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________________ संख्या ६] सम्पादकीय नोट ५७५ उनमें कमरे, कोठरियाँ आदि सभी कुछ होते हैं । ये से 'सरस्वती' की उन्नति हुई है उसको देखते हुए हम मकान टीलेनुमा हैं । पर कुछ छत्राकार भी होते हैं । कुछ निश्चयपूर्वक कह सकते हैं कि उसका भविष्य और भी लम्बे, ढालू और नाम-मात्र को चौड़े होते हैं; इनकी अधिक उज्ज्वल है। लम्बाई सदा उत्तर-दक्षिण की दिशा में होती है। भवन- यह सच है कि 'सरस्वती' के निन्दकों की संख्या में कोई कमी नहीं हुई, पर हमें सन्तोष है कि इस वर्ष प्रकट रूप में 'सरस्वती' की निन्दा करने का उन्हें साहस नहीं हुअा। दो-तीन उदाहरण काफ़ी होंगे। नागरी-प्रचारिणी सभा को अपनी सभा की वार्षिक रिपोर्ट में इस बार गत वर्ष की भाँति 'सरस्वती' पर आक्षेप करने का साहस नहीं हुअा। उसे भय हुअा होगा कि इस वर्ष भी वह ऐसा करेगी तो जनता में उसकी स्थिति बहुत हास्यास्पद हो. जायगी। यह बात हमको सभा के एक प्रतिष्ठित सदस्य ने ही बताई। हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन के भूतपूर्व प्रधान मंत्री ने सम्मेलन की वार्षिक रिपोर्ट में 'सरस्वती' पर कुछ अनुचित आक्षेप किये थे, परन्तु जब उन्हें यह बताया । गया कि उनका यह कार्य अनुचित है और बहुमत उनके । विपरीत जा सकता है तब अपने उस आक्षेप पर चिप्पी । चिपका देने में ही उन्होंने अपनी भलाई समझी। यहाँ हम सम्मेलन के उपसभापति श्रीमान् बाबू पुरुषोत्तमदास टंडन को बिना धन्यवाद दिये नहीं रह सकते, क्योंकि 'सरस्वती' के प्रति प्रधान मंत्री के इस अन्याय की ओर जब श्रीमान् टंडन जी का ध्यान आकर्षित किया गया तब उन्होंने तुरन्त प्रधान मंत्री से कहा कि उन्हें वार्षिक विवरण में इस प्रकार व्यक्तिगत आक्षेप करना शोभा नहीं [दीमक-भवन देता। वर्तमान युग में प्रगतिशील विचारों को प्रश्रय देना ही समाचार-पत्रों का सबसे बड़ा धर्म है और ऐसे विचारोनिर्माण की यह विचित्र व्यवस्था दोपहर की कड़ी धूप से त्तेजक लेखों को प्रकाशित करके 'सरस्वती' वही काम कर दीमकों की रक्षा करती है। उनके भवन उनके कला- रही है जो वह गत ३५ वर्षों से करती आ रही है और जो कौशल एवं चातुर्य के नमूने हैं। दीमकों के ये भवन उसे करना चाहिए । पण्डित वेंकटेश नारायण तिवारी गोरखपुर के इस अञ्चल में प्रायः पाये जाते हैं। जी के लेखों से तिलमिलाकर हिन्दी साहित्य के कुछ मुल्लापंथी लोग तो इतना अधिक आगे बढ़ गये थे कि 'सरस्वती' के ३६ वे वर्ष की समाप्ति उन्होंने जैसा कि हमें दो-एक समाचार-पत्रों में पढ़ने को इस अङ्क से 'सरस्वती' का ३६वाँ वर्ष समाप्त होता मिला, वायसराय तक के पास एक अर्जी भेजी कि 'सरस्वती' है। हमारे पाठकों को यह जानकर प्रसन्नता होगी कि का सरकार नियंत्रण करे और एक सभा में उन्होंने 'सरस्वती' का यह वर्ष बहुत अच्छा रहा और जिस गति एकत्र होकर प्रस्ताव पास किया कि 'सरस्वती' का कोई Shree Sudharm wavesyananandarrcumar
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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