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सरस्वती
पिचोलिया झील के सुन्दर तट पर गनगौर घाट के ऊपर बने हुए सुन्दर महलों में से 'बागौर की हवेली' में जो 'सत्कारालय' कहलाता है, ठहराया था ।
असोज शुक्ला अष्टमी के सायंकाल के चार बजे से ही सारे उदयपुर नगर में बड़ी चहल पहल थी। सड़कों पर छिड़काव हो रहा था। नये नये वस्त्र पहनकर अमरशाही पगड़ियाँ बाँधकर लम्बी अँगरखियाँ पहनकर, कमर बाँधे हुए, हाथों में सोने चाँदी की मूठों की तलवारें लिये हुए सरदार पैदल तथा घोड़ों पर तथा मोटरों पर महलों की तरफ़ बढ़े जा रहे थे । उदयपुर की जनता और स्त्रियाँ भी इस दृश्य को देखने के लिए अपने कुर्व कायदे के मुताबिक उमड़ पड़ी थीं। महलों के सामने ही बड़े-बड़े चबूतरों पर खास सूर्यद्वार के नीचे दरीखाने का प्रबन्ध हो रहा था। लाल जाज़ में बिछाकर उन पर सफ़ेद बुर्राक चाँदनी बिछाई गई थी और उस पर एक बड़े सिंहासन पर मसनद रक्खी हुई थी। पुरोहित सरदारों की पोशाकों में यह देख रहे थे कि कौन-कौन सरदार बाकायदा पोशाक में पधारे हैं। चोबदार लाल बनात की लम्बी अँगरखियाँ और केसरिया पोशाकें पहने हुए इधरउधर काम कर रहे थे । महलों के सामने ही सुन्दर सुन्दर सोने-चाँदी के जेवर पहने हुए कई हाथी अच्छी अच्छी बेशकीमती भूलें डाले हुए सोने-चाँदी की अम्बारी से सुसज्जित झूम रहे थे । एक से एक सुन्दर घोड़े सोने-चाँदी के ज़ेवरों से सुसज्जित अलग ही अपना यौवन दिखा रहे थे । श्राज इन हाथी-घोड़ों की भी खुशी का ठिकाना न था, क्योंकि आज हिन्दु सूर्य मेदपाटेश्वर अपने करकमलों से इनकी पूजा करनेवाले थे ।
• हम लोगों को भी 'सत्कारालय' से लाल वर्दी पहने हुए चोपदार महलों में दरबार दिखाने ले गया। ठीक हाथी घोड़ों के पूजा-स्थान और दरीखाने के ऊपर ही तिवारी में हम लोग बैठाये गये । हमारे सामने के विस्तृत मैदान में लाल वर्दी पहने हुए महाराना साहब की पैदल पल्टन बन्दूकें लिये खड़ी थी। उसके आगे सजे हुए पूजन के घोड़े और हाथी खड़े थे। ठीक समय पर रेज़िडेंट श्रीमान् कर्नल बीथम साहब पधारे। फ़ौज ने
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[ भाग ३६
[ गनगौर-घाट, उदयपुर]
उनको सलामी दी और बाजा बजाया । हमारे सामने के हाथीखाने के ऊपरवाले कोठे पर फ़ौज के पीछे दरी पर कुछ कुर्सियाँ रक्खी थीं। वहाँ रेज़िडेंट साहब बिठाये गये। एक-दो और अँगरेज़ और मेमें भी उनके साथ बिठाई गई। उदयपुर के सिक्कों पर लिखा हुआ 'दोस्ती लंदन' का चित्र हमारे सामने घूमने लगा । ठीक ६ बजे महाराना साहब की सवारी बाई । चारों ओर से "खड़े हो" "खड़े हो" की आवाजें आने लगीं। रेज़िडेंट साहब और सब उपस्थित जनता एक साथ खड़े हो गये। उनके सत्कार में फ़ौज ने सलामी दी, बाजा बजा । महाराना साहब ने घोड़ों का पूजन करना आरम्भ किया। सबसे पहले श्री एकलिंग जी का घोड़ा जिस पर चॅवरें डोलाई जा रही थीं, सोने-चाँदी के गहने पहने हुए लाया गया ।
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