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________________ ५० बरसण लाग्यो मेह, हो जी ढोला मेह । घराय जा गोरी रा बालमा हो जी ॥ प्यारे ! श्रावण मास प्रारम्भ हो गया है, भादों भी आनेवाला है, प्रियतम मेघ का भी बरसना शुरू हो गया है । गोरी के बालम ! अब तुम घर ना जाओ । छपर पुराणा पिया पड़ गया रे कोई तिड़कण लाग्या, तिड़कण लाग्या बोदा बाँस, हो जी ढोला बाँस; अब घर ग्राय जा बरसा रुत भली हो जी ॥ प्यारे ! मकान का छप्पर बहुत जीर्ण हो गया है । इसके पुराने बाँस भी फटने लगे हैं। प्रियतम, अब तुम घर श्रजाश्रो, जिससे वर्षा ऋतु भली भाँति व्यतीत हो जाय । बादल मैं चिमक पिया बीजली रे, कोई हलाँ मैं डरपै, हाँ मैं डरपै घर की नार, हो जी छोटी नार, अब घर आ जा, फूल गुलाब रा हो जी ॥ प्यारे ! बादल में बिजली चमक रही है, उसकी चमक से तुम्हारी युवती पत्नी अपने महलों में भयभीत हो रही है। गुलाब के पुष्प, अब तुम घर आ जाओ न ! क्वो तो है तो पीया डाक ल्यूं जी ढ़ोला, समदर डाक्यो, समदर डाक्यो न जाय, सरस्वती T हाँ जी ढोला न जाय; अब घर श्रायजा फूल गुलाब रा हो जी ॥ प्रियतम ! तुमसे मिलने के लिए यदि कुछ ही बहता होता तो मैं उसे भी लाँघ सकती थी, किन्तु इतना चौड़ा समुद्र तो मुझसे नहीं लाँधा जा सकता । अत्र घेर श्री जाओ न बालम ! नेड़ी-नेड़ी करो पिया चाकरी जी छैला, साँझ पड्याँ घर, साँझ पड्याँ घर ग्राव, हो जी ढोला अब घर श्रायजा बरसा रुत भली हो जी ॥ ; प्यारे ! नज़दीक की ही नौकरी किया करो ताकि सन्ध्या होते ही घर या सको । अब घर था जाश्रो, जिससे वर्षा ऋतु सफल हो जाय । थाँन तो प्यारी लाग चाकरी जी ढोला, म्हान तो प्यारा लागो, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ भाग ३६ महान तो प्यारा लागो, हो जी ढोला श्राप; अब घर व मृगानैणी रा बालमा हो जी ॥ तुम्हें तो नौकरी ही प्रिय लगती है प्यारे ! किन्तु मुझे केवल तुम ही प्यारे लगते हो। मृगनयनी के बालम ! अब घर पर अवश्य श्रा जानो । अस्सी रेटका री ढोला चाकरी रे कोई लाख मोहर की नार, लाख मोहर री भोली नार, हो जी ढोला ; घराय जा गोरी रा बालमा हो जी || नौकरी तो केवल अस्सी टकों की है प्यारे ! किन्तु तुम्हारी भोली नार लाख मोहर की है। गोरी के बालम अब घर अवश्य श्रा जाओ । मैं नहीं मावे का चली जी, लड़े नहीं मावे, हिवड़े नहीं मावे हार, हो जी ढोला; अब घर प्रायजा गोरी रा बालमा हो जी ॥ मेरे अंग में अँगिया एवं छाती पर हार नहीं टता है । अब घर आ जाओ न प्रियतम ! श्रावण आवण कह गयो रे ढोला, कर गया कवल नेक, कर गया कवल अनेक; अब घर आजा बरसा रुत भली हो जी ।। प्यारे ! आने के लिए कह गये थे, और तुमने आने की बहुत-सी प्रतिज्ञा भी की थी। अब तो घर वा जाश्रो, जिससे वर्षा की ऋतु सफल हो जाय । दिनड़ा तो गिरा गिरण ढोला, घिस गई म्हारी गलियाँ, काँई आँगलियाँ री रेख, हो जी ढ़ाला; घराय जा फूल गुलाब रा हो जी ॥ तुम्हारी प्रतीक्षा में दिन गिनते गिनते मेरी अँगुलियों की रेखायें घिस गई । गुलाब के पुष्प, अब घर पर अवश्य आ जाओ प्यारे । तारा तो छाई रातड़ी, जी ढ़ोला, फुलड़ा छाई, फुलड़ा छाई सेज, हो जी ढोला सेज, घर या गोरी रा बालमा हो जी ॥ www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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