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________________ 576 सरस्वती [ भ३६ ग्राहक न बने / परन्तु जब उन्होंने अनुभव किया कि इस गिनाने की आवश्यकता नहीं है।नारायणलते हैं कि समय देश का वातावरण ही प्रगतिशील विचारों से इस समय 'सरस्वती' इतनी लोकप्रिय हो रही है कि पंडित प्रोत-प्रोत है और 'सरस्वती' उसी वातावरण का एक जवाहरलाल नेहरू और भाई परमानन्द जैसे भारत अङ्ग है और इस वातावरण में उनकी सुननेवाल' गेई विख्यात नेता उसे बराबर पढ़ते हैं और उसमें लिखते भी नहीं है तब वे स्वयं चुप हो गये। हमारे इन निन्दको हैं। जनवरी के नववर्षाङ्क में हम मध्य-भारत के माननीय निन्दा हमारे लिए प्रशंसा बन गई, क्योंकि हमने देखा कि नेता सेठ गोविन्ददास का एक नाटक प्रकाशित कर रहे उनकी निन्दा का कोई प्रभाव नहीं पड़ा और देशव्यापी हैं। सेठ जी का लिखा हुआ हिन्दी सवाक चित्रपट वर्तमान आर्थिक संकट के होते हुए भी हमारे ग्राहकों की धुंवाधार' बहुत-से पाठक देख चुके होंगे। हमारा संख्या ड्योढ़ी हो गई। विश्वास है कि सेठ जी बड़े ही सफल नाटककार सिद्ध होंगे __इस बढ़ती हुई ग्राहक-संख्या से, नये और पुराने और अागामी वर्ष हम उनके कई-एक नाटक पाठकों की ग्राहकों की प्रशंसात्मक चिट्ठियों से, प्रगतिशील समाचार- भेंट करेंगे। इतिहास में मङ्गलाप्रसाद-पारितोषिक-विजेता पत्रों की टिप्पणियों से हमने यह अनुभव किया कि प्रोफ़ेसर सत्यकेतु विद्यालंकार का नाम पाठक जानते ही 'सरस्वती' में नवीन परिवर्तन करके और उसमें प्रगति- होंगे / आगामी वर्ष से उनके भी विचारपूर्ण लेख पढ़ने शील विचारों को प्रश्रय देकर हम वही कर रहे हैं जो का अवसर पाठकों को मिलेगा। डाक्टर पीताम्बरदत्त हमारा हमारे प्रेमी पाठकों और उदार ग्राहकों के प्रति बड़थ्वाल (हिन्दू-विश्वविद्यालय), पंडित द्वारकाप्रसाद कर्तव्य है। यहाँ इतना स्थान नहीं है कि हम उन सैकड़ों मिश्र (जबलपुर), श्रीयुत चन्द्रगुप्त विद्याल कार (लाहौर), चिहियों और समाचार-पत्रों की टिप्पणियों को उद्धृत कुँवर चाँदकरण शारदा (अजमेर), पंडित मथुराप्रसाद करें जो 'सरस्वती' की प्रशंसा में लिखी गई हैं। हमारा दीक्षित (बिहार) और हमारे वर्तमान राष्ट्रपति बाबू खयाल है, यहाँ एक उदाहरण काफ़ी होगा। सहयोगी राजेन्द्रप्रसाद और हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन के प्राण बाबू 'वर्तमान ने गत मास में 'सरस्वती' की प्रशंसा करते हुए पुरुषोत्तमदास टंडन आदि महानुभावों का सहयोग हमें लिखा था-"सुन्दर लेखों, सुन्दर छपाई, सचित्र एवं प्राप्त होगा। टोस मैटर की दृष्टि से 'सरस्वती' ने जितनी अधिक उन्नति इसके अतिरिक्त हम सरस्वती में बहुत-से नये और की है वह हिन्दुस्तान के पत्रों के लिए आदर्श की बात है। उपयोगी परिवर्तन भी करने जा रहे हैं, जिसका अनुभव कई और पत्रों ने इसकी नकल करने की चेष्टा की है, पर पाठकों को नववर्षाङ्क देखने पर ही होगा। इसमें सन्देह वे असफल रहे।" नहीं कि 'सरस्वती' की वर्तमान उन्नति और उसके सम्बन्ध इस प्रकार पहले से भी अधिक श्राशा और उत्साह में हमारे भावी स्वप्नों का सारा श्रेय एकमात्र हमारे से हम सरस्वती का नवीन वर्ष प्रारम्भ करने जा रहे हैं। कृपालु ग्राहकों को ही है। इसलिए वर्ष की सुख-समाप्ति अगले वर्ष से हमें और भी श्रेष्ठ पुरुषों और विद्वानों का पर हम उन्हें बधाई देते हैं * आशा करते हैं कि आगे सहयोग प्राप्त होगा। यहाँ 'सरस्वती' के लेखकों के नाम भी हमें उनका सहयोग इसी प्रकार प्राप्त रहेगा। Printed and published by R. Mittra at The Indian Press, Ltd. Allahabad. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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