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________________ .१२२ सरस्वती • [भाग ३८ हैं। जिसके पास १,०००) यहाँ हो वह ५०.०००) की ज़मीन खरीद सकता है और उसमें २०,०००) के मवेशी भी भर सकता है। कपड़ा-लत्ता सब किश्त पर मिल सकता है। नतीजा यह है कि ज़मींदार महज़ बैंकों या महाजनों के गुलाम हैं। बारिश अच्छी हुई तो लाभ हो जाने की उम्मेद रहती है, नहीं तो सूद व कमीशन देकर मुश्किल से पेट भरता है। उपज का पैसा ज़मींदार के हाथ नहीं पाता। ख़रीददार अपने बचाव के लिए ज़मींदार के बैंक को ही दाम देता है। किसानों के लाभार्थ सहयोग-समितियां स्थापित हैं तथा बोर्ड कायम हैं। मक्खन की पैदावार इस देश में बहुत है। किसान दूध से मलाई अलग कर मक्खन के कार खाने में भेज देता है, जो यहाँ समुचित स्थानों में बने हए हैं। मक्खन बेचने की दर भी यहाँ नियत है. जैसे १२ आने सेर । जितना मक्खन आस्ट्रेलिया की खपत के अलावा होता है, बाहर के मुल्कों में जो दाम मिले उस पर बेच दिया जाता है जो ६ अाने सेर पड़ता है। इन दोनों भावों का औसत निकाल कर बोर्ड जो भाव ठहराता [ यह मेलबोर्न का दृश्य है । सफ़ेद और बड़ी इमारत है, मानो ९ आना सेर, उस हिसाब से किसान के बैंक जो ऊपर दिख रही है वह वार मेमोरियल है।। में मक्खन के कारखानेवाला हर महीने चेक भेज . तरह फूलों से भरा कहीं नहीं पाया। मौसम वसंत का होने देता है। पर भी मुझे तो गृहस्थों की सुरुचि को श्रेय देना उचित सिडने, मेलबोर्न, एडेलेड, पर्थ अादि घूमकर फिर जान पड़ता है। इस प्रदेश में श्राम भी होता है और ब्रिसबेन से हवाई जहाज़ पकड़ने के लिए पाने में समय किसी किसी कोठी में ग्राम के पेड़ बोरे हुए देखकर मुझे की काई बचत नहीं होती थी और खर्च भी बहुत पड़ता बड़ा आनंद मिला। था। इसलिए ब्रिसबेन में आने के तीसरे दिन बाद जो — श्रास्ट्रेलिया में कुल ७० लाख मनुष्य हैं, जिनमें से पी० एन्ड श्रो० कम्पनी का मंगोलिया जहाज़ खुलनेवाला २५ लाख सिडने और मेलबोन में तथा बीस लाख समद्र- था उससे लौटने को तय किया। यह जहाज़ ७ दिन तट के और दूसरे शहरों में रहते हैं। या यों कहिए सिडने, २ दिन मेलबोर्न और १ दिन एडेलेड, १ दिन कि इन ४५ लाख शहरी आदमियों की गुज़र ज़मीन पर फ्रीमेंटल में रुकता जाता था, जिससे जहाज़ पर रहतेकाम करनेवाले २५ लाख व्यक्तियों पर निर्भर है। सर- खाते सारे शहरों का दिग्दर्शन होता था और फ्रीमेंटल से कारी आमदनी इतनी नहीं है कि ख़र्च चल सके । उधार चलने पर नवे रोज़ कोलम्बो पहुँच जाता था । वहाँ से पाँच लेकर ही काम किये जाते हैं। आस्ट्रेलियन सरकार का रोज़ में मैं मदरास होते हुए रंगून पहुँच सकता था। राष्ट्रीय ऋण इतना बढ़ गया है कि उसका सूद अदा २४ सितंबर को यह जहाज़ ब्रिसबेन से खुला। करीब करने के लिए प्रजा पर अनेक कर लगाये गये हैं। तो २० मुसाफ़िर थे । अाठ व्यक्ति तो ऐसे थे जो कोलम्बो और भी ऋण लेना जारी है। यही हवा सारे ज़मींदारों को बम्बई से इसी जहाज़ से कम दर के वापसी टिकट पर आये लगी हुई है। जितनी ज़मीन है, सब बैंकों के पास गिरवी थे और लौटे जा रहे थे। २६ तारीख़ को जहाज़ सिडने है। मवेशी वगैरह भी इसी तरह उधार लेकर लिये गये पहुँचनेवाला था। एक सज्जन ने मुझसे कहा कि श्राप Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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