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________________ संख्या १ संगीतमय मारवाड़े हम यहाँ मारवाड़ के कुछ प्रचलित गीत एवं उनके अनुवाद उद्धृत करते हैं। ये गीत प्रायः प्रेम के ही गीत हैं । इन गीतों में अतीत के गौरव और भविष्य के सुन्दर स्वप्न का सौन्दर्य और यौवन विद्यमान है। अाज से एक शताब्दी पूर्व जब राजस्थान के वणिक व्यवसाय के लिए कलकत्ता, बम्बई, मदरास इत्यादि दूर स्थानों को जाया करते थे तब उनकी वह यात्रा पाँच-सात वर्ष से कम की नहीं होती थी। किसी किसी को तो बारह वर्ष भी बीत जाते थे। उन दिनों के कवियों ने उन वणिकों की विरहिणी युवती पत्नियों के हृदय के चित्र बड़े सुन्दर ढंग से खींचे थे । और वे कवितायें गीतों के रूप में समूचे मारवाड़ में गाई जाती थीं। उन गीतों में उनकी अाशा-निराशा और सुख-दुःख पूर्णरूप से अङ्कित है। किसी युवती का पति परदेश को गया है। उसकी अनुपस्थिति में श्रावण महीने का श्रागमन हुअा। उस मादक महीने में वह विरहिणी अपने पति की याद करती है सावण तो लाग्यो पिया, भादवो जी काँई बरसण लाग्यो, [मारवाड़ की एक ग्रामीण युवती ।] उन्मत्त हो जाते हैं कि अपनी सुनहरे पंखों की पूँछ को छत्र के रूप में विकसित कर नृत्य करने लगते हैं। इसी भाँति मारवाड़ की प्रत्येक साँस में संगीत लबालब भरा रहता है। किन्तु वहाँ से हज़ारों मील की दूरी पर बसनेवाले वहीं के शिक्षित नवयुवक आज वहाँ के गीतों के इतने सुन्दर रूप का भी घोर विरोध करते हैं । उनकी शिकायत है कि वैसे गन्दे गीतों से हमारी सभ्यता की रक्षा नहीं हो सकती। इसका कारण है उनका जन्म से ही राजस्थान से सुदूर प्रवास एवं वहाँ की प्रकृति-कला से अपरिचित होना । इसके अतिरिक्त एक और भी कारण है, और वह यह कि उन शिक्षित युवकों के सम्मुख 'मारवाड़ी-गीत-संग्रह' जैसे गन्दे साहित्य का प्रचार । खैर, जो कुछ भी हो, अब भी यथेष्ट समय है। यदि और कुछ नहीं तो कम से कम बङ्गाली समाज का ही अनुकरण कर वे अपनी कला के भग्नावशेषों को एकत्र करने में संलग्न हो । अस्तु फा. ७ [पनिहारा, पानी खींचने के साथ ही गीत भी गा रहा है।
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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