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________________ संख्या ६ ] मुसाहब, दीवान वगैरह जिनकी बैठकें नियुक्त हैं, अपने अपने स्थान पर बैठे हुए थे। गद्दी की बाईं ओर कर्जाली के महाराना साहब के स्वयं राज-परिवार वाले सफ़ेद पोशाक धारण किये हुए दोनों पैरों में चूड़ीदार पाय जामे पर सोना धारण उदयपुर में विजयादशमी किये हुए महाराज अभयसिंह जी और महाराज प्रतापसिंह जी बड़े शोभायमान मालूम होते थे । गद्दी से सीधी और १६ उमरा चबूतरे के कटघरे की दीवार से लगे हुए अपने अपने स्थान पर बैठे थे । गद्दी के सामने सादड़ी, बनेड़ा वग़ैरह के राजकुमार बैठे थे । इनके पीछे चारण, बारहट, कविगण जिनको उत्तम कविताओं के कारण महारानाओं की तरफ़ से जागीरें बख्शी हुई हैं, बैठे थे । गद्दी की बाईं ओर मुसाहब खड़े थे । लाल वर्दी • पहने घोटेदार, छड़ीदार छड़ियाँ और घोटे लिये खड़े थे । इनके आगे जागीरदार बैठे थे। बीच बीच में राजपुरोहित दरबार के इशारे पर कुछ बात कह सुनकर श्राता था । सबके बैठने के पश्चात् खड़ग जी की सवारी श्रई । गुलाब बाग़ में एक ताख में कनफटा नाथों में से एक नाथ नवरात्र आरम्भ होने से पहले खाना-पीना आदि त्याग कर बैठ जाता है । ८ दिन बराबर आसोज शुक्ला १ से ८ तक एक स्थान पर बिना पानी पिये रोटी खाये खड़ग हाथ में लिये जप करता रहता है। इस कठिन तपस्या का व्रत वही साधु करता है जो महन्त जी की फेरी हुई हरड़ ले लेता है । जैसे प्राचीन काल में राजा-महाराजा किसी कठिन कार्य के सम्पादन के लिए पान का बीड़ा सरदारों में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [पूजनार्थ लाये गये घोड़े, उदयपुर] ४९३ घुमाया करते थे, उसी प्रकार इस आठ दिन की निराहार और निर्जल तपस्या के लिए महन्त जी हरड़ घुमाते हैं। जो चेला उस हरड़ को ले लेता है वही इस आठ दिन के निर्जल - निराहार व्रत को करता है। खड़ग जी की सवारी महलों के आगे बड़ी धूम-धाम से श्राई । खड़ग जी की सवारी के श्रागे श्रागे घुड़सवार पल्टन थी । उसके पीछे कई बाजे बजते थे । “रणकाँकरण" का बाजा जो बाँसों पर था और जिससे उदयपुर के महारानाओं ने बड़े बड़े युद्धों में काम लिया था, विशेष श्राकर्षक था । उसके बाद खड़ग जी की सवारी पालकी में आई । खड़ग जी को गोद में लेकर नाथ उठाकर दरबार के सम्मुख ले आया। उसने खड़ग दरबार को भेंट की । वह खड़ग सिलहेखाने का अफ़सर सिलहेखाने में ले गया । तत्पश्चात् घोड़े और हाथी के फेरने का काम प्रारम्भ हुआ । एक घोड़ा सामने श्राता गया । उसको घुमा घुमाकर दिखाते गये। इस प्रकार सब नौ घोड़े देखे गये । तत्पश्चात् हाथी एक बाद एक लाया गया और वे भी घुमा घुमाकर दरबार को दिखाये और ले जाये www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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