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________________ संख्या २] . . . . सदा कुँवारे टीकमलाल ... १२९ और बरात का सभी काम, छोटा और बड़ा, अाज एक-ही प्रकार नज़र दौड़ा रहा था, जिस प्रकार हवाई जहाज़ में दिन में कर लेना था। सबकी सलाह से यह तय हुआ था बैठा अादमी अपने नीचे की दुनिया पर दौड़ाता है। कि आज टीकम घोड़े के बदले गाड़ी पर बैठेंगे, जामा आज से बीस-बाईस बरस पहले अाज ही जैसा एक और सरपंच के बदले सादा रेशमी कोट पहनेंगे और सिर अवसर उसके जीवन में पहले-पहल पाया था; और उस . पर एक नये पल्ले की सादी लाल सुर्व पगड़ी बाँधकर रात समय तो वह सिर्फ दस बरस का बालक था--ऐसा बालक जो को नौ बजे नई दुलहिन को ब्याहने जायेंगे। छगन पाँड़े की चटसाल में तीसरी किताब पढ़ता था ! उन ___ लोगों के ख़याल में टीकम बेचारा एक भला आदमी दिनों वह बहुत कमज़ोर रहा करता था। संगी-साथी थे, था। चार दफ़ा मैट्रिक में फेल हुअा; पिता का देहान्त जो उसे हर तरह चिढ़ाया करते थे। उसे चिढ़ाने में हर होगयाः विधवा मा और दो छोटे भाइयों का बोझ उसके किसी को मज़ा आता था, और जब-जब पांडे जी की नज़र माथे ा पड़ा। सर्राफ़ की दूकान पर ब्याज-बट्टे का धन्धा उस पर पड़ती थी तब-तब वे भी अपने डण्डे से उसकी वह करता था। रोज़ शाम को घर भोजन करने अाता, ख़ातिर किया करते थे। और फिर घर से निकलता तब रात काई ग्यारह बजे लेकिन जिस दिन से उसके ब्याह की बात चली, सभी वापस पाने की फर्सत पाता। अपनी हैसियत के मुताबिक उसे प्रशंसा-भरी आँखों से देखने लगे। उसके हक़ में वह ठीक-ठीक कमा लेता था, पर बेचारे के ग्रह इतने यह एक ही बात उसकी इज़्ज़त बढ़ाने को काफ़ी थी कि कमज़ोर थे कि गृहस्थी जम ही न पाती थी। अगर उस जैसा एक छोटा-सा बालक निकट भविष्य में पति यह अभाव न होता तो दस-पाँच बरस में उसकी गिनती बनने जा रहा है ! उसके दर्जे के और दर्जे के बाहर के उन लोगों में होने लगती जो ख़ुशहाल माने जाते हैं। संगी-साथी भी उसके मुँह से उसकी नन्ही-सी दुलहिन का ___टीकम की मा नीचे काम कर रही थीं । फत्त भी नीचे नाम सुनने को अधीर हो उठते थे, लेकिन उस छोटी उमर श्रोसारे में बैठा चावल बीन रहा था। दोनों भाई कहीं में भी वह इतना पहुँचा हुअा था कि भूलकर भी अपने मुँह बाहर गये थे और उनकी पत्नियाँ कुम्हार के घर मटके से अपनी प्रियतमा का नाम न लेता था। जब टीकम को लेने गई थीं; इसलिए ऊपर, दुमंज़िले पर, टीकम को छोड़ उस समय की यह बात याद आई तब वह मन-ही-मन कुछ और कोई नहीं था। मुसकुरा उठा। ____ ब्याह की ख़ुशी का अवसर होते हुए भी आज उसका उसके बाद ! एक रात का ज़िक्र है--अाधे सोते और मन तनिक उदास-सा था। इससे पहले की चार-चार प्राधे जागते वह अपने से दो बरस बड़ी, बारह बरस शादियों में आज के दिन उसे जो-जो अनुभव हुए थे, सो की, एक दुलहिन को, अपने साथ ले आया। लड़की का सब एक-एक करके उसे याद अा रहे थे और उसकी कन्या-काल बीता जा रहा था; मा-बाप घबराये हुए थे। खिन्नता को बढ़ा रहे थे। मौका पाते ही उन्होंने बिजली का टीकम के साथ बाँध उसके जीवन में सुनहरे सपनों की अब कोई बड़ी दिया और आप हलके हो गये। जिस लड़के से बिजली गुंजाइश नहीं थी। पिर भी एकान्त के कारण कहिए या . की पहली सगाई हुई थी वह बेचारा एकाएक चेचक में आज के असाधारण अवसर के कारण कहिए, झूले के चल बसा था। अगर यह दुर्घटना न होती तो टीकम को हलके झोंकों के साथ, उसकी आँखों के सामने बीते इतनी बड़ी बहू ब्याहने का यह सौभाग्य, इतनी जल्दी, हुए जीवन के अनेकानेक चित्रों का एक समा-सा बँध रहा शायद ही प्राप्त होता ! लेकिन दुनिया का तो यही तरीका था। इससे. कारण आनेवाले सुख में पड़नेवाले विघ्न की है--बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा ही करता है; एक के आशंका से उसका दिल काँप उठता था। यद्यपि उसके रोने में दूसरे का हँसना छिपा रहता है ! मन में खिंचनेवाले ये चित्र नीचे लिखे चित्रों की तरह बिजली सचमुच ही बिजली थी। वह चुपके-चुपके साफ़ और विस्तृत नहीं थे, फिर भी अपने भावी सुख के इशारों से टीकम को बुलाती। जब अकेली होती तब हाथ विचारों में लीन उसका मन अपने भूतकाल पर उसी खींचकर उसे अपने पास बैठा लेती और अपने मैके से Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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