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________________ रंगून से आस्ट्रेलिया लेखक, श्रीयुत भगवानदीन दुबे श्री दुबे जी की रंगून से आस्ट्रेलिया की हवाई यात्रा का सुन्दर वर्णन सरस्वती के गत अङ्क में प्रकाशित हो चुका है । यह लेख उसी का शेषांश है । इसमें इन्होंने मार्ग-गत नगरों का रोचक वर्णन किया है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat आस्ट्रेलिया के शासन की बागडोर श्राज-कल मज़दूरदल के हाथ में है । मज़दूरों के लाभ के लिए इतने उदार कानून बनाये गये हैं कि किसी को नौकर रखना अपने यहाँ की तरह हाथी बाँधना है । सब तरह के काम करनेवालों के अलग अलग संघ हैं और इन संघों ने मज़दूरी की दर कायम कर रक्खी है । काम करने के घंटे भी नियत हैं । श्राज-कल कम से कम मज़दूरी की दर ३ । पौंड याने क़रीब चालीस रुपये प्रतिसप्ताह के हिसाब से है । इसी तरह प्रतिदिन अथवा प्रतिघंटे की भी मज़दूरी का निर्स बँधा हुआ है। कोई उससे कम नहीं दे सकता । किस पेशेवाला कितने बजे से कितने बजे तक काम करेगा और बीच में कितने बजे कितनी देर की छुट्टी उसे मिलनी चाहिए, यह भी नियत है । तनख़्वाह के अलावा बेकारी टैक्स लगता है। काम करते समय चोट लग जाय तो हर्जाना देने के लिए इन्श्योरेंस भी उतारना पड़ता है। एक घंटे के लिए भी अगर आपने कोई आदमी रक्खा और उसे कुछ चोट आ गई कि आप हर्जाने के ज़िम्मेदार हुए । इन सब बलाओं के मारे अब वहाँ सब अपना अपना काम कर लेते हैं और मज़दूर से काम कराने के नज़दीक नहीं जाते । मज़दूर ८ बजे से १२ बजे तक और डेढ़ से साढ़े पाँच बजे तक काम करते हैं। घर के नौकर नौकरानियों की भी का समय नियत है । छुट्टी के समय अगर किसी से कोई काम कराता है तो क़ानून-भंग के अपराध में सज़ा का भागीदार होता है । मिस्टर नाइट के टूम्बा आने में जो दो रोज़ का विलम्ब था वह मुझे विश्राम के लिए बड़ा लाभप्रद हुआ। उनके आने पर टूबूम्बा में दो रोज़ और घूमनाफिरना हुआ। वहाँ से मुझे ब्रिसवेन जाना था । मिस्टर नाइट अपने मोटर में मुझे ब्रिसबेन लाये और दो रोज़ वहाँ भी मेरे साथ रहे। मैंने तीन रोज़ ब्रिसबेन में बिताये । त्रिसबेन की करीब चार लाख मनुष्यों की आबादी है । सुन्दर विशाल दूकानें, टाउन हाल इत्यादि दर्शनीय जगहें हैं । सड़कें बड़ी और चौड़ी हैं। शहर नदी के दोनों तटों पर बसा हुआ है। ऊँची-नीची जगह होने की वजह से कई - एक स्थानों से सारा शहर नज़र आता है। रहने के मकान बहुत दूर दूर तक बने हुए हैं। हर मकान में बागीचा है, जिसको एक-दूसरे से बढ़कर सजाने की यहाँ ख़ासी प्रतिस्पर्द्धा रहती है । समशीतोष्ण स्थान होने की वजह से ग्रगणित प्रकार के पुष्प-पौधे विविध रंग व ग्राकार के फूलों से लदे नज़र आये। उनके सजाने में भी किसी किसी कोठी में अच्छी कारीगरी दिखलाई गई थी । मैंने बहुत से शहर देखे हैं, पर सारा का सारा यहाँ की I १२१ दूकानें नौ बजे खुलती हैं और साढ़े पाँच बजे बन्द हो जाती हैं। खाने-पीने की दूकानें देर तक खुली रहती हैं। होटलों में भोजनालय डेढ़ बजे दिन में बन्द होकर ४ बजे खुलता है और ८ बजे रात में बन्द हो जाता है। ग्राम www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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