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________________ ४९४ सरस्वती [भाग ३६ बाज़ी लगाकर पान के बीड़े चाबते होंगे। अब वह आत्मा नहीं है। आज कोरा शरीर और बाह्य बातें रह गई हैं। जिस वीर-भूमि चित्रकूट में जन्म लेने के लिए देवता भी लालायित थे उस स्वतंत्रता के श्रोजस्वी पुजारियों और भक्तिरस में लवलीन मीरा की भूमि की वर्तमान दशा को निहार कर न मालूम क्या क्या भाव हमारे मन में आने लगे। अब चित्तौड़ में न तो प्राचीन ज़माने के गगन स्पर्शी महल [पूजनार्थ लाये गये हाथियों का दृश्य, उदयपुर हैं, न स्वर्ण और रत्न-जटित देवालय और मूर्तियाँ हैं। गये। तत्पश्चात् एक के बाद एक चारणों, बारहटों ने वैसे महल तो अब उदयपुर में हैं। वहाँ तो एक मात्र खड़े होकर वीरतापूर्ण शब्दों में कवितायें कहीं। फिर कीर्ति-स्तम्भ सारे प्राचीन काल की स्मृति दिलाने पान के बीड़े बाँटे गये । पान के बीड़े हाथ में ले लेकर के लिए अटल वीर-योद्धा की भाँति खड़ा चित्तौड़ के कई सरदारों ने बैठे बैठे अभिवादन किया और कइयों ने खंडहरों से वीर-रस अब भी टपकता है । जिस भूमि की खड़े हो होकर अपने कायदे के अनुसार अभिवादन रक्षा के लिए वीरों ने अपना बलिदान किया उनका स्मरण किया। तत्पश्चात् दरबार बरखास्त हो गया। ये बीड़े सीख दिलाने के लिए चबूतरे और छत्रियाँ खड़ी हुई अब भी के बीड़े थे । दरबार की सवारी तामजाम में बैठकर गई। हमें कर्तव्यनिष्ठ योद्धा बनने के लिए उत्साहित कर रही सरदार जागीरदार सबके चले जाने के बाद उमरा गये। हैं। पान पर मरनेवाले स्वतंत्रता के पुजारियों की दरीखाने की चाँदनियाँ और जाज़में उसी वक्त उठ गई। स्मृतियाँ अब भी हमें आततायियों को पददलित करने के | अन्दर महलों में दरबार की सवारी जाते ही पातरियों और लिए ढाढ़स बँधा रही हैं । राना कुम्भ का जयस्तम्भ अब ढोल नियों के गाने के शोर-गुल में दरबार पधारे। इन भी हमारे रक्त में वीरता का संचार करता है। जौहरपातरियों आदि का दृश्य हमें अच्छा न लगा, हम भी कुण्ड अब भी पद्मिनी-सी अादर्श पति-भक्ता देवियाँ बनने अपने डेरे पर लौट आये। के लिए हमारी माता और बहनों को उत्साहित कर रहा रात को सोते सोते विचारने लगे कि क्या कभी आर्यों है। क्या भारत के दिन फिर फिरेंगे ? क्या सांगा, कुम्भ, का वह प्राचीन गौरव जागृत होगा ? महाराना प्रताप के प्रताप, जयमल, पत्ता जैसे भीषण बलिदान करनेवाले ज़माने में ये घोड़े और हाथी युद्ध की तैयारी देखने के इन खंडहरों से पुनः पैदा होंगे ? क्या भगवान् वह वीर लिए देखे जाते रहे होंगे। सरदार और उमरा रणभूमि आत्मा इस जर्जर शरीर में कभी दिखावेगा ? ऐसी बातें। में मातृभूमि के हितार्थ बलिदान होने के लिए प्राण की सेचते-सोचते हम निद्रादेवी की गोद में विलीन हो गये। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara. Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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