सका । चुपके से उसके हाथ में अपना हाथ देकर वह यों खड़ा रहा, मानो कहता हो ―हारा ! इस घड़ी, तुम जो कहोगी, मैं करूँगा । हीरा ने अपने दुर्बल हाथों में उसका हाथ लेकर छाती से लगाया, आँखों को लाया और ग्रह- स्वर में बोली- प्यारे ! आपका यह वचन है न कि मेरे बाद आप फिर ब्याह करेंगे ? बस, यही मेरी एक अभिलाषा थी। अब मैं हलकी हूँ, फूल की तरह हलकी-सुख से, शान्ति से मरूँगी ! टीकम बड़ी कठिनाई से आँखों के बहते मुत्रों को रोकता हुआ वहाँ से उठ खड़ा हुया ।
दो घण्टे के बाद जीवन के सब कर्तव्यों से अवकाश पाकर हीरा की ग्रात्मा अनन्त में विलीन हो गई। टीकम • जीवन में पहली बार फूट-फूटकर रोया । बुढ़िया मा की खों से चौधा आँसू बहने लगे ।
हीरा की बीमारी की चिन्ता और रतजगे के कारण टीकम का स्वास्थ्य बहुत ख़राब हो गया था। उसे दमे ने घेर लिया और खाँसी के मारे प्राण नहों में आ गये । इधर हीरा के बिना घर में पग-पग पर परेशानी उठानी पड़ती थी । होते-होते हीरा को मरे एक महीना बीत गया । एक दिन मा ने हिम्मत बटोर कर कहा- बेटा ! क्या इरादा है तेरा ?
" मेरा इरादा ? मैं तो लुट गया, मा ! अब रक्खा ही क्या है इस जीवन म ?” शोक में डूबे हुए टीकम ने
कहाँ ।
" सच कहते हो, भाई ! हीरा तो हीरा ही थी । उस जैसी न कोई हुई, न होगी । लेकिन दुनिया भी तो देखनी पड़ती है बेटा । यों हउ धरकर बैठने से कैसे काम चलेगा ? मेरा बुढ़ापा है, बच्चे छोटे-छोटे हैं। कल अगर मैं उठ कर चल दी तो कौन है, जो तुझे और तेरे बच्चों को सँभालेगा ?" मा ने गिड़गिड़ाकर कहा - ' - "बेटा, ज़रा अपनी ओर भी तो देख | "
टीकम ने सिर धुनते हुए कहा- "मा, मेरी तक़दीर में सुख ही नहीं है। नहीं, तीन-तीन ब्याह के बाद भी मेरी यह दशा क्यों हो? तो मैं इस संकट में न पड़ेगा । " मा की आँखों के सू सूख गये। स्वर में कठोरता भरकर वह बोली -- पगले कहीं के ! यों कहीं दुनिया
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[ भाग ३८
चली है ? और इस बुढ़ापे में बच्चों का यह झमेला मेरे सिर लादकर क्या तू मेरी बुढ़ौती बिगाड़ना चाहता है ? मैं साफ़ कहे देती हूँ, मुझसे तेरे घर का काम नहीं देखा
जायगा ।
टीकम मुँह लटकाये, खिन्न भाव से, मा की बात सुनता रहा। जीवन की कोरमकोर यथार्थता के आगे करुणा में डूबी भावनाओं की क्या ताब थी कि वे टिकतीं ? आख़िर अनिच्छापूर्वक ही क्यों न हो, उसने अपनी सम्मति दे दी । जाति में उस समय कोई बड़ी उमर की लड़की मिल नहीं रही थी । आखिर दस बरस की एक बालिका के साथ टीकम की सगाई हो गई। मा ने कहा—ग्राज छोटी है तो कल बड़ी भी हो जायगी। जवान आदमी क्या 'रँड़ापे' में दिन काटेगा ।
सहालग में फिर ब्याह निकले। लोगों ने जाना कि टीकम चौथी बार ब्याहने जा रहा है। कहने लगे अव की ज़रूर उसका घर जमेगा। कुछ थे, जो टीकम की ग्रहदशा को कोसते थे; कुछ और थे, जो मङ्गल का दोष निकालते थे । उनके ख़याल से टीकम का यह ब्याह अन्तिम व्याह था ।
लड़की वैसे दस बरस की थी, मगर साल सिंहस्थ का था, इसलिए ब्याह न हो सका। और वह सारा साल टीकम ने एक न एक बीमारी में बिताया ।
जैसे-तैसे वह साल बीता और साल के अन्त में टीकम का ब्याह हुआ। लेकिन अब की बहू इतनी अबूझ आई. कि वह टीकम को देखते ही डर गई। फिर तो वह ससुराल जाने से ही इनकार करने लगी। ज्यों ही ससुराल जाने का समय होता वह चीखने-चिल्लाने लगती, किसी कोठरी में अपने को छिपा लेती और खिड़की की सलाखों को इस मज़बूती से पकड़ लेती कि टस से मस न होती !. लेकिन एक हिन्दू के घर में, एक व्याहता बेटी, जो पराई हो चुकी है, अपने मा-बाप के घर कैसे रह सकती है ? मैकेवाले साँझ पड़ते ही हाथ-पैर बांधकर उसकी गठरी बना लेते और उठाकर ससुराल रख ते । रात में जब वह भयभीत बालिका रोती-चिल्लाती तब पड़ोस के लोग या तो उसकी पर हँसते या टीकम पर तरस लाकर कहते - हाय, बेचारे टीकम की तकदीर में सुख ही नहीं है !
टीकम की यह कोई पहली शादी नहीं थी लेकिन
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