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________________ सगीतमय मारवाड़ संख्या १ ] रात्रि नक्षत्रों से सजी है एवं मेरी सेज पुष्पों से सजी हुई है। गोरी के बालम अब घर या जात्रो प्रियतम ! बिरछा विलूंबी वेलड़ी पिया, नरौँ विलूँबी नार हो जी ढ़ाला; अब घर श्राय जा बरसा रुत भली हो जी ॥ वृक्षों से लतायें श्रालिङ्गन कर रही हैं और स्त्रियाँ भी अपने अपने पति से श्रालिङ्गन कर रही हैं। अब तो घर आ जाओ ताकि वर्षा की ऋतु सफल हो जाय, प्रियतम ! उपर्युक्त गीत की भाषा यद्यपि ग्रालङ्कारिक नहीं है, तो भी भावों में लालित्य भरा हुआ है। वृक्षों से लताओं के श्रालिङ्गन का सादृश्य कुछ कम काव्यमय नहीं है। यह गीत "निहालदे सोढ़ा" का है। वर्षा ऋतु में 'मेघमल्लार' के स्वर में गाया जाता है। ( २ ) नीचे के गीत में किसी नवयौवना का पति परदेश जा रहा है । उस विछोह के समय उसकी पत्नी सजल नेत्रों से अपने पति को विदाई दे रही है ऊँची तो खींव ढ़ोला बीजली, नीची खींव छै निवाण जी ढोला; श्री जी श्री गोरी रा लस्करिया, श्री लँगड़ी लगायर कोट्ये चाल्या जी ढोला ॥ प्रियतम ! बिजली ऊँची ही चमका करती है और पानी नीचे ही बहता है। अजी गोरी के बालम ! प्रीति का सम्बन्ध स्थापित कर अब कहाँ जा रहे हो ? चढ़ो येतो राँधाँ ढ़ाला खीचड़ी, रहो येतो जींमवारा भात जी ढोला । प्रियतम ! यदि तुम यहीं रहो तो तुम्हें अच्छा से अच्छा भात पका कर खिलाऊँगी, और यदि जाओगे तो केवल खिचड़ी ही । जीम चढाँगा गोरी खीचड़ी, श्राय जीमाँगा जमवारा भात ये गोरी । प्रिये ! खिचड़ी खा कर मैं चला जाऊँगा । तुम्हारे वे बढ़िया चावल जब परदेश से लौट कर ग्राऊँगा तब खा लूँगा। चढ़ो येतो श्रोढ़ाँ ढाला चूनड़ी, रहो येतो दिखणीरो चीर जी ढोला । Shree Sudbarmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ५१ [आमेर की एक सड़क -गीत के सहारे एक लम्बा रास्ता तय करके ये ऊँटों पर सवार लोग बस्ती में पहुँचे हैं ।] प्यारे ! यदि तुम जाओगे तो हैं एक साधारण चुनड़ी ही ओगी और यदि यहाँ रहो तो दक्षिण से मँगाया हुआ सुन्दर चीर ओढ़ सकती हूँ । निरख चढ़ाँगा गोरी चूनड़ी, श्राय निरखाँगा दिखणीरो चीर ये गोरी । प्रिये ! मैं तुम्हें चुनड़ी पहने देख कर ही परदेश के लिए प्रस्थान करूँगा । जब मैं वापस आऊँगा, उस समय तुम दक्षिण से मँगाया हुआ चीर पहनना । चढ़ो येतो धालाँ मारूजी ढोलियो, रहो येतो फूलड़ाँरी सेज जी ढोला । प्रियतम ! यदि जाओगे तो तुम्हारे लिए केवल खटिया ही बिछाऊँगी और यदि यहाँ रहो तो पुष्पों की सुन्दर से सुन्दर सेज बिछा दूँगी । www.umaragyanbhandar.com,
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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