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- सरस्वती
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वेले पैसे की जो चीज़े वह खाने को लात्ती उन्हें, सबो की नज़र चुराकर बड़े प्यार से टीकम को खिलाती और नासमझ टीकम था कि जब तक खाने-पीने का डौल होता, - बैठा रहता, मगर जब कुछ और गड़बड़ होता तोचुपचाप श्रोमा ! देखो, यह मुझे छेड़ती है कह कर चिल्लाता हुआ भाग जाता । उसकी पुकार सुनकर तुरन्त ही मा आती और बहू को बुरा-भला कहने लगती। कहती हू ! तू कितनी नादान है, और कैसी मगरमस्त! मेरे बेटे को क्यों सताती है? फिर तो साँझ पड़ते पढ़ते यह क़िस्सा मुहल्ले के एक-एक घर में चर्चा का विषय बन जाता । साल-दो साल और बीत गये यहू जवान हो गई। छोटे टीकम की जवान बहू यार लोगों के हँसी-मजाक का निशाना बन गई। शुरू-शुरू में तो बेचारी इस ग्राफ़त से बहुत घबराई मगर ज्यों-ज्यों दिन बीतते गये और यह रोज़ मर्रा की एक चीज़ बन गई, बिजली को भी बेहया बनते देर न लगी। उसका पति था, जो बात-बात पर अपनी मा के पास तकरार लेकर जाता और मा एक ही ज़ालिम थी, जिसके त्रास से बेचारी बिजली काँपा करती । इसलिए भी उसे लोगों की शरारत में एक तरह का मीठा मज़ा आने लगा था । वह थी तो सिर्फ़ चौदह बरस की, लेकिन समझदार इतनी थी, मानो चौबीस बरस की हो ।
सास को बहू के रंग-ढंग अच्छे न लगे। बहू की उठती जवानी को रिझाने के लिए अब टीकम तेरह बरस का हो चुका था।
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[ भाग ३
नाम से. मशहूर हो गई। हर कोई उसके बालक- पति और दुखिया सास पर तरस खाने लगा। सबकी सहानुभूति टीकम और उसकी मा के साथ थी। बेचारी बिजली पर अचानक बादल घिर खाये उसे दबाने और कुचलने की जितनी कोशिशें होती उन सबमें समाज का नैतिक बल टीकम के और उसकी मा के साथ रहता ।
शुरू-शुरू में बिजली इन सब बातों से घबराई; लेकिन बाद में वह बहुत ढीठ हो गई और ईंट का जवाब पत्थर से देने लगी। टीकम इस समय पन्द्रह-सोलह बरस का
था,
और उसके लिए सिर्फ एक यही रास्ता रह गया था कि अपने बाप-दादों को तरह वह भी बिजली को डण्डों से पीटा करे और उसकी मस्ती उतारा करे । जब ज़रूरत मालूम होती वह श्राव देखता न ताव, थाली, कटोरी, पत्थर, पटिया, जो हाथ लग जाता वहीं हथियार बनकर टीकम के हाथों बिजली के सिर पर बरसने लगता !
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एक दिन की बात है। बिजली मैके गई थी। साँझ हो गई। लौटने का वक्त बीत गया और बिजली न लौटी। टीकम घर में चक्कर काटने लगा। उसकी मा बड़बड़ाने लगी। जैसे-जैसे समय बीतता गया, उनकी चिन्ता और उनके मिजाज़ का पारा बढ़ता चला गया। दोनों चिन्ता में ही दूबे रह गये और किसी को यह सवाल न श्राया कि जाकर उसे लिवा लायें - ढूँढ लायें । इसी बीच, सौभाग्य से कहिए या दुर्भाग्य से, रात के कोई आठ बजे बिजली दिल में धड़कन लिये, मगर ऊपर से बेहयाई का जामा पहने आई और घर में चली गई । उसे देखते ही टीकम अपनी सारी ताकत लगाकर दहाड़ उठा और बोला"हरामज़ादी, किस के घर अब तक बैठी हुई थी ? मुँह से बोल नहीं अभी कमर तोड़ दूँगा !"
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बात
अब सास भी बहू की हर एक हरकत पर कड़ी निगाह रखने लगी । छोटे-छोटे देवर थे, जो उसकी हर में नमक मिर्च लगाते और मा से कहते थे। पड़ोसियों को उसके चाल-चलन की कुत्सा करने में मज़ा श्राता था । महल्ले के और मदरसे के लड़के थे, जो टीकम के देखते उन दोनों का विकराल रूप बिजली ने देखा तब वह उसकी बिजली का उपहास करते, टीकम की मर्दानगी और सहम गई, उसकी विन्धी बँध गई। बोली- कहीं भी उसके पतित्व की हँसी उड़ाते और टीकम को इस बात के तो नहीं गईं थी । अम्मा को एकाएक दौरा श्रागया, और लिए हरदम उभाड़ते रहते कि वह बिजली पर अपना पति- घर में कोई दूसरा था नहीं, इसलिए मुझे रुक जाना पड़ा । पना जताये और उसकी हरकतों के लिए उसे सूत कर "हूँ, अम्मा को दौरा आया था अम्मा को दौरा! सीधा करे। बेचारी नादान और मुकुमार विजली पर यों खड़ी रह अभी इसी दम, बिजली पर यों खड़ी रह । अभी, इसी दम, तेरा यह सारा दौरा निकाले चौतरफा चढ़ाई होने लगी, और उसकी रक्षा का भार सबने देता हूँ !” डण्डा तैयार ही था बड़ातड़ बिजली की अपनी-अपनी हैसियत के मुताबिक अपने सिर ले लिया । पीठ पर पड़ने लगा, और सास ने इस तरह गालियाँ देनी मारी जाति में बिजली कुलच्छनी और कुलकलंकिनी के शुरू कीं, मानो बेटे को बढ़ावा दे रही हो !
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