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________________ संख्या ६] जवाहरलाल नेहरू और हिन्दू-संस्कृति ४८५ में एंग्लो-सेक्सन नस्ल न सिर्फ़ शासक बन गई, हिन्दूत्व उड़ गया है वे भारत पर आक्रमण करनेवाले बल्कि वहाँ की जाति कहलाने लगी। महमूद ग़ज़नवी, मुहम्मद गोरी, तैमूर, बाबर आदि ___ इसी प्रकार जो कुछ मिस्र में हुआ, ठीक वही शत्रों को स्मरणीय पर्वज और क़ौमी 'हीरो' ईरान में हा। जब अरबी फौजों ने ईरान को समझते हैं। विजित किया और सभी ईरानियों को मुसलमान अपने पहले लेख में मैंने इस बात को नहीं छेड़ना बनाना चाहा तब उन ईरानियों के सामने जो चाहा कि स्वतन्त्र भारत की गवनमेंट का क्या अपनी जाति से प्रेम करते थे, यह सवाल पैदा हुआ रूप हो; वह लोकतंत्रात्मक हो या प्रजातंत्र, साम्यकि या वे जातीयता को तिलांजलि दे दें या देश वादी हो या फेसिस्ट । परंतु इतनी बात मैं जरूर कह को। कुछ हजार ईरानियों ने अपनी जाति और देना चाहता हूँ कि राजनैतिक या आर्थिक स्वतंत्रता मज़हब को बचाना श्रेयस्कर समझा और कश्तियों का सांस्कृतिक और सामाजिक स्वतंत्रता से आसानी में बैठकर अनहलवाड़ा (गुजरात) आ पहुँचे । (इनकी के साथ भेद किया जा सकता है। भारत सदियों संतानें आज-कल के भारतीय पारसी हैं।) यह बात तक मुसलमान बादशाहों का गुलाम रहा। गुलाम भी बहुत दिलचस्प है कि इस समय रज़ाशाह पह- होने से इसकी राजनैतिक स्वतंत्रता जाती रही, लवी के शासन में ईरान में जो नया जातीय या परन्तु बाह्य प्रभावों के बावजूद इसकी सांस्कृतिक राष्ट्रीय आन्दोलन चल रहा है उसका बड़ा उद्देश स्वतंत्रता बनी रही। मांस्कृतिक स्वतंत्रता ही थी यह है कि ईरानियों में से बाद की अरबी-सभ्यता जिसने हिन्दुओं को मुसलमान शासकों से अलग को निकाल कर ईरान की पुरानी संस्कृति को नये रक्खा और इस कारण ही हिन्दुओं में इस्लामी सिरे से कायम किया जाय। गवर्नमेंट के मुताबिले पर विरोध का झंडा खड़ा करनेस्वतंत्र होते हुए या परतंत्र रहते हुए जब तक वाले उत्पन्न हाए । यदि राजनैतिक स्वतंत्रता के साथ हिन्दू स्त्री, पुरुष और बच्चे के अन्दर यह भाव हिन्दुओं की संस्कृति और सामाजिक जीवन खत्म मौजूद है कि उनका संबंध श्री राम और श्री सीता से हो गये होते, जैसा कि मिस्र, ईरान और अफ़ग़ाहै और वे अपने देश के पूर्वजों की आत्माओं का निस्तान में हुआ, तो हिन्दुओं में ऐसे देशभक्त और अपनी आत्मा के अंदर देखते हैं तब तक वे हिन्दू- राष्ट्रीय वीर न उत्पन्न होते। राजनैतिक दासत्व जातीयता या राष्ट्रीयता को कायम रखते हैं। ज्यों ही एक प्रकार से जाति का शारीरिक दासत्व होता है, कुछ हिन्दू अपने सभी पूर्वजों से संबंध-विच्छेद परन्तु सांस्कृतिक दासत्व उसके दिमागी दासत्व के करके अपने मज़हब, अपने इतिहास और अपनी समान है। पहले शारीरिक गुलामी आती है। संस्कृति आदि का नाता अरब से जोड़ लेते हैं, त्यों इसके बाद विजेता जाति का लाभ इसमें होता है ही उनके अंदर से हिन्दूत्व मिट जाता है और उसके कि विजित जाति के अंदर अपनी संस्कृति, अर्थात् स्थान में गैरीयत आ जाती है। यह बात एक छोटे स्व-भाषा, स्व-साहित्य और स्व-गौरव का प्रचार से उदाहरण से स्पष्ट हो जाती है। जिन लोगों के करके (जैसा कि ब्रिटिश गवर्नमेंट ने अपनी शिक्षादिल में हिन्दूत्व (स्व) विद्यमान है वे महाराज पद्धति के द्वारा भारत में किया है) उसके अंदर ऐसी युधिष्ठिर, राजा विक्रमादित्य, महाराना प्रताप, दिमागी गुलामी पैदा कर दे कि विजित अपने महाराज शिवाजी, और गुरु गोविंद को अपने आपको विजेता का ही एक अंश (Mind-born राष्ट्रीय वीर और मुक्तिदाता (Liberators) मानते sons) समझने लग जाय और इस प्रक्रि । के पूर्ण हो हैं। इसके विपरीत जिन लोगों के दिल से वह जाने पर उसके अंदर स्वतंत्रता की इच्छा ही मिट जाय। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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