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________________ ५७४ सरस्वती [भाग ३६ प्रधान हैं । आपने पेरिस की यूनीवर्सिटी से व्रजभाषा के स्वर्गीय लाला रामनारायणलाल सम्बन्ध में फ्रेच भाषा में अपना निबन्ध लिखकर लाला रामनारायणलाल इलाहाबाद के प्रमुख डी. लिट. की डिगरी प्राप्त की है, जो सर्वथा पुस्तक-व्यवसायी थे। आपने अपने अध्यवसाय और आपके उपयुक्त है। आप भाषा-विज्ञान के मर्मज्ञ विद्वान् परिश्रम से लाखों की सम्पत्ति उपार्जित की। एक साधारण हैं। आपने विदेश में हिन्दी-भाषा की उच्च डिगरी हैसियत का साधन-रहित व्यक्ति क्या से क्या हो सकता है, इसके आप एक आदर्श उदाहरण थे । आपके देहावसान से इलाहाबाद का एक पुरुषार्थी व्यक्ति उठ गया है। हमारी आपके दुखित परिवार से हादिक सहानुभूति है। सीमाप्रान्त का नया सक्यूलर पश्चिमोत्तर-सीमाप्रान्त के शिक्षा विभाग के मन्त्री ने एक सक्येलर निकाल कर वहाँ के सरकारी तथा सहायताप्राप्त कन्या-स्कूलों में हिन्दी और गुरुमुखी पढ़ाने का निषेध कर दिया है, इससे उस प्रांत में बसनेवाले हिन्दुत्रों और सिक्खों की हक़तलफ़ी हुई है । फलतः पञ्जाब एवं अन्य प्रांतों की साहित्यिक संस्थात्रों ने सभायें करके उक्त सरकारी सद्युलर का विरोध किया है । अाश्चर्य है कि जब सरकार मुसलमानों की सुविधा का खयाल करके बिहार तथा मध्यप्रदेश आदि प्रान्तों में उर्दू की शिक्षा की व्यवस्था करती जा रही है तब वह मुसलमान-प्रधान प्रान्तों के ऐसे ही अल्पसंख्यक हिन्दुओं आदि की भाषा-सम्बन्धी प्राप्त सुविधाओं को दूर करने का उपक्रम क्यों कर रही है। सीमाप्रांत के उक्त भाषा-सम्बन्धी सक्यलर का जो विरोध हिन्दुत्रों और सिक्खों की ओर से प्रारम्भ हुआ है। [डाक्टर पार० एन० दुबे] वह उचित है और आशा है कि सीमाप्रांत की सर कार का ध्यान हिन्दू और सिक्खों की उचित माँग की ओर प्राप्त करके अपने साथ राष्ट्रभाषा हिन्दी को भी गौरव का भा गारव जायगा और वह उस सयंलर को वापस लेकर हिन्दुओं प्रदान किया है। दूसरे सजन श्रीयुत आर० एन० दुबे हैं। और सिक्खों के साथ न्याय करेगी। आपने भी पेरिस की यूनीवर्सिटी से ही भूगोल में उक्त डिगरी प्राप्त की है। आप इलाहाबाद-यूनीवर्सिटी में भूगोल दीमक-भवन विषय के लेक्चरर नियुक्त किये गये हैं। उपर्युक्त विषयों हाटा, गोरखपर, के ठाकर शिरोमणिसिंह चौहान में डी० लिट० की डिगरियाँ प्राप्त करनेवाले यही प्रथम एम-एस०सी० ने दीमक-भवन का यह एक चित्र भेजा है। भारतीय हैं जो और भी महत्त्व की बात है । इस महत्त्वपूर्ण उन्होंने इसके परिचय में लिखा है कि दीमकों के ये सफलता के लिए ये दोनों महानुभाव बधाई के पात्र हैं। भवन अतीव ठोस और दृढ़ होते हैं । बाह्य सौन्दर्य के अतिरिक्त उनका भीतरी दृश्य तो देखते ही बनता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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